इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: सहमति से बने संबंध दुष्कर्म नहीं

Update: 2025-09-14 05:27 GMT


प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रेम संबंधों और लंबे समय तक चले शारीरिक संबंधों से जुड़े एक अहम मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि यदि कोई महिला शुरू से ही यह जानती है कि सामाजिक या पारिवारिक कारणों से विवाह संभव नहीं है, और इसके बावजूद वर्षों तक अपनी सहमति से संबंध बनाए रखती है, तो ऐसी स्थिति को दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

कोर्ट की टिप्पणी

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि—

दुष्कर्म का मामला तभी बनता है जब महिला की सहमति छल, दबाव, भय या धोखे से प्राप्त की गई हो।

यदि महिला को प्रारंभ से यह ज्ञान है कि विवाह की संभावना नहीं है, और फिर भी वह लम्बे समय तक स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाए रखती है, तो यह सहमति से बने संबंध की श्रेणी में आएगा, न कि दुष्कर्म की।

केवल विवाह न होने या वादे के पूरे न होने से अपने आप संबंध को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता।

केस की पृष्ठभूमि

यह मामला तब सामने आया जब एक महिला ने अपने प्रेमी पर शादी का झूठा वादा कर लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया। लेकिन सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि महिला को पहले से ही जानकारी थी कि सामाजिक कारणों से विवाह संभव नहीं है। इसके बावजूद वह वर्षों तक स्वेच्छा से संबंध बनाए रही।

कानूनी महत्व

हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल इस केस के लिए, बल्कि भविष्य में आने वाले कई मामलों के लिए अहम माना जा रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि—

“Breach of promise” यानी विवाह का वादा टूट जाना अपने आप में दुष्कर्म नहीं है।

जब तक यह साबित न हो कि शुरुआत से ही पुरुष का इरादा धोखा देने का था, तब तक सहमति से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस निर्णय से दुष्कर्म और सहमति की परिभाषा पर स्पष्टता आई है। अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जहां आपसी सहमति से बने संबंधों को बाद में “झूठे वादे पर बनाए गए” कहकर दुष्कर्म का रूप दे दिया जाता है। हाईकोर्ट का यह फैसला ऐसे मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को और मजबूत करेगा।

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