सियासी हल्के में यह चौंकाने वाली खबर है कि कांग्रेस अकेले चुनाव में न कूदकर अपने को केंद्रविंदु में रखकर सभी छोटे दलों को जोड़ने में जुट गई है। कांग्रेस ने इस काम में भी अपने पार्टी के दिग्गजों को लगाने के बजाए प्रशांत किशोर को ही यह जिम्मेदारी सौंपी है।
बिहार के महागठबंधन में शामिल होने के बाद सबसे ज्यादा फायदे में रही कांग्रेस अब यूपी में भी इस फार्मूले को आजमाने से कत्तई परहेज नहीं कर रही है। इसके दूरगामी परिणाम भी माने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि अगर कांग्रेस यह मोर्चा बनाने में थोड़ा भी सफल होती है, तो यह भी संभव है कि एक बार यूपी के कई दल और इस महागठबंधन में शामिल हो जाएं।
कांग्रेस ने छोटे दलों को शामिल कर एक बाद फिर अगड़े व पिछड़ों के समीकरण को साधने की कोशिश शुरू कर दी है। जातीय समीकरणों पर पार्टी अपने वोट बैंक को टटोलने के लिए छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने में ही भलाई महसूस कर रही है।
पीके ने भी यूपी आने के बाद बदली नीति :
चुनावी प्रबंधन के माहिर माने जाने वाले प्रशांत कुमार गुजरात व बिहार चुनाव के बाद यूपी में कांग्रेस के लिए इतने दिन काम करने में बाद अपनी नीतियों में बदलाव लाना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि पीके ने कांग्रेस आलकमान को महागठबंधन बनाए जाने को बेहतर विकल्प बताया है। इसके साथ ही जातीय समीकरणों के आधार चुनावी गोटियां बिछाए जाने में भी अब पीके सहमत होते नजर आ रहे हैं।
प्रियंका बनें फेस तब चलेंगे नेता :
छोटे दलों के साथ कांग्रेस गठबंधन करने में एक बात सिर्फ स्पष्ट नहीं कर पा रही है। सभी दल कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी को फेस बनाने के कदम पर उत्साहित होकर आगे आना चाह रहे हैं। जबकि प्रियंका बाड्रा को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किए जाने का वादा अभी कांग्रेस आला कमान से नहीं किया जा रहा है। जबकि महागठबंधन की पटकथा तैयार करने में कांग्रेस की ओर से प्रियंका को ही केंद्र में माना जा रहा है।