मजदूरों से किराया वसूली और अखिलेश द्वारा उसकी खिलाफत – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

Update: 2020-05-04 01:49 GMT


पूरा विश्व इस समय कोरेना संक्रमण से जूझ रहा है । देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका प्रसार रोकने के लिए लॉक डाउन लागू कर रखा है। प्रथम और द्वितीय चरण के लॉक डाउन क्रमश: 21 दिन और 19 दिन का देश पूरा कर चुका है। दूसरे चरण के लॉक डाउन के पूरा होने के पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा-निर्देश पर गृह मंत्रालय ने 14 दिन के लिए तीसरे चरण का लॉक डाउन घोषित कर दिया । इस लॉक डाउन के दौरान प्रदेश सरकारों और प्रशासन ने देश को तीन भागों विभक्त कर दिया । जहां पर कोरेना संक्रमित लोग बहुतायत संख्या में पाये गए और अधिक लोगों की संभावना नजर आई, ऐसे क्षेत्रों को रेड जोन घोषित कर दिया गया। जहां पर एकाध मरीज मिले और मिलने की संभावनाएं बनी रही, ऐसे क्षेत्र को ऑरेंज जोन घोषित कर दिया और जहां पर एक भी मरीज नहीं मिले और न मिलने की संभावना नजर आई, ऐसे जोन को ग्रीन जोन घोषित कर दिया । सबसे अधिक सख्ती रेड जोन में है। जहां पर आम आदमी की बात कौन करे, पत्रकारों का भी प्रवेश वर्जित है । ऑरेंज जोन में भी सख्ती है, लेकिन रेड जोन से थोड़ी कम है । यहाँ पर पत्रकार आ जा सकते हैं। खबरें एकत्र कर सकते हैं। आम आदमी को भी मास्क आदि लगा कर जरूरी कामों से आने जाने की थोड़ी –बहुत छूट मिली हुई है । ग्रीन जोन में आजादी तो है, लेकिन वहाँ भी सभी को हिदायत है कि वे विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों का पालन करें। इसके पालन की ज़िम्मेदारी सभी राज्य सरकारों ने पुलिस प्रशासन को सौंप रखी है ।

कोरेना संक्रमण को रोकने के लिए जिस दिन से लॉक डाउन लागू हुआ। उस दिन से सबसे अधिक मुसीबत मजदूर वर्ग पर पड़ी। हालांकि लॉक डाउन लागू करने के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन मजदूरों को भूखों न सोना पड़े। इसके लिए राज्य सरकारों को आवश्यक निर्देश दिये और देश की जनता से भी उन्होने अपील की कि समाजसेवी लोग आगे आएँ और इसका ख्याल रखें कि कोई भूखा न सोये। खैर विपक्षी दलों सहित तमाम समाज सेवियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, और अपनी सामर्थ्य से अधिक सेवा भाव प्रदर्शित करते हुए गरीबों, मजदूरों, मज़लूमों के लिए रोटी की व्यवस्था की । प्रशासन की ओर से भी इसकी व्यवस्था की गई। हर गरीब बस्तियों में पुलिस वाले सुबह शाम भोजन लेकर पहुंचते और सभी लोगों को वितरित करते । लेकिन लॉक डाउन के दूसरे चरण में इसमें कमी देखी गई। और तीसरा चरण आते आते समाजसेवी संस्थाएं भी ढीली पड़ गई। उनकी भी अपनी एक लिमिट है। शायद अब इन समाजसेवी संस्थाओं के पास कुछ बचा ही नहीं, जिससे वे मजदूरों, मज़लूमों और भूखे लोगों में भोजन वितरित करें । कई क्षेत्रों में पूछने पर यह पता चला कि सरकार की तरफ से जो भोजन पुलिस वाले रोज लेकर पहुँचते थे। अब दो दिन में एक बार जा रहे हैं। जब इस संबंध में मैंने उन लोगों से पूछा कि क्या इन लोगों को राशन मिल गया ? तो लोगों ने बताया कि न तो उनके पास राशन कार्ड हैं, और चालीस प्रतिशत तो ऐसे लोग हैं, जिनके पास आधार कार्ड भी नहीं है । उन्होने यह भी बताया कि पुलिस वाले सभी का नाम पता और सभी जानकारी पेपर लेकर गए थे, और कहा था कि आप सभी का राशन कार्ड बनवा देंगे, लेकिन अभी तक राशन कार्ड भी नहीं बना ।

इधर प्रथम चरण का लॉक डाउन लागू होने पर दूर-दूर प्रदेशों में काम के लिए गए मजदूरों के काम धंधे बंद हो गए। इसके बावजूद उन लोगों ने प्रथम चरण तक बड़े धैर्य के साथ प्रतीक्षा की कि इस चरण के पूरा हो जाने के बाद वे अपने-अपने घर चले जाएंगे। लेकिन जब दूसरा चरण लागू हुआ, तो उनका धैर्य और पैसा दोनों जवाब देने लगा । मजदूरों और विपक्ष ने उन्हें घर पहुँचाने की मांग उठाई। उनकी मांग नहीं सुनी गई। दूर प्रदेशों में फंसे मजदूरों को उनके घरों तक पहुँचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई। लेकिन इसी बीच सरकार ने कोटा से प्रतियोगी छात्रों को लाने के लिए जब कदम उठाया, तो मजदूरों और विपक्षी नेताओं की ओर से उन्हें भी अपने-अपने घर पहुंचाने की मांग ज़ोर शोर से उठाई गई। लॉक डाउन की बढ़ती अवधि और मजदूरों के असंतोष को देखते हुए सरकार ने उन्हें लाने के लिए विशेष ट्रेन चलाने का निर्णय लिया । अब उन्हें उनके घर भेजने की प्रक्रिया शुरू हो गई है ।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्यूटर के माध्यम से जब मजदूरों के संबंध में जब मांग उठाई गई, तो उनसे उल्टा ही प्रतिप्रश्न किया गया। जिसपर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होने लिखा कि लोकतंत्र में सरकार पर सवाल उठानेवालों पर ही सवाल उठाने का मतलब होता है कि सरकार बचने के लिए पलटवार कर रही है । कभी पीपीई की ख़राब गुणवत्ता बताने वाला घिरता है, कभी अन्न-आपूर्ति की ख़ामियों को उजागर करनेवाला । सरकार नकारात्मकता छोड़ आवागमन-परिवहन के लिए गाड़ियाँ चलाए तो अच्छा होगा ।

एक मई को पड़ने वाले मजदूर दिवस पर उन्होने एक बार फिर उनके प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए उनकी बात सरकार के सामने रखी । उन्होने लिखा कि इस साल कोरोनाकाल में एक अलग तरह का 'श्रमिक दिवस' है । देश के कई राज्यों में मज़दूर घरों से दूर बिना काम और पैसे के परेशान हैं, इस वजह से इस साल, इस दिन किसी शुभकामना या बधाई देने का अवसर तो नहीं है । परंतु श्रमिक अपनों के पास घर सुरक्षित पहुँच पाएं, ये कामना तो हम कर ही सकते हैं ।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी अपील की अवहेलना होने के बावजूद डिगे नहीं। वे लगातार मजदूरों की व्यथा व्यक्त करते हुए उन्हें उनके घर पहुँचाने की अपील करते रहे। एक बार फिर उन्होने कहा कि दूसरे राज्यों में फँसे उप्र के मज़दूरों व अन्य लोगों की मुश्किलें हर दिन बढ़ती जा रही हैं । सरकार अभी भी उनके प्रति उपेक्षा का भाव दिखा रही है । उप्र सरकार सूची व योजना बनाने के नाम पर व्यर्थ समय बर्बाद कर रही है, जबकि आधार कार्ड से चिन्हित कर उन्हें तत्काल वापस बुलाया जा सकता है । इसी बीच उन्होने फिर कहा कि मुंबई में हजारों लोगों के सड़कों पर आकर घर लौटने की माँग को देखते हुए उप्र की सरकार तुरंत नोडल अधिकारी नियुक्त करे व केंद्र के साथ मिलकर महाराष्ट्र व अन्य राज्यों में फँसे प्रदेश के लोगों को निकाले. जब अमीरों को जहाज से विदेशों से ला सकते हैं, तो गरीबों को ट्रेनों से क्यों नहीं.

बड़ी देर के बाद जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की अपील मान ली गई, और मजदूरों को लाने के लिए उनसे ट्रेनों और बसों का किराया वसूल किया जाने लगा, तब फिर उनका धैर्य जवाब दे गया और उन्होने बड़े ही साफ शब्दों में देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पर सीधा वार करते हुए कहा कि अब तो भाजपा के आहत समर्थक भी ये सोच रहे हैं कि अगर समाज के सबसे ग़रीब तबके से भी घर भेजने के लिए सरकार को पैसे लेने थे, तो पीएम केयर फंड में जो खरबों रुपया तमाम दबाव व भावनात्मक अपील करके डलवाया गया है उसका क्या होगा? अब तो आरोग्य सेतु एप से भी इस फंड में 100 रु वसूलने की ख़बर है । उसके पहले उन्होने ट्वीट करते हुए कहा कि ट्रेन से वापस घर ले जाए जा रहे गरीब, बेबस मज़दूरों से भाजपा सरकार द्वारा पैसे लिए जाने की ख़बर बेहद शर्मनाक है । आज साफ़ हो गया है कि पूँजीपतियों का अरबों माफ़ करनेवाली भाजपा अमीरों के साथ है और गरीबों के ख़िलाफ़. विपत्ति के समय शोषण करना सूदखोरों का काम होता है, सरकार का नहीं ।

सिर्फ यही नहीं, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की निगाह बाहर से आ रहे मजदूरों और उनके क्वारंटीन किए जाने में की जा रही लापरवाही पर उनकी निगाहें बराबर जमी हुई है। इस कारण एक बार उनकी दशा का उल्लेख करते हुए उन्होने ट्वीट किया कि उप्र के विभिन्न कवॉरेंटाइन सेंटर्स से बद-इंतज़ामी की ख़बरें आ रही है । कहीं इसके ख़िलाफ़ भूख हड़ताल पर बैठी महिलाओं को शासन-प्रशासन की धमकी मिली, कहीं खाने-पीने के सामान की कमी की शिकायत के बदले व्यवस्था को सुधारने का थोथा आश्वासन, ऐसे में हवाई जहाज से पुष्प वर्षा का क्या औचित्य?

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव एक ओर सरकार को चाक चौबन्द करने के लिए लगातार शाब्दिक हमले कर रहे हैं, तो दूसरी ओर उन्होने अपने कार्यकर्ताओं / नेताओं को भी हिदायत दे रखी है कि वे हित में अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहें । यह ध्यान रखें कि कहीं कोई भूखा न सोये। उनके इस निर्देश को कार्यकर्ताओं ने माना और लगातार गरीबों के बीच में भोजन आदि सामाग्री का वितरण करते रहे । उन्होने अपने कार्यकर्ताओं से अपील इन शब्दों में की थी - लॉक डाउन के समय ज़रूरी नहीं कि हर गरीब-मजबूर राशन वितरण केंद्रों तक पहुँच पाये, इसीलिए सपा के कार्यकर्ता स्वास्थ्य-निर्देशों का अनुपालन करते हुए दूरस्थ बस्तियों तक खाद्य सामग्री पहुँचा रहे हैं... आज सँपेरों की बस्ती में।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय यादव के किराये संबंधी मांग और प्रधानमंत्री केयर फंड और आरोग्य सेतु ऐप से इकट्ठा किए जा रहे कई हजार करोड़ रुपये को मजदूरों के हित में खर्च करती है कि नहीं, यह देखने की बात है । ऐसा भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विपक्ष की बातों को पूरी तरह नजरंदाज कर रहे हों। वे सुन भी रहे हैं और देर से ही सही, स्वीकार भी कर रहे हैं। प्रतिदिन उनके द्वारा कोई न कोई राहत का कदम उठाया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि मानीटरिंग का कोई प्रबंध न होने की वजह से अधिकारी और कर्मचारी भी कोताही बरत रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि जिन मजदूरों – मज़लूमों के लिए सारी योजनाएँ चलाई जाती है, उस तक शत – प्रतिशत राहत नहीं पहुँच रही है ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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