लखनऊ: यूपी में विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियां अपनी अपनी गोटियां बिठाने में जुटी हैं. कल समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल में गठबंधन की खबर आई. चर्चा ये रहीं कि आरएलडी प्रमुख अजित सिंह को मुलायम सिंह राज्यसभा भेजेंगे. अब खबर ये है कि राज्यसभा के लिए अजित सिंह का पत्ता कट गया है.
हालांकि, ये खबर जरूर है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन तो हो सकता है लेकिन राज्यसभा का टिकट अजित सिंह के हिस्से में मुश्किल है.
आपको बता दें कि अजित सिंह की एकाएक समाजवादी पार्टी से करीबी बढ़ गई है. अजित सिंह ने कल बीते 24 घंटे में दो बार मुलायाम सिंह से मुलाकात की थी.
अगर गठबंधन हुआ तो क्या होंगे मायने
2014 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल का हैंडपंप कमल की आंधी में उखड़ गया था. पश्चिमी यूपी में कभी अपना वर्चस्व रखने वाले अजित सिंह की खुद की सीट भी चली गई थी.
ऐसे में दिल्ली की राजनीति से अजित सिंह पिछले दो सालों से दूर हैं. लिहाजा अपनी राजनीतिक जमीन खोजने के लिए अजित सिंह ने पहले बिहार से कोशिश शुरू की थी. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में आरएलडी के विलय की चर्चा जोर शोर से चली थी. लेकिन बात बनी. अजित सिंह का पश्चिमी यूपी में जाट वोटों पर अच्छा खासा प्रभाव है.
2012 में आरएलडी का कांग्रेस के साथ गठबंधन था. पश्चिमी यूपी की जिन 46 सीटों पर आरएलडी ने उम्मीदवारे उतारे थे, उनमें 20 फीसदी वोटों के साथ 9 सीटों पर जीती थी. पश्चिमी यूपी के इन्हीं 20 फीसदी वोटों पर अब एसपी की नजर है. मतलब ये कि अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का साथ मिल जाता है तो समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र में एक मज़बूत ताक़त बन सकती है. परंपरागत तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश सपा का मज़बूत इलाक़ा नहीं माना जाता है.
2012 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 224 सीटें जीतने के साथ ही 29 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे और अजित सिंह की आरएलडी को राज्य में ढाई फीसदी से भी कम वोट मिले थे. ऐसे में समाजवादी पार्टी आंकड़ों और जातिगत वोटों का गणित बैठाएगी तो उसके लिए ये गठबंधन फायदे का सौदा हो सकता है.
हालांकि, ये खबर जरूर है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन तो हो सकता है लेकिन राज्यसभा का टिकट अजित सिंह के हिस्से में मुश्किल है.
आपको बता दें कि अजित सिंह की एकाएक समाजवादी पार्टी से करीबी बढ़ गई है. अजित सिंह ने कल बीते 24 घंटे में दो बार मुलायाम सिंह से मुलाकात की थी.
अगर गठबंधन हुआ तो क्या होंगे मायने
2014 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल का हैंडपंप कमल की आंधी में उखड़ गया था. पश्चिमी यूपी में कभी अपना वर्चस्व रखने वाले अजित सिंह की खुद की सीट भी चली गई थी.
ऐसे में दिल्ली की राजनीति से अजित सिंह पिछले दो सालों से दूर हैं. लिहाजा अपनी राजनीतिक जमीन खोजने के लिए अजित सिंह ने पहले बिहार से कोशिश शुरू की थी. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में आरएलडी के विलय की चर्चा जोर शोर से चली थी. लेकिन बात बनी. अजित सिंह का पश्चिमी यूपी में जाट वोटों पर अच्छा खासा प्रभाव है.
2012 में आरएलडी का कांग्रेस के साथ गठबंधन था. पश्चिमी यूपी की जिन 46 सीटों पर आरएलडी ने उम्मीदवारे उतारे थे, उनमें 20 फीसदी वोटों के साथ 9 सीटों पर जीती थी. पश्चिमी यूपी के इन्हीं 20 फीसदी वोटों पर अब एसपी की नजर है. मतलब ये कि अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का साथ मिल जाता है तो समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र में एक मज़बूत ताक़त बन सकती है. परंपरागत तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश सपा का मज़बूत इलाक़ा नहीं माना जाता है.
2012 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 224 सीटें जीतने के साथ ही 29 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे और अजित सिंह की आरएलडी को राज्य में ढाई फीसदी से भी कम वोट मिले थे. ऐसे में समाजवादी पार्टी आंकड़ों और जातिगत वोटों का गणित बैठाएगी तो उसके लिए ये गठबंधन फायदे का सौदा हो सकता है.