पौष मास 2025–26 शुरू : तप, दान और सूर्य उपासना का पुण्य काल — जानें धार्मिक, ज्योतिषीय और सामाजिक महत्व, नियम, वर्जनाएं और इस मास का अद्भुत प्रभाव
✍️ विजय तिवारी
हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष मास आज से विधिवत आरंभ हो चुका है। यह मास धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, ज्योतिषीय, वैज्ञानिक और सामाजिक रूप से भी विशेष महत्व रखता है। इसे वर्ष का दसवां मास माना जाता है, जो मार्गशीर्ष के बाद और माघ महीने से ठीक पहले आता है। पौष मास का काल 5 दिसंबर 2025 से शुरू होकर 3 जनवरी 2026 तक रहेगा, और इसका समापन पौष पूर्णिमा के साथ होगा।
धर्म-शास्त्रों और पुराणों के अनुसार यह समय सूर्य देव की उपासना, साधना-योग, आत्म-अनुशासन, पितृ तर्पण, दान-पुण्य और धार्मिक सेवा का माना गया है। मान्यता है कि इस माह में भगवान की कृपा विशेष रूप से शीघ्र प्राप्त होती है और साधक के पापों का नाश होता है।
पौष मास का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
पौष मास के देवता सूर्य नारायण माने जाते हैं। इस दौरान प्रातःकाल सूर्य को अर्घ्य देने से ऊर्जा, तेज और आरोग्य प्राप्त होता है।
पुराणों के अनुसार इस मास में की गई साधना और तप का फल अन्य महीनों की तुलना में कई गुना अधिक मिलता है।
श्रीमद्भागवत, रामायण पाठ, विष्णु सहस्रनाम, आदित्य हृदय स्तोत्र और गीता का पाठ विशेष रूप से शुभ माना गया है।
माना जाता है कि इस काल में देवताओं और पितरों तक श्रद्धा-पूजा का सीधा प्रभाव पहुँचता है, इसलिए तर्पण की विशेष मान्यता है।
धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि जो व्यक्ति इस मास में संयम और साधना से जीवन को अनुशासित करता है, उसके कष्ट और बाधाएँ दूर होती हैं।
सूर्य उपासना का महत्व
शास्त्रों में कहा गया है—
“आदित्यं प्रीणयेत् भक्त्या सर्वं लभ्यते मनः”
अर्थात सूर्य देव को प्रसन्न करने पर जीवन के सभी क्षेत्र—धन, स्वास्थ्य, यश, विजय—में शुभ फल मिलता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ शत्रु बाधा, मानसिक तनाव और भय को दूर करता है।
वैदिक विज्ञान के अनुसार शीत ऋतु में सूर्य की किरणें शरीर में विटामिन-D और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती हैं।
इसलिए सूर्य नमस्कार, सूर्य स्नान और ध्यान अत्यंत लाभकारी माना गया है।
पौष मास में क्या करें — शुभ आचरण
महत्वपूर्ण साधना लाभ
ब्रह्ममुहूर्त में स्नान व सूर्य को अर्घ्य तेज, आरोग्य, मानसिक शांति
सफेद व पीले पदार्थ, तिल, कंबल, अनाज, गौ-दान पुण्य व पितृ कृपा
तर्पण, श्राद्ध, सेवा, भोजन दान पूर्वजों का आशीर्वाद
सत्य, संयम, जप-तप, मौन व्रत आत्मबल व आध्यात्मिक उन्नति
रामायण, गीता, भागवत का पाठ मन की शुद्धि और ज्ञान
भजन-कीर्तन, सत्संग सकारात्मक ऊर्जा
पौष मास में क्या न करें — वर्जित कर्म
अशुभ माने जाने वाले कार्य धार्मिक कारण
विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नए कार्य का शुभारंभ यह उत्सव नहीं, तप का मास
क्रोध, अपशब्द, झूठ, छल-कपट साधना बाधित होती है
शराब, मांसाहार, तामसिक भोजन मानसिक व आध्यात्मिक पतन
अत्यधिक तेल मालिश व आलस्य तेज और ऊर्जा में कमी
व्यर्थ खर्च और दिखावा पुण्य क्षीण होता है
पौराणिक संदर्भ
रामायण में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान इसी मास में कठोर तपस्या की थी।
आदित्य हृदय स्तोत्र का उपदेश महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को इसी मास में दिया था, जिससे वे रावण पर विजय हासिल कर सके।
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु इस मास में विशेष रूप से भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होते हैं।
सामाजिक और मानवीय संदेश
यह मास केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है। यह समाज और मनुष्यता की सेवा का भी समय है—
गरीबों को भोजन, वस्त्र, कंबल देना
पशु-पक्षियों को जल और आहार उपलब्ध कराना
वृद्ध, असहाय और रोगियों की सहायता करना
ऐसे कर्म सर्वोच्च पुण्य माने जाते हैं।
पौष मास 2025–26 धार्मिक कैलेंडर
तिथि विशेष अवसर
5 दिसंबर पौष मास प्रारंभ
19 दिसंबर पौष अमावस्या, तर्पण व दान दिवस
3 जनवरी 2026 पौष पूर्णिमा व समापन
तप और प्रकाश का पावन काल
पौष मास हमें भूलों को सुधारने, मन को शांत करने, और जीवन को सही दिशा देने का अवसर प्रदान करता है। जो व्यक्ति इस मास में भक्ति और तप का मार्ग अपनाता है, उसके जीवन में धन, स्वास्थ्य, यश, सफलता और दिव्य कृपा का उदय होता है।
सूर्य की तरह प्रकाशित हों, दान की तरह महान बनें, और साधना की तरह गहन—यही पौष मास का संदेश है।