स्वामी विवेकानंद जी की सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक चेतना:- (प्रशान्त द्विवेदी)
1893 में, 30 साल के विवेकानंद और 54 साल के जमशेदजी टाटा संयोग से एक समुद्री यात्रा पर मिलते हैं। आपसी बातचीत से पता चलता है कि विवेकानंद जी 'वर्ल्ड रिलीजन कॉन्फ्रेंस' जा रहे थे और जमशेदजी भारत में स्टील इंडस्ट्री के टेक्नोल़ॉजी ट्रांसफर के लिए विदेश यात्रा पर थे।
विवेकानंद जी टाटा से कहते हैं कि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर न करके यदि हम अपनी खुद की तकनीक विकसित करें तो भारत किसी पर निर्भर नहीं रहेगा।
जमशेदजी विवेकानंद जी के 'विज्ञान बोध' और राष्ट्र-प्रेम की गहरी जड़ों से बहुत प्रभावित हुए और भारत में एक विज्ञान अनुसंधान की स्थापना के लिए उनका मार्गदर्शन चाहा। जमशेदजी और विवेकानंद आपस में दुबारा फिर कभी नहीं मिले।
________________
पाँच सालों बाद, जमशेदजी ने स्वामी जी को निम्नलिखित पत्र लिखा*:
"एस्प्लैनेड हाऊस, बॉम्बे
23 नवम्बर 1898
प्रिय स्वामी विवेकानंद,
'शायद आपको याद हो कि 31 मई 1893 की एक गर्म दोपहरी में, 'एसएस इम्प्रेस ऑफ़ इंडिया" नामक स्टीमशिप पर जापान से वैंकुवर जाते हुए मैं आपसे मिला था...तपस्वी-भारत भूमि की आत्मा के संबंध में आपसे बहुत सी बातें हुई थीं...मुझे सब याद है...मैंने आपको बताया था कि भारतीय आत्मा में तपस्वी पुट देने के लिए ये आवश्यक है कि हम विशुद्ध प्रज्ञान व चेतना युक्त मनीषियों वाले बौद्ध विहारों की स्थापना करें जहाँँ पर रहते हुए वे प्राकृतिक एवं मानव विज्ञान की उन्नति में अपना जीवन सार्थक कर सकें...और मैं जानता हूँ इस महाभियान के लिए विवेकानंद से अधिक उपयुक्त और कोई नाम नहीं है...क्या आप स्वयं को इस महाभियान से जोड़ेंगे?...
ससम्मान एवं सहृदय
आपका जमशेदजी टाटा
_________________
इसके प्रतिउत्तर में विवेकानंद जी ने सहर्ष एवं अति-उत्साही सहमति जताई और ऐसे अनुसंधान संस्थान की स्थापना करने को कहा जहाँ प्राकृतिक-विज्ञान एवं मानविकी का उच्च अध्ययन किया जा सके।
लेकिन, 4 जुलाई 1902 को स्वामी जी शरीर त्याग दिए। किंतु उनका विज़न एवं मिशन जमशेदजी ने 1909 में पूरा किया और बंगलौर में 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस' (IISc) की अवधारणा रखी।
#युवाशक्तिको_नमन
@#प्रशान्त
१२/०१/२०२०
स्वामी जी
(१२ जनवरी १८६३ - ४ जुलाई १९०२)
(जमशेदजी के लिखे हुए पत्र के कुछ अंश ही ट्रांसलेट करके प्रस्तुत किया है)