भारतीय राजनीति में धर्म और आस्था का इस्तेमाल नया नहीं है। समय-समय पर विभिन्न समुदायों के नेता धार्मिक नारों, जुलूसों और सभाओं का सहारा लेकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन इसका असर अक्सर आम जनता को भुगतना पड़ता है, जबकि असली जिम्मेदार लोग सुरक्षित रहते हैं।
1. धार्मिक जुलूस और तनाव
"आई लव मुहम्मद" जैसे नारे हों या किसी और धार्मिक उत्सव के जुलूस—इनमें आस्था का भाव होना चाहिए, लेकिन कई बार ये आयोजन भीड़ की उत्तेजना और हिंसा का कारण बन जाते हैं। इसमें शामिल लोग, खासकर युवा, अक्सर नेताओं के बहकावे में आकर कानून तोड़ बैठते हैं। नतीजतन, दंगा-फसाद होता है और सबसे अधिक नुकसान आम लोगों को उठाना पड़ता है।
2. नेताओं की भूमिका
नेताओं की राजनीति का पैटर्न यह रहा है कि वे धार्मिक भावनाओं को भड़काकर भीड़ जुटाते हैं। मौलाना तौकीर रजा जैसे नेता हों या अन्य, उन पर आरोप है कि वे धार्मिक प्रेम का दिखावा कर राजनीतिक लाभ उठाते हैं। जब हिंसा होती है, तो ये नेता किनारे हो जाते हैं और भीड़ में शामिल साधारण लोग कानूनी कार्यवाही के शिकार बन जाते हैं।
3. सरकारों का रवैया
पूर्ववर्ती सरकारों में कई बार ऐसे नेताओं को प्रत्यक्ष या परोक्ष संरक्षण मिलने के आरोप लगे हैं। यह भी कहा जाता है कि राजनीतिक समीकरण साधने के लिए उन्हें पद और दर्जा तक दिया गया। इससे संदेश गया कि कानून सब पर समान रूप से लागू नहीं होता।
4. योगी सरकार का दृष्टिकोण
वर्तमान योगी आदित्यनाथ सरकार की छवि "सख्ती" वाली है। पुलिस और प्रशासन को दंगाइयों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने का आदेश है। सरकार का दावा है कि इसी सख्ती से प्रदेश में सांप्रदायिक दंगों में कमी आई है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि कहीं-कहीं यह सख्ती भेदभावपूर्ण भी महसूस होती है।
5. असली सवाल: आम जनता की सुरक्षा
मुख्य चिंता यही है कि धार्मिक आयोजनों या नेताओं की राजनीति का खामियाजा आम जनता को न भुगतना पड़े। मुसलमान हों या किसी और समुदाय के लोग, उन्हें ऐसे मामलों में बिना वजह न फंसाया जाए। साथ ही, असली जिम्मेदारी उन नेताओं पर तय हो जो भीड़ को भड़काने का काम करते हैं।
निष्कर्ष
धर्म और राजनीति का मिश्रण समाज में विभाजन और तनाव को बढ़ाता है। प्रशासन और न्याय व्यवस्था की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि किसी समुदाय की सामान्य जनता को परेशान न किया जाए और दोषी चाहे कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, कानून उसके खिलाफ समान रूप से लागू हो। यही लोकतांत्रिक और न्यायपूर्ण रास्ता है।