- अपनी बेबाक राय रखी हैं देश के मौलिक चिंतक बजरंग मुनि ने
पिछले पांच सात वर्षो से मै यह मानता और लिखता रहा हूँ कि भारतीय राजनीति मे तीन के बीच नेतृत्व की प्रतिस्पर्धा है । 1 नीतिश कुमार 2 अरविन्द केजरीवाल, 3 नरेन्द्र मोदी।मैं समय समय पर यह भी लिखता रहा हूँ कि नरेन्द्र मोदी सत्ता का कार्यकाल केन्द्रियकरण की दिशा मे बढेगा तथा समस्याओं का निश्चित और त्वरित समाधान होगा। जबकि नीतिश कुमार तथा अरविन्द केजरीवाल, लोकतांत्रिक तरीके से कार्य करेंगे।
सत्ता विकेन्द्रित होगी लेकिन समस्याओ के समाधान मे विलंब होगा। भारत की जनता ने दोनो विकल्पो पर अलग अलग प्रयोग किया अर्थात केन्द्र की सत्ता मे नरेन्द्र मोदी को बिठा दिया तथा प्रदेश की सत्ता मे नीतिश कुमार, अरविन्द केजरीवाल को। उस समय तक अखिलेश यादव किसी गंभीर राजनैतिक चर्चा के केंद्र मे नही थे। न ही अच्छे लोगो की सूची मे, और न ही बुरे लोगो की सूची मे। किन्तु मुलायम सिंह तथा उनके दोनो भाई, लालू, पासवान, मायावती, ममता बनर्जी सरीखे नेताओं की सूची मे शामिल थे, जिन्हे कोई बहुत अच्छा आदर्श राजनेता नही कहा जा सकता। यह अवश्य है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव मे अखिलेश यादव की साफ सुथरी छवि का स्पष्ट प्रभाव दिखा था और उसका लाभ भी उनको मिला था।
अनुभव बताता है कि नरेन्द्र मोदी उम्मीद से कई गुना अधिक सफल प्रधानमंत्री हुये हैं। दूसरी ओर नीतिश कुमार भी सफल मुख्य मंत्री माने जा रहे है, तथा चुनाव के बाद उनका कद और बढा ही है। किन्तु राजनीति की कसौटी पर अरविन्द केजरीवाल और अखिलेश यादव विद्यार्थी के तौर पर परीक्षा दे रहे थे। अरविन्द केजरीवाल का 49 दिनो का कार्यकाल इतना मनमोहक था कि दिल्ली के लोगो मे एक बहुत बडी उम्मीद का संचार कर गया। उस 49 दिनो के कार्यकाल मे उनकी हर बात विश्वसनीय तथा लोकतांत्रिक लगती थी, जबकि दुबारा सत्ता मे आये तो उनसे परिस्थितियों का आकलन करने मे कहीं न कहीं चूक हुई। अरविन्द को प्रारंभ से ही यह उम्मीद थी कि नरेन्द्र मोदी की तानाशाही सरकार उन्हे बहुत जल्दी बर्खास्त कर देगी, और वे बर्खास्तगी को आधार बनाकर बड़ी आसानी से पूरे देश मे विपक्षी के एक जुझारू नेता के रूप मे स्वयं को स्थापित कर लेंगे। यहां तक कि उनके द्वारा मुझे भी यही आभाष कराया गया था और मैने अरविन्द केजरीवाल से स्पष्ट कहा था कि आप भ्रम में हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार किसी भी परिस्थिति मे आपकी सरकार को भंग नही करेगी जबकि अरविन्द केजरीवाल ने इस संबंध में मुझसे एक निश्चित दावा तक किया था।अरविन्द ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर अनेको उटपटांग आरोप लगाये और वह सब कुछ किया जो उनकी अपनी सरकार की बर्खास्तगी के लिये किया जा सकता था। किन्तु नरेन्द्र मोदी की सरकार ने यह निश्चित कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाये हम अरविन्द केजरीवाल की सरकार को बर्खास्त नहीं करेंगे। अपनी इस एक रणनीतिक चूक के कारण आज अरविन्द केजरीवाल की ऐसी स्थिति हो गई है कि न तो वो राजनीतिक शहीद ही हो पा रहे हैं न ही वे एक सफल मुख्यमंत्री के रूप मे स्थापित हो पा रहे हैं।
यदि हम इसके ठीक विपरीत अखिलेश यादव की चर्चा करे तो मुलायम सिंह परिवार के स्वभाव तथा कार्य प्रणाली के ठीक विपरीत अखिलेश यादव का कार्यकाल रहा। जब डी पी यादव सरीखे बाहुबली को उन्होने पार्टी मे शामिल करने से इनकार किया था, तब उनकी सोच की पहली झलक मिली थी । उसके बाद उन्होने मुजप्फरनगर के दंगो के समय इस्लामिक कटटरवाद के बढते मनोबल को तोडने के लिये थोडा सा इशारा किया था। उस समय भी उनकी प्रतिष्ठा बढी थी। अभी मथुरा मे अपने परिवार की सोच के विरूद्ध जाकर उन्होने रामवृक्ष यादव पर पुलिस कार्यवाही कराने का इशारा दिया। वह भी एक अच्छा कार्य था। किन्तु अभी दो दिन पहले अखिलेश यादव ने गाजीपुर के बाहुबली मुख्तार अंसारी और उनकी पार्टी के समाजवादी पार्टी मे सम्पन्न हो चुके विलय के विरूद्ध विद्रोह किया । यह कोई साधारण घटना नही थी। इस विलय मे उन्के चाचा तो प्रमुख थे ही किन्तु उनके पिता मुलायम सिंह जी की भी सहमति थी किन्तु अखिलेश यादव ने सशक्त कदम उठाते हुए इस विलय को तोडने के लिये अपने पिता और चाचा को मजबूर कर दिया था। मै मानता हॅू कि इस विलय के न होने से समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश मे राजनैतिक नुकसान होगा किन्तु यह भी स्पष्ट है कि इस विलय को अस्वीकार करके अखिलेश यादव ने अरविन्द केजरीवाल पर राजनैतिक बढत बना ली है। जहां अरविन्द केजरीवाल बढ बढ कर बोलने मे ही अपने को योग्यतम सिद्ध करते रहते हैं वहीं अखिलेश यादव ने चुप रहकर भी अपने को योग्यतम सिद्ध करने का सफल प्रयत्न किया।अखिलेश यादव के पास और भी अधिक कठिन कार्य था क्योकि अपने पिता और चाचा उनके स्वभाव के ठीक विपरित रजनीति के सिद्धहस्त खिलाडी रहे है, तथा अब भी वे उस खेल से बाहर नहीं हैं। किन्तु इसके बाद भी बत्तीस दातो के बीच एक जीभ के समान अखिलेश निर्विघ्न कार्य करते रहे। दूसरी ओर अरविन्द्र केजरीवाल 32 दातो के समान लगातार एक जीभ पर आक्रमण मात्र ही करते रहे और अपने दांतों को कमजोर करते रहे हैं।
अब तक मै किसी अंतिम नतीजे पर नही पहुंचा हूँ कि अरविन्द केजरीवाल को प्रधानमंत्री की दौड से बाहर करके अखिलेश यादव को उसमे शामिल करूं क्योकि अरविन्द केजरीवाल के एक आकलन की भूल दिखाई देती है। साथ ही एक अन्य बात भी पूरी तरह स्पष्ट हो गई है कि अरविन्द केजरीवाल नरेन्द्र मोदी की तुलना मे कई गुना अधिक तानाशाही प्रवृत्ति के है। दूसरी ओर अभी अखिलेश यादव की कई स्वतंत्र परीक्षा होनी बाकी है। किन्तु इतना स्पष्ट हो चूका है किअरविन्द केजरीवाल धीरे धीरे इस दौड मे पिछड रहे है तथा अखिलेश यादव धीरे धीरे इस दौड मे अपनी बढत बड़ा रहे है।अरविन्द और अखिलेश की दूरी घटती जा रही है। पता नही कब यह दूरी घटते घटते विपरित दिशा मे चली जाये।
अरविन्द केजरीवाल का रोज रोज सुबह सबसे पहले केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर किये जाने वाले असंवैधानिक भाषा के ट्वीट्स और बयान किसी सोची समझी रणनीति का तो हिस्सा नहीं था। क्या अरविन्द केजरीवाल अपनी इस रणनीति में सफल होते दिखाई दे रहे हैं। इन सभी बिंदुओं पर अपनी बेबाक राय रखी हैं देश के मौलिक चिंतक बजरंग मुनि ने
बजरंग मुनि