यूनिवर्सिटी के दौरान मन करता था छेड़छाड़ करने वालों को धुन दूं: मंजिल सैनी
लखनऊ के इंदिरागांधी प्रतिष्ठान में सोमवार शाम आयोजित ‘मेधावियों की चौपाल’ में मेधावियों को अपनी फील्ड की चैम्पियन और अपने हौसलों से अपनी पहचान बनाने वाली महिलाओं ने सम्बोधित किया। आईपीएस मंजिल सैनी, पर्वतारोही व आईपीएस ऑफिसर अपर्णा कुमार व पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा ने मेधावियों को सफलता के टिप्स दिए और उनकी जिज्ञासाएं शांत की।
अपने कृत्रिम पैर से 8848 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली अरुणिमा सिन्हा ने मेधावियों से कहा कि ‘जब आप मंजिल की ओर कदम बढ़ाते हैं तो मुश्किलें भी बहुत आती हैं। लेकिन एक गोल्डन चांस उन सभी को मिलता है जो जीत के लिए अपना जीवन भी दांव पर लगाने को तैयार होते हैं। बहुत से लोग यह दांव लगाने को तैयार नहीं होते, वे वापस लौट जाते हैं। लेकिन कई ऐसे भी होते हैं जो आगे कदम बढ़ाने को ही अपना जीवन मानते हैं। यही लोग मंजिल हासिल करते हैं और दुनिया में अपना मुकाम बनाते हैं।’ उन्होंने बच्चों को बताया कि कैसे ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना बायां पैर खो दिया लेकिन हार नहीं मानी। अरुणिमा ने बताया कि चार महीने लखनऊ के केजीएमयू और दिल्ली के एम्स में भर्ती रहीं। उनकी जान तो बच गई, लेकिन एक पैर से वे लाचार हो चुकी थीं और दूसरे पैर में स्टील की रॉड पड़ चुकी थीं। अस्पताल में लोग उन्हें देखते तो दया भरी नजरों से देखते। लगातार इन नजरों का सहते सहते अरुणिमा सिन्हा अपने लिए बुरा महसूस करने लगीं। लेकिन उन्हें जीना था और उन्हाेंने तय किया कि आत्मसम्मान के बिना वे नहीं जी सकतीं। ठीक होते होते वे अपनी मंजिल तय कर चुकी थीं। उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि कई लोगों ने उन्हें हतोत्साहित भी किया लेकिन उन्होंने जो ठान लिया उसे करके दिखाया। वहीं, तीसरे प्रयास में एवरेस्ट फतेह करने वाली अपर्णा कुमार ने बच्चों से अपनी सफलता की कहानी शेयर की। उन्होंने कहा कि आईपीएस की ट्रेनिंग के दौरान वो हिमालय को देखकर रोमांचित हो उठीं और धीरे-धीरे इस शौक को आगे बढ़ाया। इसके बाद उन्होंने सातों महाद्वीपों की ऊंची चोटियों को फतह करने का मन बनाया।
एक छात्रा ने सवाल किया कि कई दफा मन में कुछ करने को जोश होता है, वह हमें सही लगता है, लेकिन बाकियों को गलत, ऐसा क्यों?
अपने कृत्रिम पैर से 8848 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली अरुणिमा सिन्हा ने मेधावियों से कहा कि ‘जब आप मंजिल की ओर कदम बढ़ाते हैं तो मुश्किलें भी बहुत आती हैं। लेकिन एक गोल्डन चांस उन सभी को मिलता है जो जीत के लिए अपना जीवन भी दांव पर लगाने को तैयार होते हैं। बहुत से लोग यह दांव लगाने को तैयार नहीं होते, वे वापस लौट जाते हैं। लेकिन कई ऐसे भी होते हैं जो आगे कदम बढ़ाने को ही अपना जीवन मानते हैं। यही लोग मंजिल हासिल करते हैं और दुनिया में अपना मुकाम बनाते हैं।’ उन्होंने बच्चों को बताया कि कैसे ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना बायां पैर खो दिया लेकिन हार नहीं मानी। अरुणिमा ने बताया कि चार महीने लखनऊ के केजीएमयू और दिल्ली के एम्स में भर्ती रहीं। उनकी जान तो बच गई, लेकिन एक पैर से वे लाचार हो चुकी थीं और दूसरे पैर में स्टील की रॉड पड़ चुकी थीं। अस्पताल में लोग उन्हें देखते तो दया भरी नजरों से देखते। लगातार इन नजरों का सहते सहते अरुणिमा सिन्हा अपने लिए बुरा महसूस करने लगीं। लेकिन उन्हें जीना था और उन्हाेंने तय किया कि आत्मसम्मान के बिना वे नहीं जी सकतीं। ठीक होते होते वे अपनी मंजिल तय कर चुकी थीं। उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि कई लोगों ने उन्हें हतोत्साहित भी किया लेकिन उन्होंने जो ठान लिया उसे करके दिखाया। वहीं, तीसरे प्रयास में एवरेस्ट फतेह करने वाली अपर्णा कुमार ने बच्चों से अपनी सफलता की कहानी शेयर की। उन्होंने कहा कि आईपीएस की ट्रेनिंग के दौरान वो हिमालय को देखकर रोमांचित हो उठीं और धीरे-धीरे इस शौक को आगे बढ़ाया। इसके बाद उन्होंने सातों महाद्वीपों की ऊंची चोटियों को फतह करने का मन बनाया।
एक छात्रा ने सवाल किया कि कई दफा मन में कुछ करने को जोश होता है, वह हमें सही लगता है, लेकिन बाकियों को गलत, ऐसा क्यों?
जिसका जवाब मंजिल सैनी ने कुछ यूं दिया कि मैं अपना अनुभव बताती हूं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान डीटीसी की बस से बाकी लड़कियों के साथ सफर करती थी। उस दौरान ड्राइवर-कंडक्टर से लेकर कई लोगों से ईव-टीजिंग की स्थितियों से गुजरना पड़ता था। कभी-कभी मुझे लगता था कि इन लोगों को पकड़ कर धुन दूं। लेकिन यह भी सोचती थी कि मुझे ऐसी शक्ति मिले जिससे वे जो गलत कर रहे हैं, मैं उन्हें सुधारूं। आज पुलिस अधिकारी हूं और जानती हूं कि ऐसा करने वालों को सुधार सकती हूं। जो भी आप करना चाहते हैं, उसके लिए सोचें कि वह कितना सकारात्मक है और समाज को क्या योगदान देगा।