शुक्रिया कैसे करू तुम्हारा, पर चाहता बहुत हूँ,
शाम थी पहलु में तुम्हारे कल, सच कहता हूँ।
शुक्रिया कैसे करू तुम्हारा पर चाहता बहुत हूँ
धड़कने थमीं थी तुमको पाकर अपने पास ,
हाथो में हाथ था तुम्हारे, और लब पर थी एक प्यास।
देखती रही नज़र बस तुमको ही ए सनम ,
जैसे रहा हो शबर इनको कई जन्मों जनम।
शुक्रिया कैसे करू तुम्हारा पर चाहता बहुत हूँ ,
शाम थी पहलु में तुम्हारे कल , सच कहता हूँ।
विकास तिवारी प्रतापगढ़/प्रयागराज