राज्यसभा में सियासी मज़बूरी के तहत एक दूसरे की मदद करते दिखेंगे सपा-रालोद-कांग्रेस
सपा, रालोद और कांग्रेस का बिहार की तर्ज पर यूपी में संभावित नया मोर्चा आकार लेने से पहले राज्यसभा चुनाव उनकी दोस्ती की परीक्षा साबित होगी। अपनी पार्टी के प्रत्याशी को जिताने के लिए ये दल एक दूसरे की मदद करते दिखेंगे। जीत के लिए वोट का आंकड़ा हासिल करने को भी इन दलों की मजबूरी हैं। माना जा रहा है कि राज्यसभा का चुनाव यूपी के2017 के चुनाव की सियायत का रुख तय करेगा।
2017 में भाजपा और बसपा को सत्ता में आने से रोकने की रणनीति की राह पर चलने की कोशिश सपा, रालोद और कांग्रेस में चल रही है। जिस तरह राजद, जेडीयू और कांग्रेस ने मोर्चा बनाकर बिहार में भाजपा को सत्ता सुख नहीं चखने दिया, उसी तरह यूपी में रालोद, सपा और कांग्रेस को एक साथ खड़ा करने की कोशिश तीनों दलों के कुछ नेताओं की है।
2017 से पहले तीनों दलों में नया मोर्चा आकार लेगा या नहीं इसमें अभी समय है, लेकिन यूपी में होने वाले राज्यसभा चुनाव में इन दलों के दिल मिलते दिख रहे हैं। यूपी में मंगलवार को प्रीति महापात्रा ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा का नामांकन करने के साथ अब चुनाव होना तय है।
एक प्रत्याशी को जीते के लिए 35 वोट जरूर चाहिए। ऐसे में सपा से सात प्रत्याशियों को जिताने के लिए के245 वोट चहिए उनसे पास 224 विधायक है। छह अन्य विधायकों का सपा को समर्थन है। जीत के लिए फिर भी बाकी 15 विधायकों केवोट चाहिए।
कांग्रेस केपास 28 विधायक है। उनको सात और विधायकों की दरकार है। भाजपा के पास एक प्रत्याशी को जिताने केबाद छह वोट बचते है। बसपा के पास दो प्रत्याशी जिताकर दस वोट बचते हैं। रालोद का कोई प्रत्याशी नहीं है, उसके पास नौ वोट हैं। रालोद अगर कांग्रेस या सपा प्रत्याशी के हक में वोट देंगा तब इन दलों की जीत पक्की हैं।
इस सब कवायद केबीच इन दलों को एक दूसरे का वोट ट्रांसफर करने की नीति अपनानी होगी। बसपा, कांग्रेस, सपा को विधान परिषद के लिए भी वोट की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में इन दलों को राज्यसभा और विधान परिषद में एक दूसरे की जरूरत को पूरा करना होगा।
रालोद का प्रत्याशी मैदान में नहीं होने के कारण सभी की नजर अजित सिंह केसमर्थन हासिल करने पर है। माना जा रहा है कि 2017 में नया मोर्चा बनाने के लिए रालोद राज्यसभा चुनाव में सपा और रालोद का साथ दे सकता है।
2017 में भाजपा और बसपा को सत्ता में आने से रोकने की रणनीति की राह पर चलने की कोशिश सपा, रालोद और कांग्रेस में चल रही है। जिस तरह राजद, जेडीयू और कांग्रेस ने मोर्चा बनाकर बिहार में भाजपा को सत्ता सुख नहीं चखने दिया, उसी तरह यूपी में रालोद, सपा और कांग्रेस को एक साथ खड़ा करने की कोशिश तीनों दलों के कुछ नेताओं की है।
2017 से पहले तीनों दलों में नया मोर्चा आकार लेगा या नहीं इसमें अभी समय है, लेकिन यूपी में होने वाले राज्यसभा चुनाव में इन दलों के दिल मिलते दिख रहे हैं। यूपी में मंगलवार को प्रीति महापात्रा ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा का नामांकन करने के साथ अब चुनाव होना तय है।
एक प्रत्याशी को जीते के लिए 35 वोट जरूर चाहिए। ऐसे में सपा से सात प्रत्याशियों को जिताने के लिए के245 वोट चहिए उनसे पास 224 विधायक है। छह अन्य विधायकों का सपा को समर्थन है। जीत के लिए फिर भी बाकी 15 विधायकों केवोट चाहिए।
कांग्रेस केपास 28 विधायक है। उनको सात और विधायकों की दरकार है। भाजपा के पास एक प्रत्याशी को जिताने केबाद छह वोट बचते है। बसपा के पास दो प्रत्याशी जिताकर दस वोट बचते हैं। रालोद का कोई प्रत्याशी नहीं है, उसके पास नौ वोट हैं। रालोद अगर कांग्रेस या सपा प्रत्याशी के हक में वोट देंगा तब इन दलों की जीत पक्की हैं।
इस सब कवायद केबीच इन दलों को एक दूसरे का वोट ट्रांसफर करने की नीति अपनानी होगी। बसपा, कांग्रेस, सपा को विधान परिषद के लिए भी वोट की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में इन दलों को राज्यसभा और विधान परिषद में एक दूसरे की जरूरत को पूरा करना होगा।
रालोद का प्रत्याशी मैदान में नहीं होने के कारण सभी की नजर अजित सिंह केसमर्थन हासिल करने पर है। माना जा रहा है कि 2017 में नया मोर्चा बनाने के लिए रालोद राज्यसभा चुनाव में सपा और रालोद का साथ दे सकता है।