स्वामी प्रसाद मौर्य ने BJP पर लगाया आतंकी मानसिकता बढ़ाने का आरोप; बयान से बढ़ी सियासी तल्ख़ी, दोनों पाले आमने-सामने

Update: 2025-11-20 09:52 GMT

 

रिपोर्ट : विजय तिवारी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर बयानों की तपिश बढ़ गई है।

पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी “आतंकी मानसिकता को बढ़ावा देती है।”

इस विवादास्पद टिप्पणी के सामने आते ही राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई—सत्तापक्ष ने तीखा पलटवार किया, वहीं विपक्ष में भी इस बयान को लेकर अलग-अलग सुर उभरे।

स्वामी प्रसाद मौर्य का आरोप—“डर, विभाजन और दमन की राजनीति हावी”

मौर्य ने एक जनसभा में कहा कि -

BJP ऐसी विचारधारा को आगे बढ़ा रही है जो समाज में खांचे गहरी करती है।

सत्ता का इस्तेमाल विरोधी आवाज़ों को दबाने के लिए किया जा रहा है।

केंद्रीय एजेंसियाँ एकतरफा कार्रवाई कर रही हैं, जिससे आम लोगों में असुरक्षा बढ़ी है।

उन्होंने तंज करते हुए कहा कि असहमति जताने वालों को देशद्रोही बताना “लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला” है।

BJP का कड़ा जवाब—“बेतुका, चुनावी निराशा में दिया गया बयान”

BJP नेताओं ने मौर्य की टिप्पणी को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि -

जनता आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति नहीं चाहती।

मौर्य लगातार विवादों को जन्म देकर सुर्खियों में बने रहने की कोशिश करते हैं।

उनकी टिप्पणी न सिर्फ आधारहीन है बल्कि सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाली है।

पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा कि “राजनीतिक मतभेद को आतंकी सोच से जोड़ना बेहद गैर-जिम्मेदाराना है।”

विपक्ष में अलग-अलग सुर—“चिंता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता”

कुछ विपक्षी दलों ने सीधे समर्थन न देते हुए भी कहा कि -

असहमति की आवाज़ों को लगातार दबाया जा रहा है।

सरकार को आलोचकों का जवाब तथ्य और नीति के आधार पर देना चाहिए।

मौर्य के संकेतों में राज्य की राजनीतिक और सामाजिक बेचैनी झलकती है।

कई नेताओं ने यह भी कहा कि सरकार को गंभीर आरोपों को खारिज करने के बजाय “स्थिति स्पष्ट” करनी चाहिए।

राजनीतिक संदर्भ—चुनावी मौसम में रणनीतिक बयान?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि -

मौर्य लगातार पिछड़े वर्ग, दलित समाज और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।

इस बयान से वे खुद को BJP के प्रमुख विरोधियों में स्थापित करना चाह रहे हैं।

बदले हुए समीकरणों और गठबंधनों के दौर में यह बयान चुनावी संदेश भी माना जा रहा है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसे बयानों का असर स्थानीय राजनीति से लेकर राष्ट्रीय बहस तक देखा जा सकता है।

सोशल मीडिया पर गरमागरम बहस—“साहस या स्टंट?”

बयान वायरल होते ही सोशल मीडिया दो धड़ों में बंट गया—

कुछ यूज़र्स ने इसे “सीधा और साहसी हमला” बताया,

जबकि कई लोगों ने कहा कि इस तरह के शब्द राजनीतिक मर्यादा के खिलाफ हैं।

वीडियो क्लिप्स पर टिप्पणियों का सैलाब लगातार बढ़ रहा है और दोनों पक्ष अपनी-अपनी दलीलों के साथ सक्रिय हैं।

आगे की राह—तनाव और बढ़ सकता है

BJP कानूनी या राजनीतिक कदम उठा सकती है।

विपक्ष इस बयान को सरकार के खिलाफ जनभावना से जोड़कर भुनाने का प्रयास करेगा।

आगामी बैठकों, रैलियों और विधानमंडल सत्र में यह मुद्दा प्रमुख रूप से उठ सकता है।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि आने वाले हफ्तों में यह विवाद यूपी की सियासत को और ज्यादा गर्माने वाला है।

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