एक मई से शुरू हुआ स्वदेशी जागरण मंच का “अमेजान,वालमार्ट,फ्लिपकार्ट भारत छोड़ो अभियान”

Update: 2025-05-03 00:59 GMT


भारत की जीडीपी में 10% हिस्सेदारी रखने वाले खुदरा व्यापार जो भारत में 8% एंप्लॉयमेंट जनरेट करता है को निगल जाने को आमादा है विश्व की बड़ी अमरीकन ऑनलाइन मार्केट कम्पनियाँ अमेजॉन एवं फ्लिपकार्ट। इन के विरोध में अब कई ट्रेडर्स एवं ट्रेडर्स यूनियन लामबंध हो रही हें।

आई बी ई एफ की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2022 मैं 7.8 बिलियन ट्रांजैक्शन प्रतिदिन ई-कॉमर्स पर पाए गए हैं । भारत में बढ़ रहे ऑनलाइन शॉपिंग व्यापार का आकलन यह है कि वर्ष 2030 तक ई मार्केट 500 मिलियन क्रॉस कर जाएगा जो वर्ष 2020 तक 150 मिलियन तक था। कुल खुदरा बाजार में ई-कॉमर्स खुदरा की हिस्सेदारी 2018 के 4% से बढ़कर 2023 में 8% हो गई है और 2028 तक 13-15% तक पहुंचने की उम्मीद है।

बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां अनैतिक तरीकों का उपयोग करके अपने व्यापार को बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं, और पारंपरिक दुकानदारों और छोटी ई-कॉमर्स फर्मों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर रही हैं। इन कंपनियों की रणनीति यह है कि वे भारी छूट देकर उपभोक्ताओं को लुभाती हैं, और घाटा उठाकर किसी तरह बाजार पर कब्जा कर लेना चाहती हें उसके बाद उनकी मनमर्जी से वो उपभोक्ताओं को लूट सकें। जहां पारंपरिक दुकानदार अधिकतम 10 से 20 प्रतिशत की छूट दे सकते हैं, वहीं बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां 30 से 50 प्रतिशत के बीच छूट देती हैं। यह अधिक छूट उनकी कार्यकुशलता के कारण नहीं, बल्कि बाजार पर कब्जा करने के उद्देश्य से घाटा उठाने की उनकी क्षमता के कारण है।

ये कंपनियां अपनी उदारता के कारण छूट नहीं दे रही हैं, हालांकि, यह एक सोची-समझी रणनीति है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये घाटा कई हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है और आने वाले वर्षों में और भी बढ़ने वाला है। सबसे ज्यादा घाटा फ्लिपकार्ट, अमेजन जैसी बड़ी कंपनियों को हो रहा है। कंपनियों को घाटे में दिखाकर भारत सरकार को आय पर दिए जाने वाले टैक्स की चोरी भी धड़ल्ले से यह कंपनियां कर रही है। खरीद लागत से कम पर बेचने की रणनीति अनैतिक है और यह प्रतिस्पर्धा को खत्म कर देती है। पारंपरिक दुकानदारों, पुस्तक विक्रेताओं आदि को व्यवसाय से बाहर करके, वित्तीय ताकत का इस्तेमाल करना किसी भी प्रकार से भारतीय बाजार के लिए उचित नहीं माना जा सकता है।

2016 से पहले देश के कानून के तहत ई-कॉमर्स में किसी भी प्रकार का विदेशी निवेश स्वीकार्य नहीं था लेकिन इन्हे तीन प्रमुख शर्तों के साथ मार्केटप्लेस मॉडल के लिए अनुमति दी गई थी। सबसे पहले, इन मार्केटप्लेस को वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को प्रभावित नहीं करना चाहिए और छूट नहीं देनी चाहिए। दूसरे, उन्हें इन्वेंटरी (स्टॉक) रखने की अनुमति नहीं थी और तीसरा, कोई भी विक्रेता 25 प्रतिशत से अधिक बिक्री नहीं करेगा। इन कंपनियों को केवल डिजिटल प्लेटफॉर्म हेतु अनुमति हैं यानी दूसरी कंपनियां इस प्लेटफार्म पर अपने को दिखा सकती हैं ओर अपना सामान बैच सकती हें किंतु ये अपनी शैल कंपनियां(नकली कंपनियां)बनाकर अपना ही समान अप्रत्यक्ष रूप से बिकवाती रहती हैं। ईन्हें अपनी गोदाम रखने की अनुमति नहीं है किंतु छद्दम नाम से (शैल कंपनियां बनाकर) अपने गोदाम रखती हैं। क्योंकि केवल भारतीय कम्पनियाँ ही ई मार्केट में व्यवसाय कर सकती हें इस लिए कोर्ट में भारतीय कंपनियों के स्थानीय मालिकों के नाम आदि दिखाकर कानूनी रूप से बच जाती हैं। करोड़ों रुपए कानूनी कंपनियों को देती हैं जिसे बिजनेस हेल्प चार्ज के नाम से कागजों में दिखाती हैं। भारत के ई-कॉमर्स में 10000 से अधिक कंपनियां है किंतु अकेले भारत के ई-कॉमर्स बाजार में फ्लिपकार्ट की हिस्सेदारी लगभग 35% है। अमरीका की कम्पनी अमेज़न इंडिया की लगभग 32% बाजार हिस्सेदारी है। पिछले वर्ष तक, अमेज़न इंडिया द्वारा 12 बिलियन डॉलर से अधिक का राजस्व अर्जित कर विदेश ले जाया गया हे। लगभग 10 बिलियन डॉलर राजस्व की कमाई के साथ अमरीकी वालमार्ट की कम्पनी फ्लिपकार्ट भारतीय बाजार को खोखला कर रही है। इन कंपनियों का स्वयं अमेरिका में भी घोर विरोध हो रहा है।

मई 2018 के महीने में, फ्लिपकार्ट ने वैश्विक खुदरा अमरीकी दिग्गज वॉलमार्ट के साथ अपनी 77 प्रतिशत इक्विटी की बिक्री के लिए एक सौदा किया था। फ्लिपकार्ट पर एफडीआई नियमों का उल्लंघन करने और कई तरीकों से कानून को दरकिनार करने के आरोप लगे। भारतीय ई मार्केट बाजार पर कब्जा करने के उद्देश्य से ही भारत के दो युवा उद्यमियों द्वारा शुरू की गई फ्लिपकार्ट ई-कॉमर्स कंपनी को वर्ष 2018 में अमेरिका की रिटेल कंपनी वालमार्ट ने बड़ी बोली लगाकर खरीद लिया और आज भारतीयों की जेब काटने का काम आसानी से कर रहे हैं। अमेजान एवं फ्लिपकार्ट कम्पनियाँ कैश बर्निंग मॉडल की है याने घाटा खाकर भी यह भारत के खुदरा व्यापार में वर्चस्व चाहती हैं।

करोना काल में लगे लॉक डाऊन का फायदा इन कंपनियों ने उठाया जिसके कारण भारत के युवा एवं भारत में बढ़ रहे स्मार्टफोन उपभोक्ताओं ने बाजारों में जाने की बजाय इन बड़ी कंपनियों के लोक लुभावने छूट अभियान के मायाजाल में फस कर इन से सामान खरीदना शुरू किया और धीरे-धीरे इन कमपनियों ने भारतीय उपभोक्ताओं को एक लत सी लगा दी हे। इस के कारण भारतीय बाजार मंदी की ओर बढ़ रहे हैं।

भारतीय रिटेल व्यापरियों एवं व्यपारी संगठनों ने १ मई से फ्लिपकार्ट,अमेजान के बहिष्कार के लिए अभियान की शुरुआत की है जो भारत के सभी प्रदेशों की राजधानियों में प्रदर्शन एवं जनजागरण के साथ आगे बढ़ रहा हे। इस “अमेजान,वालमार्ट,फ्लिपकार्ट भारत छोड़ो अभियान” की प्रमुख मांग हे कि प्रतिस्पर्धा कानून २००२ में अमेंडमेंट कर ऑफलाइन खुदरा विक्रेताओं एवं छोटे ट्रेडर्स के हितों की रक्षा के प्रावधान जोड़ें जाएं तथा सरकार एवं भारत के आम जन इन एफ डी आई ई कॉमर्स कंपनियों फ्लिपकार्ट एवं अमेजन के सभी उत्पादों एवं सेवाओं का पूर्ण बहिष्कार करें।


डा अवनीन्द्र कुमार

प्रचार प्रमुख

स्वदेशी जागरण मंच पूर्वी उप्र,

काशी प्रांत।

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