समाधान दिवस या सिर्फ औपचारिकता?— अधिकारियों की मौजूदगी में सुनी गईं फरियादें, लेकिन राहत की तलाश में अब भी भटकते हैं कई लोग
रिपोर्ट: ओ पी श्रीवास्तव संग मोहम्मद अफजल..
चंदौली: जन समस्याओं के समाधान का दावा करने वाला थाना समाधान दिवस एक बार फिर जिले के थानों में आयोजित हुआ। जिलाधिकारी चंद्र मोहन गर्ग और पुलिस अधीक्षक आदित्य लांग्हे खुद थानों में पहुंचे, फरियादें सुनीं और निर्देश दिए। लेकिन सवाल वही पुराना — क्या वाकई समाधान हो रहे हैं, या ये भी एक और सरकारी शुक्रवार (इस बार शनिवार) है, जिसमें सुनवाई तो होती है, पर राहत गारंटी नहीं?
थाना अलीनगर और थाना मुगलसराय समेत सभी थानों पर अफसरों का जमावड़ा लगा, शिकायतें दर्ज की गईं, रिपोर्टें बनाई गईं, और पुराने रजिस्टर पलटे गए। राजस्व से जुड़े 165 और पुलिस से संबंधित 5 प्रार्थना पत्रों का अंबार आया, जिनमें से कुछ का मौके पर निस्तारण कर देने की औपचारिक घोषणा भी हुई।
जिलाधिकारी ने सख्त निर्देश दिए कि भौतिक सत्यापन के साथ गुणवत्तापूर्ण समाधान करें। पुलिस अधीक्षक ने भी शिकायत पंजिका पर नज़र डाली और पुराने मामलों की याद दिलाई। लेकिन हर समाधान दिवस की तरह इस बार भी वही जानी-पहचानी तस्वीर दिखी — फरियादी लाइन में खड़े, अधिकारी निर्देशों में व्यस्त और समाधान “प्रक्रिया में”।
अधिकारियों की यह सक्रियता सराहनीय है, लेकिन क्या जमीन पर भी उतनी ही तेजी से हल निकल रहा है जितनी फाइलों में दिखती है? फरियादी अब भी यही पूछ रहे हैं — सुनवाई तो हुई, पर हमारी सुनवाई कब होगी?समाधान दिवस की हकीकत तभी सार्थक होगी जब निस्तारण सिर्फ कागजों पर नहीं, बल्कि जमीन पर दिखे — वरना ये “जनसुनवाई” नहीं, सिर्फ जन-सुनाई बनकर रह जाएगी।