सेना में अनुशासन सर्वोपरि: गुरुद्वारा जाने से इनकार करने वाले ईसाई ऑफिसर की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की
रिपोर्ट : विजय तिवारी
नई दिल्ली।
भारतीय सेना में सेवा दे रहे एक ईसाई अधिकारी द्वारा यूनिट के आधिकारिक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेना जैसे अनुशासित बल में व्यक्तिगत आस्था को कर्तव्य से ऊपर नहीं रखा जा सकता, और आदेश उल्लंघन करने वाला अधिकारी सेना में सेवा जारी रखने का हकदार नहीं है।
मामला कैसे शुरू हुआ
रिपोर्ट्स के अनुसार यूनिट में एक पारंपरिक कार्यक्रम के तहत सैनिकों और अधिकारियों को गुरुद्वारा में आयोजित ‘सरबत दा भला’ आशीर्वाद समारोह में शामिल होना था।
यह कार्यक्रम धार्मिक अनुष्ठान कम और यूनिट की परंपरा व टीम-एकता को मजबूत करने की सैन्य प्रक्रिया अधिक माना जाता है।
लेकिन संबंधित ईसाई अधिकारी ने कहा कि उनकी धार्मिक मान्यता गुरुद्वारा में जाने की अनुमति नहीं देती, इसलिए वे कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। वरिष्ठों के आदेश के बावजूद उन्होंने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया।
सेना ने मानी ‘डिसिप्लिनरी ब्रेक’
अधिकारी के इस रवैये को सेना ने आदेश अवहेलना माना।
सेना का तर्क था कि—
यूनिट परंपराओं में शामिल होना आदेश का हिस्सा होता है।
यह किसी व्यक्ति की धार्मिक पहचान को बाध्य नहीं करता।
सेना धर्म के आधार पर किसी पर कोई अनुष्ठान थोपती नहीं, लेकिन यूनिट-परंपराओं का पालन अनिवार्य है।
इसके बाद अधिकारी ने सैन्य कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि सेना में अनुशासन, आदेश पालन और कमांड की गरिमा सर्वोच्च है। कोर्ट ने कहा—
“अगर कोई अधिकारी आदेश का पालन करने से इनकार करता है, वह सेना में रहने योग्य नहीं।”
“भारतीय सेना एक विशिष्ट अनुशासनिक संस्था है; यहां व्यक्तिगत मान्यताएं यूनिट सामंजस्य से ऊपर नहीं रखी जा सकतीं।”
“यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता का नहीं, बल्कि आदेश की अवहेलना का है।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी प्रवृत्तियाँ सैन्य अनुशासन के लिए अस्वीकार्य हैं।
इसके साथ ही अधिकारी की याचिका खारिज कर दी गई।
फैसले का व्यापक असर
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में आने वाले ऐसे मामलों पर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन देगा जहाँ
व्यक्तिगत धर्म, परंपरा या धार्मिक चिन्हों के नाम पर आदेश पालन में ढील की कोशिश की जाए।
यह निर्णय यह भी स्थापित करता है कि
भारतीय सेना में धार्मिक विविधता का सम्मान तो है, लेकिन सेना की परंपराएँ और कमांड स्ट्रक्चर सर्वोपरि हैं।
यूनिट संस्कृति क्यों होती है महत्वपूर्ण
सेना में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और क्षेत्रों के जवान एक साथ रहते हैं।
यूनिट परंपराएँ—चाहे मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद या चर्च से जुड़ी हों—इनका उद्देश्य सैनिकों में
भाईचारा, एकता, एक-दूसरे के विश्वास का सम्मान, और
यूनिट आइडेंटिटी को मजबूत करना होता है।
इसलिए अदालत ने भी माना कि यह मामला धर्म थोपने का नहीं, बल्कि मिलिट्री डिसिप्लिन की अनिवार्यता का है।