जीवन के बहुत से मौकों पर जानने की प्रक्रिया से गुजरने से भला है कि मान लिया जाये. हांलाकि हम बड़ी-बड़ी बात बिन जाने परखे- मानते ही चले आ रहें हैं.
अब देखिए न! विश्व के जानकारों ने हमें बताया कि साबुन से बीस सेकेंड हाथ धोने पर कोरोना की लाशें बिछ जातीं हैं. तो हमने बिना तर्क-वितर्क के मान लिया. हांलाकि इसमें कुछ नया भी नहीं है हम दशकों से साबुन की बंदूक से किटाणु..विषाणु..जीवाणु...रोगाणु की लाशें बिछाते रहें हैं.. तब भी हमने टेलिविज़न देखकर मान लिया था और आज भी हम मान लिए.
हमलोग सीधे-साधे लोग हैं..झट से मान लेते हैं. हमने मान लिया कि मुंह-नाक पर मास्क कसा तो कोरोना का हर तरफ से रास्ता और हुक्का-पानी, दोनों बंद! हांलाकि, हम प्राचीन काल से आज तक.. यह नहीं जान पाये कि रात में मच्छरदानी को चारों तरफ से पैक करने के बाद भी सुबह तक चार-छह मच्छर, मच्छरदानी के भीतर घुसपैठ कैसे कर लेते हैं.
छतों के टपकने एवं मकानों में लगने वाले सीलन से परेशान गृहस्वामियों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिनके सम्पूर्ण जीवन का लगभग डेढ़ प्रतिशत वक्त.. टपकती छतों एवं सीलन लगी दीवारों की मरम्मत के नुस्खे जानने, समझने और प्रयोग करने में बीत गया.
घर की दीवारों पर टहलने वाली छिपकलियाँ तथा किचेन में झुंड बनाकर निकलने वाले कॉकरोच, पाकिस्तान के खैबर दर्रे से छिप- छिपाकर कैसे आपके किचेन तक चले आते हैं यह रहस्य हम आज तक नहीं जान पाये.
जब हम घरों में गेट लगवाते हैं तो उसे जमीन से इतनी ऊंचाई पर फिक्स करवाते हैं कि गेट के भीतर कोई बिल्ली या कुत्ते का पिल्ला न घुस पाये... बावजूद इसके, साल में दो बार मुहल्ले के कुत्ते.. गेट के नीचे से अपनी गर्दन फंसाकर कोंकियाते पाये जाते हैं.. और रही बात बिल्ली की तो उसको तो दुनिया की कोई सुरक्षा एजेंसी रोक ही नहीं पायेगी.
इसलिए मेरा मत है कि.. जानने के चक्कर में, पड़िए ही मत ! बिना सिर खपाये,मान लिजिए.
अब एक दिन मैंने अखबार में पढ़ा कि बाहर से आयी किसी चीज को बिना धुले प्रयोग में मत लाइए!
हमने मान लिया. और मानेंगे क्यों नहीं! अखबार में लिखा है तो बहुत जानने-समझने के बाद ही लिखा होगा.
अब हम अखबार तो अपने घर में छापते नहीं! इसलिए सबसे पहले अखबार को साबुन से धुला..हांलाकि तब से आज तक, अखबार पढ़ना नसीब न हुआ क्योंकि लुगदी से खबर निकालने का हुनर.. मुझे नहीं आता.
इसलिए मेरी मानिए! मान लिया कीजिए....मान लेना ही श्रेयस्कर है. जानने का चक्कर जोखिम भरा है निराशापूर्ण है...
मित्रों! खूब साबुन से हाथ धुलें.. मास्क पहने..अपना जीवन बचायें.. क्योंकि यह जानने का वक्त, है भी नहीं... यह वक्त है बात और निर्देश मानने का....बात मानकर जान बचाने का.. एक श्रेष्ठ नागरिक बनने का॥
रिवेश प्रताप सिंह