UP चुनाव में होगी BJP और सपा में सीधी टक्कर, बसपा अखाड़े में कमजोर पहलवान

Update: 2016-07-01 12:36 GMT
यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के दो बड़े नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने से पार्टी सुप्रीमो मायावती साल 2017 के अखाड़े में कमजोर पहलवान बन गई हैं. हालाँकि शुरूआती दौर में उन्हें इस अखाड़े का सबसे दिग्गज पहलवान माना जा रहा था. लेकिन उनकी टीम के दो सबसे मजबूत पहलवानों के पाला बदल जाने से उनकी टीम अब कमजोर होती दिख रही हैं. जिसके चलते अब इस अखाड़े की लड़ाई में सीधी टक्कर बसपा की बजाय सपा और बीजेपी में होती हुई नजर आ रही है.

पिछड़ा और दलित वोट बैंक ले भागे दो बड़े नेता 

सूत्रों के मुताबिक जिन दलितों और पिछड़ों की राजनीति बसपा सुप्रीमो मायावती यूपी में कर रही थीं. वह भी इस बार के चुनाव में उनसे दूर भाग रहा है. दरअसल इसकी प्रमुख वजह मायावती का हिटलरी स्वाभाव माना जा रहा है. यही नहीं उनके इसी स्वाभाव के चलते पार्टी के दो बड़े नेता वह भी उनके अपने उनको दगा देकर पार्टी से इस्तीफा देकर भाग खड़े हो गए है. जिसके चलते बसपा सुप्रीमो मायावती अपने ही बिछाए जाल में फंसकर मछली की तरह छटपटाती नजर आ रही हैं. उनकी इस दुःख की घडी में उन्हें मरहम लगने वाले उनके मुंहबोले भाई स्वामी प्रसाद मौर्या पहले ही पार्टी छोड़कर भाग गए हैं और दूसरे गुरुवार को आरके चौधरी भी उनपर टिकट बेचने
का आरोप लगाकर साथ छोड़कर चले गए हैं.

बसपा में अपना कद बढ़ा रहे हैं नसीमुद्दीन 

अब ऐसे में उनके गहरे जख्मों पर मरहम लगाने वाले सिर्फ विधानपरिषद दल के नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी बचे हैं. जिनकी नजर अब पार्टी पर हैं. नतीजतन बहनजी की इस दुःख की घडी में उनके जख्मों पर मरहम लगाने की फ़ीस वैसे तो भले उन्होंने कुछ नहीं ली हो, लेकिन अपने नजदीकि चहेते को विधानमंडल दल का नेता गयाचरण दिनकर को बनवाकर अपनी फ़ीस वसूल कर ली हैं. यही नहीं वह भी अब पार्टी में अपनी पैठ बनाने में जुटे हुए हैं. बताया जाता हैं कि जिन मुस्लिम वोट बैंक को लेकर वह मायावती के करीबी बनने की कोशिश कर रहे हैं. वह भी सपा के खाते में जा चुका हैं. यही नहीं पिछड़े वर्ग का वोट बैंक स्वामी प्रसाद मौर्या और पासी समुदाय का वोट बैंक आरके चौधरी अपने साथ लेकर चले गए हैं.

ब्राह्मण समाज बना बसपा का विरोधी

सूत्रों के मुताबिक पिछले दस सालों से बसपा ने यूपी में कोई चमत्कार नहीं दिखाया हैं. कहने का मतलब यूपी में साल 2007 के बाद से बसपा कोई चुनाव नहीं जीत सकी हैं. इतना ही नहीं ब्राह्मण वोट बैंक भी इस बार के चुनाव में बसपा से खिसकता हुआ दिखाई दे रहा हैं. मालूम हो की चिल्लूपार के विधायक राजेश त्रिपाठी और उन्नाव से पार्टी के एमएलसी रहे अरविन्द त्रिपाठी उर्फ़ 'गुड्डू' त्रिपाठी को कुछ दिन पहले ही पार्टी से बहनजी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया हैं. राजनीति के गलियारे में भी इस बात की चर्चा जोरों पर हैं कि बहनजी ने इन नेताओं को पार्टी से बाहर करके ब्राह्मण समाज को जो मैसेज दिया हैं . उसका चुनाव पर बहुत बड़ा असर दिखाई पड़ेगा.

सपा और बीजेपी में होगी सीधी टक्कर 

सूत्रों के मुताबिक बसपा शुरूआती दौर में साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे आगे दिखाई पड़ रही थी. लेकिन जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा हैं उसकी स्थिति मजबूत होने की बजाय कमजोर होती दिखाई पड़ रही हैं. बताया जाता हैं कि इसका सबसे अधिक लाभ सपा और बीजेपी को होता दिख रहा हैं. यही नहीं विकास के मुद्दे को लेकर अखिलेश ने भी अपनी छवि यूपी की जनता के बीच काफी अच्छी बना ली हैं, और तो और अगर विधानसभा चुनाव से पहले लखनऊ में वह मेट्रो चलवाने में सफल रहे तो इसका भी लाभ उन्हें चुनाव में मिलेगा. उधर बसपा से निकले नेता मायावती को परास्त करने के लिए अपनी अलग रणनीति बनाने में लगे हैं, जिसका लाभ बीजेपी को होता दिख रहा हैं. फिलहाल यूपी की इस बदली तस्वीर को देखकर ऐसा लग रहा हैं कि अगले साल होने वाले चुनाव में सपा और बीजेपी में सीधी टक्कर होगी.

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