हरियाली तीज पर पाण्डवकालीन श्री सिद्धनाथ मंदिर में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

Update: 2025-07-27 14:33 GMT


महिलाओं ने सौभाग्य की कामना के साथ रखा निर्जला व्रत, 16 श्रृंगार कर झूला झुलाया शिव-पार्वती को

आनन्द प्रकाश गुप्ता/के0के0 सक्सेना

बहराइच। सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाई जाने वाली हरियाली तीज का पर्व सोमवार को जिले भर में श्रद्धा, उत्साह और भक्ति भाव के साथ मनाया गया। पाण्डवकालीन श्री सिद्धनाथ मंदिर में इस पावन अवसर पर भव्य आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा और 16 श्रृंगार के साथ सहभागी हुईं।

सौभाग्य और समर्पण का पर्व

हरियाली तीज स्त्रियों का प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना के साथ मनाती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और माता पार्वती व भगवान शिव की पूजा करती हैं। मंदिर परिसर में पारंपरिक गीत, लोकनृत्य और झूला झुलाने की रस्में दिनभर चलीं।

सिद्धनाथ मंदिर में भव्य झांकी और झूला दर्शन

पवित्र सिद्धनाथ धाम में भगवान शिव और माता पार्वती का दिव्य श्रंगार कर उन्हें झूले पर विराजमान किया गया। श्रद्धालुओं के लिए यह झांकी आकर्षण का केंद्र रही। महिलाओं ने बारी-बारी से झूला झुलाया और मंगल गीतों के साथ व्रत की कथा सुनी। इस अवसर पर

संतों ने किया मार्गदर्शन और आशीर्वाद दिया।

श्री सिद्धनाथ पीठ के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी रवि गिरी जी महाराज ने तीज व्रत की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा, “हरियाली तीज नारी शक्ति की आस्था और आत्मबल का पर्व है। यह शिव-पार्वती के समर्पण और प्रेम की प्रेरणा देता है।”

उनके साथ कोठारी किशोर गिरी जी महाराज, नागा साधु ह्रदेश गिरी जी, और नागा बाबा उमाकांत जी महाराज ने भी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान किया और प्रसाद वितरित किया।

भक्ति और परंपरा का संगम-

हरियाली से सजे मंदिर परिसर में महिलाओं ने परंपरागत लोकगीतों पर झूमते हुए झूला झुलाया। बच्चों, युवतियों और वृद्धाओं—सभी की सहभागिता ने वातावरण को पारंपरिक रंगों से सराबोर कर दिया।

आस्था से सजी हरियाली

सावन की हरियाली में तीज पर्व की छटा देखते ही बनती थी। महिलाओं ने हरे रंग की साड़ियों, चूड़ियों और मेहंदी से खुद को सजाया और सौभाग्य का प्रतीक “सोलह श्रृंगार” कर पूजन में भाग लिया। आयोजकों द्वारा व्रती महिलाओं के लिए विशेष फलाहार और भंडारे की व्यवस्था की गई थी। हरियाली तीज पर हुए इस आयोजन ने सिद्ध किया कि परंपरा और भक्ति जब मिलती हैं, तो समाज में सौहार्द और ऊर्जा का संचार होता है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी सम्मान, प्रकृति प्रेम और पारिवारिक मूल्यों का उत्सव है।

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