हिन्दू कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर : प्रेम शंकर मिश्र

Update: 2020-01-03 06:46 GMT

बच्चों के प्रारम्भिक बोध के लिये ..............

पञ्चाङ्ग के महीनों के आगे कोष्ठ में गैगेरियन कैलेंडर 2020-21 की डेट अंकित कर दी है - जिससे समझने में आसानी हो,

प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष बोल कर 15-15 दिन होते हैं, जब रात अंधेरी तो कृष्ण पक्ष, और जब उजली तो शुक्ल पक्ष,

पहले दिन को एकम या प्रतिपदा बोला जाता है -फिर द्वितीया या दूज, तृतीया या तीज, चतुर्थी या चौथ,पंचमी, षष्ठी-छठ, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी -तेरस, चतुर्दशी - चौदस, कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस और शुक्ल पक्ष के अंत को पूर्णिमा बोला जाता है.

बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर

इन छह ऋतुओं के दो-दो माह -

१. #चैत्र (21मार्च-20अप्रैल)

चैत, चइत, चैत्र कृष्ण प्रतिपदा यानी एकम से आरम्भ होता है, परन्तु शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गणेश-पूजन, कलश स्थापन, देवी पूजन से श्री रामजन्मोत्सव, नवमी तक मनाते हुये - सोल्लास वर्षारम्भ होता है,

चैती एक गायन विधा भी है,

चैतन्यता का प्रतीक है चैत्र !

चैत्र नामक स्वारोचिष मन्वंतर के मनु-पुत्र का भी नाम था.

चित्रा नक्षत्र से सम्बद्ध होने के कारण पहले महीने का नाम चैत्र पड़ा,

इस महीने के पहले दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का चित्र खींचा.

२. #वैशाख (21अप्रैल-21मई)

बैसाख, बइसाख में बसन्त से ग्रीष्म ऋतु में प्रवेश कराता है, रवि गेहूँ आदि की फसल पक कर तैयार होती है, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाते हैं वैशाखी.

इसी माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय-तृतीया बोलते हैं,

शुक्ल पक्ष चौदस को नृसिंह प्राकट्य भी मनाते हैं.

३. #ज्येष्ठ (22मई-21जून)

जेठ शब्द से परिचित ही होंगे,

यह 'बड़े' के रूप में प्रयुक्त होता है, वट सावित्री व्रत इसी माह की कृष्ण अमावस्या को मनाते हैं, शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा-दशहरा, फिर निर्जला-एकादशी और द्वादशी को नारद-जयन्ती.

४. #आषाढ़ (22जून-22जुलाई)

असाढ़ बोलते पूरब के भइया लोग मिल जायेंगे,

शुक्ल पक्ष की द्वितीया रथयात्रा और पूर्णिमा को व्यास या गुरु-पूर्णिमा.

५. #श्रावण (23जुलाई-22अगस्त)

सावन बोलते ही हृदय झूला झूलने लगता है, हरियाली ही हरियाली, शुक्ल तृतीया ही हरियाली तीज है, और पंचमी नाग-पञ्चमी, शिव भक्तों की बम बम और कृष्ण भक्तों की राधे राधे श्रवण कराने के लिए ही श्रावण सावन आता है.

इसी मास की शुक्ल पूर्णिमा रक्षा बन्धन - राखी नाम से जानी जाती है.

६. #भाद्रपद (23अगस्त-22सितम्बर)

भादों यानी भाद्र पद में दुनिया के सबसे भद्र ने पृथ्वी पर अपना पद यानी पाँव रखा - भाद्र पद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ - श्रीकृष्ण जन्माष्टमी बोलते हैं. शुक्ल पक्ष की अष्टमी "राधाष्टमी".

कृष्ण पक्ष की षष्ठी यानी छठ हल षष्ठी या ललही छठ भी बोली जाती है, कृष्ण अमावस्या को कुशोत्पाटनी अमावस्या बोलते हैं.

७. #आश्विन (23सितम्बर-22अक्टूबर)

बोलचाल की भाषा में क्वार या कुआर भी बोला जाता है,

कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक की अवधि ही पितृ पक्ष बोली गयी - मानो अपने कुल के जनों का स्मरण कराता है - आश्विन का प्रथम पक्ष. इसी मास के द्वितीय यानी शुक्ल पक्ष से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है, जो कि नवमी को पूरा हो दशमी को विजय दशमी - दशहरा बताता है, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी शरद-पूर्णिमा के साथ यह माह पूरा होता है.

८. #कार्तिक (23अक्टूबर-23नवम्बर)

कातिक बोलते हुए गंगा नहान का जो मजा है वह तो वही जाने जो कातिक नहाया हो. यह पूरी तरह से लोडेड माह है - "सात वार तेरह त्योहार" वाली कहावत को पूरी करता है -

कृष्ण द्वादशी - गोवत्स द्वादशी

कृ. त्रयोदशी - धन-तेरस, धन्वन्तरि जयन्ती

नरक चतुर्दशी, हनुमान जयन्ती

अमावस्या - दीपावली

शुक्ल द्वितीया - भाई दूज

शुक्ल षष्ठी - सूर्य षष्ठी डाला छठ

शुक्ल अष्टमी - गोपाष्टमी

शुक्ल एकादशी - तुलसी विवाह

शुक्ल चतुर्दशी - वैकुण्ठ-चौदस

शुक्ल पूर्णिमा - कार्तिक पूर्णिमा

९. #मार्गशीर्ष (24नवम्बर-23दिसम्बर)

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने आपको महीने में मार्गशीर्ष कहा -

मासानां मार्गशीर्षोSहम् 10.35,

मृगशिरा नक्षत्र पर इस माह की पूर्णिमा पड़ती है, अतः इस माह का नाम मार्गशीर्ष पड़ा. अग्रहायण को बोलचाल में इसे अगहन या अघहन भी बोलते हैं, अघ यानी पाप को हन मारनेवाला, या अ गहन - जिसमें सरलता हो .

इसी माह की शुक्ल पञ्चमी को सीता-राम विवाह हुआ.

१०. #पौष (22दिसम्बर-20जनवरी)

पूस की रात पढ़ते ही रोआ सिहर गया था, इसके शुक्ल पक्ष में सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। उस दिन मकर संक्रांति , खिचड़ी पोंगल मनाते हैं.

११. #माघ (21जनवरी-19फरवरी'21)

माघ शुक्ल पञ्चमी यानी सरस्वती पूजा, बसन्त ऋतु का पदार्पण.

१२. #फाल्गुन (20फरवरी-20मार्च'21)

फागुन में फगुनहट चढ़ते ही होली और फाग की आग धधक उठती है, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को शिव-विवाह हुआ, जिसे शिव-रात्रि बोलते हैं - उससे पहले वाली एकादशी - रंगभरी एकदशी बोली जाती है, और होली खेल पूर्णिमा बोल - फाल्गुन वर्ष पूरा कर जाता है.

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लोक गीतों ने हर माह के अलग अलग गीत गाये हैं,

तुलसीदास जी ने और जायसी ने बारहमासा रचा है,

घाघ, भड्डर और भड्डरी ने अनेक कहावतें इन महीनों के नाम ले लेकर कहीं हैं!

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