ईश्वर की भक्ति भी वही कर सकता है जिसकी जन्म कुंडली मे ग्रहयोग हो

Update: 2021-02-28 13:45 GMT

प्रेम शंकर मिश्र ....

अनेक कथावाचक अपनी कथा मे कहा करते है कि भक्ति करो तो जन्मकुण्डली के अशुभ फलदायी ग्रह भी आपके लिये शुभफलदायी हो जायेंगे ।

सुदामा जी भगवान श्री कृष्ण के परमभक्त तथा परमसखा थे, लेकिन उन्होने तब तक दरिद्रता भोगी, जब तक उनके भाग्य मे दरिद्रता भोगना लिखा था ।

मैं इस बात में पूर्ण विश्वास रखता हुँ कि यदि कोई पूर्ण निष्ठा से निष्काम निःस्वार्थ भक्ति करे ,तो उसका अशुभ प्रारब्ध ही उसकी आगे कि गति के लिये शुभ मे परिवर्तित हो सकता है , लेकिन तीव्र प्रारब्ध भक्त को भी भोगना पङता है ।

भगवान कि भक्ति भी वही कर सकता है जिसकी जन्मकुण्डली मे एसे ग्रहयोग हो, जो पूर्वजन्म से भक्ति के संस्कार लेकर आया हो ।

20वी सदी मे एक महान संत हुये है जिन्हे भगवान का साक्षात दर्शन हुआ था , उन्होने बाजार मे भीख मांगने वाले एक भिखारी को कहा कि तुम्हे आज से मंदिर मे बैठकर केवल "राम" नाम का जाप करना है ,ओर कुछ नहीं करना है , आज से तुम्हारे दोनों समय के भोजन ,वस्त्र ओर रहने का भार मैं वहन करुंगा ।

भिखारी उनके साथ हो लिया, भिखारी 3-4 दिन तो मंदिर मे रहा ,ओर5 वे दिन वह वहाँ से भाग गया ।

तब उन संत ने कहा जब तक किसी मे पूर्व जन्म के भक्ति के संस्कार ना हो तब तक वह भक्ति नहीं कर सकता है ।

भक्ति अनेक जन्मों के सत्कर्मों का फल है, भक्ति जिसे प्राप्त होती है ,फिर उसे ओर कुछ प्राप्त करना बाकी नहीं रह जाता, जब प्रभु श्री राम ने हनुमान जी से वर मांगने को कहा, तो हनुमान जी भगवान से उनकी भक्ति मांगते है:--

""नाथ भगति अति सुखदायिनी ।

देहु कृपा करि अनपायिनी ।। ""

लेकिन जिसकी जन्मकुण्डली मे एसे योग ना हो तो वो क्या करे ?

उस व्यक्ति को प्रयास करके बार-बार अपने मन को ईश्वर मे लगाना चाहिये , बार-बार प्रयास करने से उसके चित्त मे भक्ति का संस्कार बनेगा , ओर फिर आगे किसी जन्म मे यही प्रयास उसका भाग्य बनकर उसकी जन्मकुण्डली मे आ जायेगा ।

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