विश्व की सारी प्राचीन सभ्यताएँ मातृपूजक थीं।

Update: 2020-05-10 16:03 GMT

इतिहास की किताबें बताती हैं, विश्व की सारी प्राचीन सभ्यताएँ मातृपूजक थीं। जिन वनवासी जनजातियों तक सम्प्रदायों के एजेंट अभी नहीं पहुँचे, वे अब भी मातृपूजक हैं, उनका समाज स्त्री प्रधान है। हमारे लिए तो पूरी प्रकृति ही माता है। धरती माता, गङ्गा मइया, गो माता... नदी, धरती, पशु, पक्षी, पेंड़... सब मातृतुल्य हैं। पूरी सृष्टि मायामय...

वस्तुतः माँ जीवन की सबसे बड़ी सम्बल है। व्यक्ति जब दुखों से पराजित होता है तो किसी न किसी माँ की ओर ही भागता है। कोरोना के भय से इधर उधर भागती करोड़ों लोगों की भीड़ अपनी मातृभूमि की ओर ही भाग रही है। वह भीड़ जानती है कि जिस शहर को उसने अपने पसीने से गढ़ा है, इस विपत्ति काल में वह शहर भले उसे दो रोटी देने से मना कर दे, पर वह मातृभूमि अब भी गले लगाने को तैयार बैठी है जिसे छोड़ कर कभी वह भाग आयी थी। यह माता के प्रति विश्वास है।

इस मातृत्व के भाव ने ही महाराणा प्रताप को वह शक्ति दी थी कि वे घास की रोटियों पर जी कर भी स्वाभिमान नहीं हारे! इस मातृत्व के भाव ने ही चंद्रशेखर आजाद को वह शक्ति दी थी कि वे अपने हाथों अपनी बलि चढ़ा सके... इस मातृत्व के भाव ने ही उन असँख्य क्षत्राणी माताओं को वह शक्ति दी कि वे जौहर के हवन कुंड में आहुति बन कर उतर गयीं। भारत से अधिक धरती माता का सम्मान करना और कौन जानता है...

एक नकारात्मक बात सुनिए। हाँ दे तक लोग जब जीवन से पराजित हो कर भागते थे, भी माँ की गोद में ही भागते थे। "चलूं गंगा मइया की गोद में" कह कर मृत्यु को अपनाने वालों के भाव देखिये, व्यक्ति यदि जीवन से भागता है तो भी मां की ओर ही भागता है।

दुख के चरम पर खड़ा जीव जब पीड़ा से टूट जाता है तो उसके मुँह से अनायास एक ही नाम निकलता है, माँ! वही एक क्षण है जिसके आधार पर माँ को परिभाषित किया जा सकता है, नहीं तो...

माँ का सम्मान पूरी सृष्टि का सम्मान है। मुझे लगता है कि कोई भी व्यक्ति(पुरुष हो या स्त्री) यदि अपनी माता का सम्मान करता हो तो वह किसी अन्य स्त्री को पीड़ा नहीं दे सकता। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि यदि हर व्यक्ति अपनी माता का सम्मान करने लगे तो स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे।

मैं ठेठ देहाती मानुस हूँ! पाश्चात्य नियमों के आधार पर दिन के हिसाब से उभरने वाली संवेदनाएं कभी मोहित नहीं कर पाती मुझें, फिर भी मदर्स डे का विरोध नहीं कर पाता। माँ का सम्मान आप जिस बहाने करें, अच्छा है।

हर माँ की जय हो!

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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