अपने ही गणतंत्र में वो सिहरा देने वाली काली रात -(धनंजय सिंह )

Update: 2020-01-27 02:40 GMT

ऑखों के सामने भाई की हत्या तो बहू बेटियों से दुष्कर्म

रातों रात उजड़ गया था साढ़े तीन लाख परिवारों का हंसता खेलता परिवार

तीस साल से विस्थापन का दंश झेल रहे कश्मीरी पंडित उस काली रात को याद कर आज भी सिहर उठते है।धरती के स्वर्ग में चमन के उजड़ने की कहानी बयां करते हुए ऑखे छलक जाती है।

सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर देश भर में हो रहे प्रदर्शन के बीच वे सवाल करते है।

1990को ये सब कहा थे,कश्मीरी पंडितों का कसूर क्या था।उस खौफनाक त्रासदी का दर्द और गुस्से के बीच कश्मीरी पंडितों को आज भी घर लौटने की उम्मीद है।अपने ही देश में शरणार्थी बनकर दर दर भटक रहे इन लोगों को नए जम्मू कश्मीर में आशा की दिखाई दे रही है।

जम्मू के नगरोटा की जगती माइफ्रेंट काॅलोनी मे कश्मीर से विस्थापित हुए करीब 5हजार परिवार रह रहे हैं।यही दो कमरों के फ्लैट में 58साल के शुभन कृष्ण रैना और अशोक धर भी परिवार के साथ रहते हैं।

क्या हुआ था उस रात को,वे सुनते ही बेचैन हो जाते है।

ऑखे भर आती है,बताते है साजिश के तहत उन्हें निकला गया।धर्मांध जिहादियों ने पहले ही कश्मीरी पंडितों को भगाने के लिए माहौल बना दिया था।

पहले समाज के एक एक कर सामाज के प्रभावशाली लोगों को मारना शुरू किया।

आतंकियों का ढेष वारंट इशू करने वाले एक जज,एडवोकेट टीका राम टपलू,कारोबारी सतीश भट्ट समेत कई पंडितों को घर से निकाल कर सरेआम गोली मार दी गई।किसी को ऑखों के सामने भाई को मार दिया,तो किसी की बहू बेटी की आबरू लूट ली गई।

जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने पर एक नर्स को आरे से जिंदा चीर दिया।जान से मारने की धमकी के बाद घर मे चावल के ड्रम में छिपे एक कश्मीरी पंडित को गोलियों से भून दिया।

इसके बाद उसकी पत्नी की खून से सने चावल पकाकर खिलाया।

कश्मीर छोड़ कर भाग जाने के लिए के घरों के बाहर और सड़कों पर पोस्टर चस्पा करवा दिए गए।अखबारों में इश्तिहार दिया गया धर्म बदलो या कश्मीर छोड़ दो।

19जनवरी 1990के दिन श्रीनगर में लाखों लोगों का जुलूस निकाला गया।नारे लगे हम क्या चाहते है आजादी,कश्मीरी पंडितों भाग जाओ,औरतों को छोड़ जाओ।

दहशत भरे माहौल में डरे सहमे पंडित घरों में दुबक गए थे।

इसी रात करीब नौ बजे पूरे कश्मीर में धार्मिक स्थलों से एक साथ एनाउंसमेंट होते है-पंडितो 24घंटे में कश्मीर छोड़ दो वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहो।

पंडित को लगा कि यहां मदद करने वाला कोई नही है।

जान और आबरू बचाने के लिए रातों रात पुरखों के घर बार छोड़ कर साढ़े तीन लाख लोग रोते बिलखते घाटी से निकल आए।

जिसने जो पहना था उसी में बहू बेटियों और बच्चों को लेकर भागा।राजकुमार टिक्कू कहते है-आतंक के इस नंगे नाच के बीच पंडितों की मदद को प्रशासन और सरकार का कोई नुमाइंदा आगे नही आया।मानों उनकी शह से सब हो रहा हो।

बचपन में जिनके साथ खेले थे,वही जान लेने के लिए उतारू थे।पंडितों के घाटी से निकलते ही उनके घरों को आग लगा दी गई।लूट-पाट के बाद मंदिर जला दिए गए।

जमीन कब्जा कर ली गई।जिनकी संपत्ति बची थी,उन्हें बेचने पर मजबूर कर दिया गया।

आज उनके पुरखों के घर खंडहर में तब्दील हो चुके है।

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