कॉमन सिविल कोड पर आगे बढ़ी मोदी सरकार

Update: 2016-07-01 11:22 GMT
नई दिल्ली।  केंद्र सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने लॉ कमीशन से समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में पड़ताल करने को कहा है। ये पहली बार हुआ है जब केंद्र सरकार ने लॉ कमीशन से इस तरह की पहल की है जाहिर है इसके बाद एक बड़ा विवाद और बहस शुरू हो सकती है।

समान नागरिक संहिता का मतलब देश के हर धर्म और हर संप्रदाय के पर्सलन लॉ एक समान कानून होंगे। पर्सनल लॉ के तहत विवाह, तलाक, प्रॉपर्टी और वसीयत जैसे मामले आते हैं फिलहाल देश में हिंदू और मुसलमान के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं लेकिन एक वर्ग काफी समय से समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग कर रहा है। भारतीय जनता पार्टी हमेशा से इस कानून के पक्ष में रही है जबकि कांग्रेस इसका विरोध करती रही है। समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर सबसे बड़ा विवाद 1885 में शाह बानू केस से हआ था। सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानू के पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया लेकिन राजीव गांधी की सरकार ने संसद में विवादास्पद कानून पेश कर दिया जिसके बाद से यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बना।



इस चिट्ठी के सामने आते सियासी बयानबाजी तेज हो गई है। बीजेपी नेता सुदेश वर्मा ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक ही इस मामले पर राय मांग रही है वहीं सीपीआई के डी राजा ने कहा कि इस मामले पर विवाद होना तय है लेकिन आज के दौर में इसे महिलाओं के हालात के मद्देनजर समझने की जरुरत है। वहीं सीपीआई के डी राजा ने कहा कि इस मामले पर विवाद होना तय है लेकिन आज के दौर में इसे महिलाओं के हालात के मद्देनजर समझने की जरुरत है।

मुसलिम धर्मगुरु उमर अहमद इलियासी ने कहा कि ये बात लम्बे समय से भारत के अन्दर चली आ रही है। एक वर्ग है जो इस तरह की बात को करते आए है। मगर मेरा मानना है की हमारा एक अपना अधिकार है। हमारा पर्सनल लॉ है और इसमें इजाजत है कानून और सविंधान के मुताबिक की हम जिस तोर से रहना चाहे रहे। मगर कुछ लोग इसको वोट बैंक की राजनीती मे डाल देते है। अपना एजेंडा मे रखते है पर वास्तव मे इससे कोई संबंध नहीं होता।

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