पिछले 6 महीने से पूरी दुनिया कोरोना संक्रमण से लड़ रही है। कोविड - 19 के संक्रमण की कोई वैक्सीन या दवा न होने के कारण संक्रमितों को बचाने के लिए केवल उनकी इम्युनिटी पॉवर बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं यह संक्रमण स्वस्थ व्यक्तियों में न फैले, इसके लिए दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी का प्रचार किया जा रहा है। पूरे प्रदेश को सेनिटाइज्ड करने के लिए हर हफ्ते शनिवार और रविवार को लॉक डाउन भी लगाया जा रहा है। इन दो दिनों अति आवश्यक सेवाओं को छोड़ कर अन्य गतिविधियों और सभी प्रतिष्ठानों को सख्ती से बंद कराया जा रहा है। पिछले एक महीने से मैं खुद भी गांव गांव जाकर लोगों से दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी के प्रति जागरूक कर रहा हूँ। सरकार की सख्ती और प्रचार की वजह से लोगों में जागरूकता आई है, इसमें कोई दो राय नही है।
उत्तर प्रदेश में कोविड - 19 का पहला केस मार्च में आगरा में प्रकाश में आया। जैसे ही इसकी जानकारी हुई, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने त्वरित कार्रवाई की । उस समय उत्तर प्रदेश की सैम्पलिंग कैपेसिटी प्रतिदिन के हिसाब से केवल 60 थी, जो अब एक लाख से अधिक हो गई है।
इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में कोरोना की मात्र एक लैब थी, जिनकी संख्या जुलाई में बढ़ कर 36 हो गई। उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार अब तक 30 लाख लोगों की जांच हो चुकी है । इसके अलावा लॉक डाउन के दौरान खाद्यान्न वितरण की जो व्यवस्था थी, वह अभी भी बदस्तूर जारी है । इस खाद्यान्न वितरण में बीबी उत्तर प्रदेश का सम्पूर्ण भारत मे दूसरा स्थान है। रोजगार की दिशा में भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा प्रयास किया गया। इसमें बाहर से आये प्रवासी मजदूरों को वरीयता दी गईं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वक्तव्यों के अनुसार करोड़ो लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया गया।
लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तमाम प्रयासों के बाद भी कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। आज तो उसकी संख्या 50 हजार के आसपास बताई जा रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी आंकड़े के अनुसार प्रति 10 लाख केवल 270 व्यक्ति ही संक्रमित हैं । मरीजों के ठीक होने के आंकड़े भी बेहतर बताए जा रहे हैं। जिस पर मुझे भी संशय प्रतीत नही हो रहा है क्योंकि 12 जुलाई से मैं लगातार सायकिल से कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान चला रहा हूँ। सायकिल यात्रा के माध्यम से एक गांव से दूसरे गांव जा रहा हूँ। मुझे भी कुछ ऐसा महसूस हो रहा है ।
लेकिन विपक्ष की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार पर तमाम प्रकार के आक्षेप भी लगाए जा रहे हैं । उनके अनुसार सरकार इस मोर्चे पूरी तरह विफल है ।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक लिखित बयान जारी कर कहा कि उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं स्वयं बुरी तरह फेल हो चुकी हैं। स्थिति इतनी गम्भीर है कि सत्तारूढ़ दल के ही एक दर्जन मंत्री एवं विधायक कोविड-19 की चपेट में हैं। एक कैबिनेट मंत्री की दुःखद मृत्यु हो चुकी है । उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आरोप मढ़ते हुए पूछा कि भाजपा सरकार ने साढ़े तीन वर्ष में कौन सी मेडिकल सुविधाएं विकसित की हैं? मुख्यमंत्री और उनकी टीम के अधिकारी बताएं कि भाजपा सरकार के किन मेडिकल काॅलेजों में कोविड-19 का इलाज हो रहा है? प्रदेश में जो भी मेडिकल काॅलेज हैं, वे सभी समाजवादी सरकार में बने थे। भाजपा सरकार ने एक भी मेडिकल काॅलेज नहीं बनवाया। इतने महीने बीतने के बाद भी कोविड-19 के इलाज की उचित व्यवस्था तक नहीं है।
कोरोना संक्रमण पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इससे लोगों में भय व्याप्त है और मनोवैज्ञानिक रूप से उत्तर प्रदेश की जनता हताशा की शिकार हो रही हैं। लगातार पांच महीनों से तमाम प्रतिबंधों में रहते हुए परिवार परेशान हो रहे हैं। सैकड़ों आत्महत्या करने को मजबूर हुए हैं। बच्चों के स्कूल-काॅलेज भी बंद चल रहे हैं। भाजपा सरकार के तमाम दिशा निर्देशों का पालन भी धीरे-धीरे घटता जा रहा है। अस्पतालों में मरीजों को ओपीडी में इलाज मिलना मुश्किल हो गया है। यहां तक कि गम्भीर मरीज भी इलाज के लिए घंटों तड़पते रहते हैं। कोरोना जांच की व्यवस्था भी चरमराई हुई है।
भूख-प्यास, उपचार और स्वच्छता से रिक्त उत्तर प्रदेश कोविड-19 व्यवस्था मरीजों को और ज्यादा बीमार कर रही है। व्यवस्था में लगे लोग भी उसकी चपेट में आ रहे है। कोरोना वारियर्स भी अब सरकारी उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं। जब उन्हें ही घटिया खाना दिया जाएगा, सही इलाज और देखरेख नहीं होगी तो उनका मनोबल होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जनसामान्य तो वैसे भी राम भरोसे रहने को विवश है।
गोरखपुर में स्वास्थ्यकर्मियों को भोजन नहीं मिलने और बरेली में सैनिटाइजर खरीद में भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं। बदायूँ में क्वारंटीन सेंटर पर मरीज भूख से तड़प रहे हैं। कानपुर में संक्रमित लोगों की तादाद बढ़ी है परन्तु प्रशासन निष्क्रिय है। फतेहपुर में चारपाई पर एम्बूलेंस सेवा का दर्दनाक दृश्य दिखा है। राज्य में एम्बूलेंस तक का अकाल पड़ गया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दिक्कत यह है कि उनके बयान तो बहुत दिखते हैं किन्तु जमीनी स्तर पर उनका कहीं पालन होते नहीं दिखाई देता है। लखनऊ के तेलीबाग क्षेत्रवासी एक आयुष डाक्टर की कोराना से मौत के 17 घंटे बाद भी शव वाहन नहीं मिला। केसरीखेड़ा के विक्रमनगर निवासी 36 साल के युवक की मदद की गुहार के 24 घंटे बाद पहुंची एम्बूलेंस।
आज की बदहाली के लिए भाजपा सरकार स्वयं जिम्मेदार है। सरकार का ध्यान बीमारी से निबटने में नहीं है। सरकार की प्राथमिकता में कोरोना से बचाव होना चाहिए। क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में बीमारी से लोग प्रभावित हो रहे हैं?
कानून व्यवस्था की तरह कोरोना बीमारी भी पूरी तरह से नियंत्रण के बाहर हो चुकी है। सरकार ने अपनी हठधर्मिता के कारण विपक्ष की उचित सलाह भी नहीं मानी। भाजपा सरकार अपनी अदूरदर्शिता तथा गलत नीतियों के चलते स्थिति को सुधारने के बजाय और ज्यादा बिगाड़ने में तुली है।
केंद्र हो या राज्य हर विपक्ष का यही कार्य होता है कि वह सरकार की कमियों को उजागर करते हुए उसे सतर्क और सजग करे। इस लिहाज से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के आरोपों को सही कहा जा सकता है। उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है, भारत मे इसकी सबसे अधिक जनसंख्या है । भौगोलिक स्थिति भी एक समान नही है। बोलियां भी अलग अलग हैं। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सिर्फ सरकारें ही नही, पूरी सरकारी मशीनरी लगी हुई है। 24 घंटे, तीसों दिन काम करने की वजह से कुछ कमियां होना भी लाजिमी है । यह आपत्ति काल है,वैसे में आलोचना में भी राजनीति नही दिखना चाहिए। सरकार कहे या न कहे दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी के प्रचार प्रसार का अभियान चलाना चाहिए। क्योंकि जनता में बहुत समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के कट्टर समर्थक भी हैं, वे गरीब भी है, कम से कम उन्हें मास्क खरीद कर मुहैया कराना चाहिए। पिछले चार महीने से चल रहे कोरोना संकट की वजह से गरीब की कौन कहे, मध्यम वर्ग की भी कमर टूट गई है । लेकिन यह भी सही है कि सरकार और उसकी गतिविधियों पर उनकी नजर होना चाहिए, जिससे एक सतर्क विपक्ष की भूमिका का निर्वहन भी किया जा सके ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट