मथुरा के जवाहर बाग को कब्जामुक्त कराना मुश्किल तो था लेकिन इतना भी नहीं कि गोलियां चलने की नौबत आती। पुलिस की तीन बड़ी चूक रहीं जिनके चलते जवाहर बाग जंग का मैदान बन गया। पहली तो यह कि आपरेशन तय समय से दो दिन पहले शुरू कर दिया गया। पहले प्लान चार जून का था लेकिन बाद में अचानक दो जून कर दिया गया। इसके लिए पुलिस मानसिक रूप से तैयार ही नहीं थी। अगर शासन ने इस ऑपरेशन की जांच कराई तो कई अफसरों की गर्दन फंस सकती है। प्रदेश में चुनाव नजदीक है, इसलिए यह मुद्दा तूल पकड़ सकता है।
इस मामले में दूसरी चूक खुफिया पुलिस से हुई। मरने-मारने को तैयार बैठे आंदोलनकारियों ने हथियारों का जखीरा जमा कर लिया था। तमंचे ही नहीं, देसी बम तक हासिल कर लिए थे। इसकी भनक तक नहीं लग पाई खुफिया पुलिस को। पुलिस सूत्रों की मानें तो ऑपरेशन जवाहर पार्क की रणनीति तैयार करने वाले अफसरों को हल्के फुलके विरोध का अनुमान था। सोचा था लाठी डंडे चलेंगे, कुछ लोग खुद पर तेल उड़ेलकर आत्मदाह की कोशिश कर सकते हैं। ऊपर से खुशफहमी यह कि आंदोलनकारी दो फाड़ हो चुके हैं, रास्ता आसान हो गया है।
इसीलिए आस पास के जिलों से फोर्स नहीं मंगाई गई थी। लेकिन आपरेशन शुरू होते ही सारे भ्रम टूट गए। पुलिस ने कब्जा लेना शुरू किया और आंदोलनकारियों ने फायरिंग। खुफिया पुलिस ने रिपोर्ट दी थी कि वहां लाठी, डंडे, सरिए जमा हैं लेकिन निकले तमंचे और देसी बम। यह हाल तब रहा जब खुफिया पुलिस के अफसरों को वहां दिन रात नजर रखने की हिदायत दी गई थी। शासन पल पल का अपडेट ले रहा था। डीआईजी बार बार चक्कर लगा रहे थे।
इसीलिए आस पास के जिलों से फोर्स नहीं मंगाई गई थी। लेकिन आपरेशन शुरू होते ही सारे भ्रम टूट गए। पुलिस ने कब्जा लेना शुरू किया और आंदोलनकारियों ने फायरिंग। खुफिया पुलिस ने रिपोर्ट दी थी कि वहां लाठी, डंडे, सरिए जमा हैं लेकिन निकले तमंचे और देसी बम। यह हाल तब रहा जब खुफिया पुलिस के अफसरों को वहां दिन रात नजर रखने की हिदायत दी गई थी। शासन पल पल का अपडेट ले रहा था। डीआईजी बार बार चक्कर लगा रहे थे।