कल टीवी पर उत्तराखंड में एनडीआरएफ सैनिकों के बचाव कार्य का वीडियो देख रहे थे। सुरंग में फंसे एक मजदूर को जैसे ही निकाला गया वह दोनों हाथ ऊपर उठा कर चिल्लाया- बद्री विशाल की जय... कल वह दृश्य देख कर रोंगटे खड़े हो गए थे, आज लिख रहा हूँ तब भी रौंगटे खड़े हो रहे हैं।
जानते हैं, इस सृष्टि में धर्म से अधिक शक्तिशाली कुछ भी नहीं। धर्म ने ही सुरंग में फंसे उस मजदूर को यह भरोसा दिया था कि वह इस संकट से बच कर निकल जायेगा, और धर्म ने ही उन सैनिकों को यह साहस दिया है कि वे मृत्यु के मुख में घुस कर जीवन निकाल लाते हैं।
व्यक्ति जब सम्पन्न हो जाता है तो कभी कभी धर्म से दूरी बनाने लगता है, पर सामान्य जन के लिए धर्म ही सबसे बड़ा सम्बल होता है। विपत्ति के क्षणों में धर्म ही उसे भरोसा देता है कि सब ठीक हो जाएगा।
शरीर के बल से व्यक्ति कुछ घण्टों तक लड़ पाता है, सम्पत्ति के बल पर व्यक्ति कुछ वर्षों तक लड़ पाता है, पर धर्म के बल पर व्यक्ति जीवन भर लड़ सकता है, बल्कि धर्म के बल पर सभ्यताएँ शताब्दियों तक लड़ जाती हैं।
मध्यकालीन इतिहास निहारिये तो आपको ऐसे सैकड़ों युद्ध मिल जाएंगे जिनमें सामने पराजय देखते हुए भी कुछ हजार की राजपूत सेना लाखों की तुर्क, अफगान या मुगल सेना से लड़ जाती थी। माथे पर कफ़न बांध कर मृत्यु से लड़ने उतरे उन महान योद्धाओं को वह अद्भुत शक्ति धर्म ही देता था। और यह धर्म ही है जिसने भारत को लगातार बारह सौ वर्षों तक लड़ने और अंततः जीत कर निकलने की शक्ति दी है।
फारस पर जब अरबी आक्रमण हुआ और सारे पारसियों का कत्लेआम होने लगा तो 36 नावों पर बैठ कर कुछ सौ पारसी अरब सागर में उतर कर भारत की ओर बढ़ गए। कहाँ अरब सागर जैसा अथाह समुद्र और कहाँ छोटी छोटी नावें... वह उन लोगों के हृदय में बहता धर्म ही था जिसने उन्हें यह भरोसा दिया था कि इस महासमुद्र को लांघ कर सुरक्षित धरा पर पहुँचा जा सकता है। और यही भरोसा उन्हें भारत की पुण्यभूमि तक पहुँचाने में सफल हुआ। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि भारत भूमि पर उतरे उन आदि पारसियों ने धरा पर उतरते ही ईश्वर का उसी तरह जयकारा लगाया होगा जैसे कल उस मजदूर ने लगाया था।
हम अपने दैनिक जीवन में भी देखते हैं कि कोई व्यक्ति जब भयभीत होता है तो मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है। भय कितना ही प्रबल हो, हनुमान चालीसा या किसी अन्य सिद्ध मंत्र के शब्द पल भर में उस भय का नाश कर देते हैं। सोच कर देखिये, विज्ञान अबतक कोई ऐसी दवा नहीं बना सका है जो व्यक्ति के अंदर के भय को मार दे, भय को धर्म ही मारता है।
भारत के हृदय में यह धर्म बना रहे तो हर संकट से निकल कर खड़ा हुआ जा सकता है। जय हो...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।