1. कोई गर्म हवा का गुब्बारा न कहे मेरे पीएम को! : राजेंद्र शर्मा
अब भाई ये क्या बात हुई? विपक्ष वालों ने मोदी जी को गुब्बारा ही कहना शुरू कर दिया, वह भी मीडिया का फुलाया हुआ गुब्बारा।
कह रहे हैं कि जो आदम कद से बड़ा आकार दिखाई दे रहा है, उसमें कोई तत्व ही नहीं है। सिर्फ पतली सी रबर की थैली है। चूंकि थैली रबर की है, इसलिए उसे फुलाकर काफी बड़ा किया जा सकता है। इसी से बड़ा-सा आकार दिखाई देता है। वर्ना सब हवा ही हवा है, जिसने रबर की थैली को इतना फुलाया हुआ है कि लोगों को विशालकाय होने का भ्रम होता है।
और तो और बहुत से लोग आकार की विशालता के भ्रम में डरने भी लगे हैं। उन्हें लगता है कि जब आकार इतना बड़ा है, तो ताकत कितनी ज्यादा होगी? जबकि सच्चाई यह है कि सिर्फ एक पिन चुभोने की जरूरत है, तेजी से सारी हवा निकल जाएगी और देखते ही देखते महाकाय तस्वीर, फुस्स हो जाएगी।
लेकिन, ये सब तो विपक्ष वालों की बातें हैं, बातों का क्या? दरअस्ल, विपक्ष वालों के अपने दावे में ही अंतर्विरोध है। एक तरफ कह रहे हैं कि फूला हुआ गुब्बारा है, आसानी से हवा निकाली जा सकती है। एक पिन चाहिए और एक पिन चुभोने वाला चाहिए, बस। और दूसरी ओर खुद ही कह रहे हैं कि गुब्बारा गर्म हवा से भरा हुआ है। अब अगर गुब्बारा गर्म हवा से भरा है, तो जमीन पर तो टिका हुआ होगा नहीं। गर्म हवा का गुब्बारा है, तो जरूर जमीन से ऊपर उठा हुआ होगा। सिर्फ उठा हुआ क्यों, बाकायदा हवा में तैर रहा होगा। विज्ञान यही कहता है! अब जो गुब्बारा जमीन से ऊपर, हवा में तैर रहा है, उसमें क्या कोई ऐसे ही पिन चुभो सकता है? पिन क्या मिसाइल है, जो उडक़र जाएगी और जाकर गुब्बारे में चुभ जाएगी? और वह भी तब, जबकि गुब्बारा सिर्फ हवा में एक जगह रुका हुआ नहीं है, बाकायदा हवा में तैर रहा है।
अब मोदी जी पर किसी रस्सी-वस्सी से बंधा गुब्बारा होने का इल्जाम तो विपक्ष वाले भी नहीं लगा सकते हैं। किसी रस्सी-वस्सी से बंधे होते तो क्या यह मुमकिन था कि इधर संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ, और उधर मोदी जी उड़कर इंग्लैंड और मालदीव की चार दिन की यात्रा पर निकल गए! और यह कोई पहली बार भी नहीं हुआ है। उल्टे अब तो यही नया नार्मल है यानी इधर संसद में हंगामा चालू और उधर मोदी जी के हवाई जहाज का इंजन चालू।
और हां, हवाई जहाज के इंजन के चालू होने से याद आयी। पार्लियामेंट में बताया गया है कि 2021 से लगाकर अब तक, पांच साल में मोदी जी की विदेश यात्राओं पर कुल 350 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं यानी 70 करोड़ रुपये सालाना।
सवाल यह है कि अगर मोदी जी वाकई गरम हवा का गुब्बारा होते, तो क्या इतना खर्चा करने की जरूरत पड़ती? नहीं, हम ये नहीं कह रहे हैं कि यह खर्चा अपने आप में बहुत ज्यादा है। सीधी सी बात है कि अगर विश्वगुरु बनने की इच्छा पाली है या भक्तों की भाषा में कहें तो शेर पाला है, तो खर्चा तो लगेगा ही। दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं आता है, फिर विश्वगुरु के आसन की दावेदारी मुफ्त कैसे आ जाएगी।
अब प्लीज ये मत कहने लगना कि विश्व गुरु का आसन मिला ही कहां है? आसन मिलने के खर्चे की नहीं, आसान की दावेदारी के यानी उम्मीदवारी के और उसके लिए प्रचार के खर्चे की बात की जा रही है। बेशक, इसमें विदेश में हर जगह, ‘‘मोदी-मोदी’’ करने के लिए, देश-विदेश से निवासी-अनिवासी भारतीयों को जुटाने का खर्चा भी शामिल है।
खैर, मुद्दे की बात यह है कि अगर मोदी जी गर्म गैस का गुब्बारा होते, तो कम से कम हवाई जहाज से लेकर तेल तक यानी हवाई यात्रा का खर्चा तो बच ही गया होता। बस गुब्बारे को दिशा देने की जरूरत होती। और हां! थोड़ा समय ज्यादा लग सकता था, पर उसमें क्या हर्ज था, उल्टे तब तक संसद का सत्र भी निपट गया होता। न मोदी जी रहते और न उन्हें किसी सवाल का जवाब देना पड़ता।
सवालों के जवाब से ध्यान आया, मोदी जी को गर्म हवा का गुब्बारा बताने वाले तो बिल्कुल ही गलत हैं। कहां छप्पन इंच की छाती वाले मोदी जी और कहां हवा भरा गुब्बारा। गुब्बारे में तो पेट ही पेट होता है, छाती तो होती ही नहीं है। और ‘‘ऑपरेशन सिंदूर’’ की जबर्दस्त सफलता के बाद, मोदी जी की डिग्री पर सवाल उठाने वाले भी, उनकी छाती के साइज पर सवाल नहीं उठा सकते हैं। याद रहे कि ऑपरेशन सिंदूर की सफलता भी कोई मामूली सफलता नहीं है। मामूली सफलता तो वो होती है, जिसका एलान ऑपरेशन के खत्म होने के बाद किया जाता है। ऑपरेशन सिंदूर तो जैसा कि मोदी जी ने कहा, सेनाध्यक्ष ने भी कहा, औरों ने भी कहा, अब भी जारी है! ऑपरेशन जारी है, पर सफलता हो भी चुकी, ऐसा चमत्कार छप्पन इंच के बिना क्या संभव है?
रही बात लड़ाई रुकवाने के ट्रम्प के दावे की, तो उसका मोदी जी ने जोरदार तरीके से खंडन तो उसी दिन कर दिया था, जब उन्होंने एलान किया था कि लड़ाई रुकी नहीं है, उसमें सिर्फ पॉज हुआ है! जब लड़ाई रुकी ही नहीं है, फिर ट्रम्प जी के लड़ाई रुकवाने के दावे का मतलब ही क्या है? ऐसे दावों का मोदी जी क्यों खंडन करने जाएं। सो ट्रम्प जी के पच्चीसवीं बार के दावे पर भी मोदी का वही जवाब है– लड़ाई तो रुकी ही नहीं है, सिर्फ पॉज हुई है, बाकी नो कमेंट जी! अब ये तो गर्म हवा वाले गुब्बारे के लक्षण नहीं हैं।
और गर्म हवा के गुब्बारे का लक्षण तो यह भी नहीं है कि धनखड़ साहब, तीन घंटे में ही उपराष्ट्रपति हैं से थे हो गए। नया रिकार्ड भी बना दिया, कार्यकाल के बीच में उपराष्ट्रपति की विदाई का। और वह भी मोदी जी के एक इशारा तक किए बिना। मोदी जी ने इशारा किया भी तो तब, जब धनखड़ साहब ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से इस्तीफा दे दिया। मोदी जी ने भी उनके स्वास्थ्य की कुशलता की कामना कर दी। पीछे से भाई लोगों ने धनखड़ की विदाई पार्टी का खर्चा भी बचा लिया। ऐसे बड़े-बड़े फैसले लेने वाले पीएम को विरोधी भी गर्म हवा का गुब्बारा कैसे कह सकते हैं? यह तो राष्ट्र विरोधी हरकत है। कोई गर्म हवा का गुब्बारा न कहे मेरे पीएम को!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोक लहर' के संपादक हैं।)
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2. महिमा फर्जीवाड़ा : विष्णु नागर
भारत में रोज इतने फर्जीवाड़े होते हैं कि अब तो अपना यह जीवन ही फर्जीवाड़ा लगने लगा है।
दिल्ली की बगल में गाज़ियाबाद है। खबर है कि एक जैन साहब पिछले नौ साल से यहां एक बंगले में चार फर्जी देशों के फर्जी दूतावास चला रहे थे। दूतावास तो वैसे सभी दिल्ली में होते हैं, मगर एक बंदा आराम से गाज़ियाबाद में ऐसे देशों का दूतावास चला रहा था,जो आज तक पृथ्वी पर प्रकट नहीं हुए हैं!
मजेदार है कि इतने वर्षों में किसी जनप्रतिनिधि , किसी पुलिस अधिकारी को इसकी खबर नहीं हुई! घर के बाहर फर्जी डिप्लोमैटिक नंबरों की महंगी- महंगी कारें खड़ी रहती थीं मगर किसी को किसी तरह का शक नहीं हुआ!लाखों रुपए महीने फर्जीवाड़े से जैन साहब आराम की जिंदगी जी रहे थे पर किसी को उनके इस सुख और आराम से ईर्ष्या तक नहीं हुई, जबकि ऐसा तो रामराज्य में भी नहीं होता था!
फर्जी काम करवाने वालों को जैन साहब के बंगले पर क्या धंधा चलता है, इसका पता था, मगर उत्तर प्रदेश और भारत की सरकार की डबल इंजन सरकार की पुलिस, ईडी, सीबीआई सब इससे अनजान थी! अनेक पासपोर्ट थे उनके पास, विदेश मंत्रालय के सील से लगे दस्तावेज थे उनके पास मगर सरकार को संदेह तक नहीं हुआ। पुलिस जो चोरी की योजना बना रहे लोगों को पकड़ने में माहिर हो चुकी है, उसे खुलेआम हो रही इतनी बड़ी चोरी की खबर पता चली भी तो नौ साल बाद, मगर किसी को आज तक इसके लिए लाइन हाजिर नहीं किया गया! किसी को किसी तरह की तकलीफ़ नहीं दी गई। बहुत सक्षम सरकारें जब होती हैं तो ऐसा ही होता है। ऐसी ही सरकारों के हाथों देश 'सुरक्षित' भी उसी तरह रहता है, जिस तरह नौ साल से यह दूतावास सुरक्षित था!
वैसे खबर जिनको होना चाहिए थी, सबको सब समय रही होगी। इतने साल से जमे जमाए फर्जीवाड़े की लंबी कड़ी में कहीं कोई झोल आ गया होगा, जैन साहब ने अति आत्मविश्वास में कोई पांसा गलत चल दिया होगा। नतीजा सामने है, वरना उनकी आनेवाली तीन पीढ़ियां इसी तरह खाती-कमातीं रहतीं और चैन से रहतीं!
बहुत संभव है, जिस अधिकारी ने यह फर्जीवाड़ा पकड़वाया हो, उसका मामला ऊपर से नीचे तक गड़बड़ा जाए और वह जाखड़ साहब की तरह चूं तक न कर पाए!हो सकता है, जिसने पकड़वाया हो, वह इस धंधे का जैन साहब से ऊंचा खिलाड़ी बन चुका हो और उसने शुभ मुहूर्त में इन्हें निबटा दिया हो!
वैसे फर्जीवाड़ा हमारे देश में हवा-पानी, धूप-छांव की तरह प्राकृतिक हो चुका है। थोड़ी-सी मुश्किलों के बाद सब ठीक हो जाता है, क्योंकि यह देश फर्जीवाड़ों के दम पर ही प्रगति पर प्रगति और विकास पर विकास करता जा रहा है। जहां-जहां जैन साहब की बेध्यानी से 'प्रसाद' समय से नहीं पहुंचा होगा, वहां चक्रवृद्धि ब्याज समेत पहुंचा दिया जाएगा और सब यथावत-सा हो जाएगा। वैसे भी बताते हैं कि जैन साहब, चंद्रास्वामी और अदनान खागोशी जैसे टाप क्लास के 'उस्तादों 'की संगत में रहे हैं, तो 'रूल आफ द गेम' जानते होंगे, गिर कर फिर उठ जाएंगे! वैसे भी राजनीति हो या व्यवसाय, जो बदनाम है, उसी का नाम है।
जैन साहब इस धंधे में अकेले नहीं रहे होंगे। उन्होंने भी किसी से दीक्षा ली होगी। इस खबर के फैलने के बाद गुरुजी अपनी शिष्य मंडली के साथ स्विट्जरलैंड आदि किसी खूबसूरत मुल्क के दौरे पर चले गए होंगे। सही जगह से सही समय पर ग्रीन सिग्नल मिल जाएगा, तो फिर धंधे से लग जाएंगे। यहां कुछ भी रुकता नहीं है और फ्राड का मिजाज ही कुछ ऐसा है कि वह किसी के रोके रुकता नहीं! गति में ही उसकी सद्गति है।
भारत में जो भी चाहिए, सब, सब जगह मिलता है, क्योंकि सब जगह आजकल 'गुजरात माडल' ही चल रहा है। खरीदने पर तो न्याय भी मिल जाता है। अभी भारत के एटार्नी जनरल ने खुद बताया कि उन्होंने आनलाइन फर्जीवाड़ा का उदाहरण पेश करने के लिए 'सुप्रीम कोर्ट आफ कर्नाटक' नाम से एक फर्जी वेबसाइट बनाई है और कानून ऐसे हैं कि कोई कुछ नहीं कर सकता! कुछ समय पहले गुजरात में फर्जी अदालत, फर्जी जज के फर्जी निर्णय की खबर आई थी। वह तो एक केस में एक आदमी हाईकोर्ट पहुंच गया, तो मामला खुल गया। फर्जी अदालतें हैं, तो फर्जी गवाह भी हैं। फर्जी फैसले हैं, तो फर्जी सील-मोहर भी है। फर्जी सिक्के हैं, तो फर्जी नोट भी हैं। फर्जी पासपोर्ट हैं, तो फर्जी वीसा भी है। फर्जी अस्पताल हैं, तो फर्जी डाक्टर भी हैं और फर्जी रोगी भी हैं। फर्जी दवाएं तो न जाने कबसे हमारी सेवा करती आ रही हैं। फर्जी लोन एप हैं और फर्जी लोन आफर हैं। इस समय बिहार में मतदाताओं का फर्जी गहन निरीक्षण चल रहा है, जिससे 64 लाख लोग मतदाता सूची से गायब हो जाएंगे। सारे देश में बंगाली मुसलमानों को फर्जी बांग्लादेशी बनाने का अभियान भी जोरों पर है।
प्रधानमंत्री कार्यालय के फर्जी अधिकारी भी बीच-बीच में पकड़े गए हैं। फर्जी आईएएस और आईपीएस अधिकारी आज भी कहीं न कहीं सक्रिय अवश्य होंगे। फर्जी ईडी- सीबीआई का चलन भी चल चुका है। डिजिटल अरेस्ट भी खूब होने लगी है और प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना भी उसमें एक बार फंस चुके हैं।
खाने-पीने की कौनसी चीज आज असली है, कौन-सी नकली, कहना कठिन है। दूध फर्जी, मक्खन फर्जी और फर्जी घी भी है। नकली मावे की नकली मिठाइयां भी खूब हैं। अभी राखी आ रही है, इन्हें खूब खाइए और खूब खिलाना भी मत भूलिए। अभी चूक जाएं, तो दशहरे- दीपावली पर खाइए-खिलाइए। फर्जी से आप बच नहीं सकते। फर्जी ऊपर है, तो फर्जी नीचे भी है। फर्जी दायें हैं, तो फर्जी बांयें भी है। किसी न किसी रास्ते, किसी न किसी गली से अचानक आपके सामने आकर वह आपको पकड़ लेता है। पुलिस से तो उम्मीद रखिएगा मत कि वह मदद के लिए आएगी। आई तो वह आपको धर लेगी।
लेखक सोच रहे होंगे कि मैं फर्जी लेखकों की चर्चा करूंगा मगर मैं ऐसी ग़लती नहीं करूंगा, क्योंकि पता नहीं कोई मुझे ही इसमें लपेटे में ले ले! फर्जी पेंटिंग का बाजार भी सुनते हैं गर्म काफी से भी ज्यादा गर्म है! अच्छे-अच्छे चकरा जाते हैं। सरकार का तो बुनियादी काम ही लोगों को फर्जी मसलों में उलझाना है, मगर साहेब की फर्जी मार्कशीट पर सवाल उठाना मना है। इस पर पच्चीस हजार का जुर्माना लग जाता है। फर्जी की महिमा आजकल सारा भारत ही क्या, सारी दुनिया गा रही है।
फर्जी की मैंने इतनी आरती उतारी, आपको कुछ प्रेरणा प्राप्त हुई या नहीं?
इतना फर्जीवाड़ा है भाइयों-बहनों कि हम जैसे नालायक 25 प्रतिशत फर्जी का भी वर्णन करने में समर्थ नहीं हैं!भूल-चूक, लेनी-देनी!
(कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)