खेलों से दूर, नशे के करीब होती युवा पीढ़ी

Update: 2025-06-23 07:26 GMT


आनंद प्रकाश गुप्ता

बहराइच

हिमालय की तराई में बसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध ज़िला बहराइच, एक समय युवाओं की ऊर्जा और खेल भावना के लिए जाना जाता था। कुश्ती, कबड्डी, तैराकी, वॉलीबॉल, क्रिकेट और हॉकी जैसे खेल यहाँ की युवा पीढ़ी के जीवन का हिस्सा थे। मैदानों में गूंजती आवाजें, प्रतियोगिताओं में उमड़ती भीड़ और युवाओं की भागीदारी इस क्षेत्र की पहचान थी।

लेकिन अब समय ने करवट ली है। बदलती जीवनशैली, तकनीक का अत्यधिक प्रभाव, और शिक्षा प्रणाली में आए बदलावों ने युवाओं के शौक को एक नई दिशा – या कहें, विपथ – में मोड़ दिया है।

📱 मोबाइल स्क्रीन के पीछे छिपती ज़िंदगी

अब युवाओं का अधिकांश समय मोबाइल स्क्रीन पर बीतता है। पढ़ाई, मनोरंजन, और संवाद—सब कुछ डिजिटल हो गया है। मैदान सूने हैं, खेल का जोश ठंडा पड़ता जा रहा है। और इस शून्य को भरने के लिए जो कुछ सामने आ रहा है, वह है – नशे की लत।

विशेषज्ञ मानते हैं कि लगातार बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और भविष्य को लेकर अनिश्चितता ने युवा मन को कुंठा और अवसाद की ओर धकेला है। इसका परिणाम यह है कि युवा पीढ़ी चुपचाप नशे के दलदल में फंसती जा रही है।

🚨 नशे का बढ़ता दायरा

चिपड़, गांजा, नशीली गोलियाँ, अफीम और अन्य मादक पदार्थों का चलन बहराइच के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में खतरनाक गति से फैल रहा है। पुलिस और सामाजिक संगठनों के आंकड़े बताते हैं कि 16 से 25 वर्ष के युवाओं में नशे की प्रवृत्ति में बीते पाँच वर्षों में दोगुनी वृद्धि हुई है।

👂 स्थानीय आवाज़ें

गांव के बुजुर्ग रामपाल सिंह कहते हैं:

"हमारे ज़माने में शाम होते ही मैदान भर जाते थे। बच्चे खेलते, दौड़ते और जीवन से भरे होते थे। अब वे मोबाइल और नशे की गिरफ्त में हैं। यह देखकर मन पीड़ा से भर जाता है।"

🔍 सीमा क्षेत्र से जुड़ी एक और चुनौती

बहराइच नेपाल सीमा से सटा ज़िला है। इस सीमा की खुली आवाजाही का एक दुष्परिणाम यह भी है कि यहाँ के अनेक युवा बेरोजगारी के चलते नेपाल के कैसीनो और बारों की ओर रुख करते हैं, जहाँ वे न केवल आर्थिक रूप से ठगे जाते हैं, बल्कि वहाँ से नशे, अकेलेपन और मानसिक तनाव का बोझ लेकर लौटते हैं।

🛑 क्या है समाधान?

समाजशास्त्रियों और शिक्षाविदों की राय में अब समय आ गया है कि सरकार और समाज मिलकर युवाओं को सकारात्मक दिशा दें।

गांवों और कस्बों में खेल के मैदान पुनः विकसित किए जाएं

नशा विरोधी अभियान चलाए जाएं

काउंसलिंग केंद्रों की स्थापना हो

और सबसे महत्वपूर्ण, कौशल विकास और रोजगार के स्थायी अवसरों को सुनिश्चित किया जाए।

✅ निष्कर्ष

भारत का भविष्य युवा पीढ़ी में निहित है। यदि यह पीढ़ी नशे और निराशा की गिरफ्त में चली गई, तो केवल उनका नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र का भविष्य भी संकट में पड़ जाएगा। आज आवश्यकता है समझदारी से युवाओं को सही दिशा दिखाने की — ताकि वे फिर से मैदान की ओर लौटें, जीवन में अनुशासन और संघर्ष की भावना लौटे, और वे नशे नहीं, राष्ट्र निर्माण के नायक बनें।

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