"ठीक है, मै चलता हूँ " दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए राजेश ने कहा "तुम अपना ध्यान रखना।"
"हूँ " मानसी एक बनावटी मुस्कराहट के साथ इतना ही कह सकी। मन में आया कि यात्रा की शुभकामना भी दे दे पर जुबान खामोश हो गए। सच तो ये था कि उस स्थिति में भला उसे होश ही कहाँ था। आज उसका सर्वस्व लूटने जा रहा था। मन उसका शोक में डूबा हुआ था लेकिन अब वो रोक भी तो नहीं सकती। आज उसके मुहब्बत का इम्तिहान था।
बरसो पहले उसने और राजेश ने मुहब्बत में बलिदान की कसम खायी थी। स्वभाब में जमीन आसमान का अंतर होने के बाद भी कब दोनों कॉलेज में एक दूसरे के करीब आ गए, पता ही नहीं चला। राजेश एक तरफ जहा बड़बोला, चंचल स्वभाव वाला था, मानसी, शांत, शर्मीली और कम बात करनेवाली। दोनों ने अपने माप बाप के विरोध के वावजूद प्रेम विवाह किया था। राजेश अकसर अपने प्रेम की कसम खाता था। उससे ज्यादा प्यार करने वाला पति कोई दूसरा और नहीं होगा, ये दावा करता था। बात भी तो सच थी। शादी के बाद उसने मानसी के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया था। माँ बाप का एकलौता लड़का होने के वावजूद उसने उनको छोड़ के मानसी को चुना। उसकी छोटी छोटी सी बात का ख्याल रखता। साथ ही अकसर इस बात की कसम जरूर खाता कि समय आनेपर वो अपनी मुहब्बत के लिए बलिदान देकर दुनिया के सामने मिसाल पेश कर देगा। मानसी जबाब में मुस्कुरा के रह जाती जिसके चलते राजेश को ये दम्भ रहता कि सबसे ज्यादा मुहब्बत वही करता है।
देखते देखते शादी के दस साल बीत गए। खुशहाल जिंदगी होने के वावजूद राजेश और मानसी को वो ख़ुशी नहीं मिली जिसका हर जोड़ा इन्तजार करता है। इतने सालो बाद भी वे औलाद के सुख से वंचित थे। मानसी एक तो पहले से ही शांत और गंभीर स्वाभाव की थी ऊपर से इस दुःख ने उसे और गंभीर बना दिया था। राजेश भी इस दुःख का इजहार नहीं करता था पर टीस उसके भी दिल में थी। इन दस सालो में राजेश के माँ बाप का गुस्सा ठंडा पड़ गया था और रिश्ते सामन्य हो गए थे। मानसी अभी भी अपने परिवार के लिए परित्यक्ता थी। राजेश के माँ बाप को अब बहु से एक वारिस की जरुरत थी। जब भी वे गाव से आते बहु से इसका जिक्र जरूर करते। डॉक्टरी जाँच से भी ये साफ़ हो गया था की दोनों में कोई कमी नहीं है। पर राजेश की माँ को लगता था की मानसी में कोई कमी है।
फिर एक दिन उनकी किसी सहेली ने राजेश की दूसरी शादी की सलाह दे डाली और उनको जच भी गई। पहली बार जब राजेश की माँ ने दबी आवाज में इसका जिक्र किया तो राजेश उखड गया। मानसी भी आवाक थी। आज के ज़माने में ये सोच वाकई हैरान करने वाला था।
राजेश की माँ उस दिन तो चुप हो गई पर जब भी राजेश अकेले होता सीधे या घुमा कर इसका जिक्र जरूर करती लेकिन राजेश अब नाराज नहीं होता था। माँ की बातो में उसे एक सम्भावना नजर आती थी। शायद बात बात में मुहब्बत का दंभ भरने वाला उसका दावा कमजोर हो रहा था। मानसी भी इस तबदीली को महसूस कर रही थी।
कुछ दिन बाद माँ चोरी छिपी लडकियों का जिक्र भी करने लगी और फोटो भी दिखाने लगी। राजेश भी चोरी छिपे फोटो देखने लगा। माँ की बातो में उसे भरोसा हो चला था। पर उसके सामने प्रश्न था की मानसी का क्या होगा। माँ ने उसका भी हल सोच लिया था। ये फ्लैट मानसी को दे देंगे और साथ में कुछ लाख रूपये भी। वैसे भी राजेश के माँ बाप गवर्नमेंट जॉब से रिटायर होके मोटी पेंशन पा रहे थे और बैंक बैलेंस भी करोडो का था।
राजेश को माँ की बात सही लगी। मानसी को पूरा भरोसा था की राजेश माँ की बात कभी नहीं सुनेगा।
इसी बीच एक दिन वो खुशखबरी भी मिल गई जिसका मानसी और राजेश को इतने सालो से इन्तजार था। मानसी अपने अंदर आये परिवर्तन को कई दिनों से महसूस कर रही थी। पर अभी वो बात को गुप्त ही रखना चाहती थी क्योकि उससे राजेश को सरप्राइज देना था। शादी के इतने सालो बाद इस ख़ुशी को जानकर, राजेश के चेहरे का भाव क्या होगा, वो देखना चाहती थी। उसने राजेश की बिना बताये जाके चेक उप भी करा लिया। टेस्ट भी पॉजिटिव आ गया और फिर तो जैसे उसके पैरो में पंख लग गए। वो जल्द से जल्द घर पहुंच के राजेश को ये खुशखबरी देना चाहती थी। इस दिन का उसने कितने सालो से इन्तजार किया था। सास को भी बताना चाहती थी कि उसमे कोई कमी नहीं है।
घर पहुंची तो उससे भी बड़ा सरप्राइज उसका इन्तजार कर रहा था। राजेश और उसकी माँ बड़े ही गंभीर मुद्रा में थे। मानसी कुछ अनहोनी की बात सोच के डर गयी।
राजेश ने चुप्पी जल्दी ही तोड़ दी और अपनी दूसरी शादी करने के फैसले को बता दिया। सामने उसने लड़की की फोटो भी आगे भी कर दी। मानसी निशब्द थी। राजेश की माँ मन ही मन मुस्कुरा रही थी। मानसी की चुप्पी उन्हें अपनी विजय लग रही थी। इतनी आसान जीत तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोची थी। मानसी चुपचाप अंदर चली गयी। अब रिपोर्ट दिखाने का क्या फायदा। हरदम अपनी मुहब्बत का दम्भ भरनेवाले राजेश से उसे उम्मीद सपने में भी नही थी।
वो अभी भी राजेश के फैसले को बदल सकती थी। अब तो उसके पास उस कारण का भी जबाब था जिसके लिए राजेश उसे छोड़ रहा था। पर बात मुहब्बत और उसको निभाने की थी। उससे भी बढ़के त्याग और अपने साथी के ख़ुशी की थी। दूसरी शादी को लेकर जितनी ख़ुशी राजेश के चेहरे पर थी, जितनी चमक आँखों में थी उतनी तो मानसी से शादी के समय भी नहीं थी। आज तक राजेश प्यार में बलिदान के दावे करता था पर आज मानसी उससे साबित कर सकती थी।
उसने अपनी प्रेगनेंसी की बात न बताने का फैसला कर लिया। कुछ ही देर में राजेश अंदर आ गया। घंटे भर वो मानसी को समझाता रहा कि वो शादी सिर्फ औलाद के लिए कर रहा है पर वो उसके लिए हमेशा वही रहेगा। उससे मिलने भी आएगा। अगर वो चाहे तो दूसरी शादी भी कर सकती थी। मानसी चुपचाप उसकी बात सुन रही थी। उसके दिमाग मे सिर्फ एक ही प्रश्न था। प्यार और शादी करते समय तो राजेश ने कभी भी औलाद को उनके प्यार की बुनियाद नहीं माना था फिर अब क्यों ?
खैर सबकुछ शांति से निपट गया।
आज इस बात को एक महीना हो गए है। राजेश आज ये शहर हमेशा के लिए छोड़ के अपने माँ बाप के गांव जा रहा है। माँ पहले ही जा चुकी है शादी के इंतजाम जो करने थे।
राजेश स्टेशन आधा घंटा पहले ही पहुंच गया। ट्रैन पहले से ही लगी थी चुकी वह वही से खुलती थी। सीट भी खिड़की वाला ही थी। करीब पांच मिनट बाद उसके मोबाइल की घण्टी बज उठी। मोबाइल पॉकेट से निकाला तो वो चौक उठा। गलती से वो मानसी का मोबाइल उठा लाया था। शायद यही बताने के लिए मानसी ने फ़ोन किया हो।
पर फ़ोन में तो चिरायु हॉस्पिटल का नंबर था। हॉस्पिटल से भला मानसी को क्यों फ़ोन आएगा। मन किसी बुरे की आशंका से डर गया। भगवान से प्रार्थना की कि सब ठीक हो।
"हेलो " उसने डरते डरते फ़ोन रिसीव किया।
"मैडम सब रिपोर्ट बढ़िया है। " उधर से एक औरत की आवाज आई " बस थोड़ा आपका वजन कम है। इसका ख्याल रखियेगा नहीं तो मिसकैरेज का डर रहता है। " उसके बाद फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया।
राजेश का माथा घूम गया। मतलब मानसी प्रेग्नेंट थी। पर कब और उसने उसे बताया क्यों नहीं।
उसने हॉस्पिटल में फ़ोन लगाया। फ़ोन उसी औरत ने उठाया।
"मैडम मै मानसी का हस्बैंड बोल रहा हूँ। क्या मुझे आप मानसी के प्रेगनेंसी रिपोर्ट पॉजिटिव आने का डेट बता सकती है ? कुछ ऑफिसियल काम है " उसने साफ़ झूठ बोला।
जबाब में रिसेप्शनिस्ट ने उसे तारीख बता दिया।
ये तो वही तारीख थी जिस दिन उसने अपने दूसरी शादी करने के फैसले को मानसी से बताया था। फिर उसे याद आया की उस दिन मानसी बाहर से आई थी और उसके हाथ में एक लिफाफा भी था। मतलब राजेश के अपने शादी के फैसले के बताने से पहले ही मानसी को अपने प्रेगनेंसी का पता चल गया था।
फिर उसने ये बात क्यों छिपायी ? उसने राजेश को दूसरी शादी से क्यों नहीं रोका ? क्या वो उसके साथ रहके खुश नहीं थी ?
कुछ देर सोचने के बाद उसे उसके प्रश्नो के उत्तर स्वयं ही मिल गए।
मुंहब्बत में दूसरे की ख़ुशी के लिए बलिदान की बात तो वह हरदम करता था। अपनी मुहब्बत के दावे करता था। पर क्या पिछले कुछ दिनों में उसकी ख़ुशी दूसरी शादी को लेकर नहीं थी। क्या उसकी मुहब्बत मानसी के लिए कम नहीं हो गयी थी। अगर ऐसा नहीं होता तो वो दूसरी शादी की बात सपने में भी नहीं सोचता। जनम जनम तक साथ जीने और मरने की कसम खाने वाला, सिर्फ दस साल में अपनी मुहब्बत के इम्तिहान में फेल हो गया। अब उसे समझ आ गया था। अक्सर उसके मुहब्बत के दावे पे चुप रहने वाली शांत, शर्मीली मानसी ने मुहब्बत के इम्तिहान में उससे बाजी मार ली थी। आज राजेश अपने ऊपर ग्लानी हो रही थी। मानसी ने अपनी मुहब्बत से कितना निचे गिरा दिया था उसे। उसकी ख़ुशी के लिए उसने बिना उफ़ तक किये अपना सर्वस्व निछावर कर दिया था।
अपनी भूल का अहसास होते ही उसके आँखों से पश्चाताप के आंसू झर झर बहने लगे। ट्रैन खुल चुकी थी। पर अब उसे नहीं जाना था। वो चलती ट्रैन से उतरने लगा।
"अरे भाई साहब क्या कर रहे हो ?" गेट पर पड़े एक सहयात्री ने टोका "ट्रैन ने स्पीड पकड़ ली है। खतरा हो सकता है। "
राजेश उसकी बात को अनसुना करते हुवे ट्रैन से निचे कूद गया। वो जानता था कि अगर आज भी उसने अपनी भूल नहीं सुधारी तो जिंदगी भर वो चैन से नहीं जी पायेगा। पर मानसी उसे माफ़ करेगी। बिलकुल करेगी। क्योकि उसका दिल विशाल था। उसने राजेश से सच्ची मुहब्बत की थी।
धनंजय तिवारी