भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को चंदौली में चुनौती: परिवहन विभाग की टीम पर यात्रियों की बस को बंधक बनाकर वसूली का आरोप!पीड़ितों ने लगाई सीएम योगी से न्याय की गुहार

Update: 2025-05-18 07:15 GMT


विशेष रिपोर्ट: ओ पी श्रीवास्तव, चंदौली

चंदौली: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जहाँ भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति के तहत सख्त कार्रवाई का दावा कर रही है, वहीं चंदौली जिले में परिवहन विभाग की कार्यशैली ने इस नीति की जमीनी हकीकत पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

बता दें कि गुजरात से बिहार जा रही एक प्राइवेट यात्री बस को परिवहन विभाग की प्रवर्तन टीम ने चेकिंग के नाम पर रोक लिया और परमिट की त्रुटि का हवाला देते हुए ₹20,500 का चालान किया। आरोप है कि चालान से पहले अधिकारियों ने बस चालक से ₹40,000 की 'सेटलमेंट डील' का प्रस्ताव रखा, जो न देने पर चालान काटकर बस को स्थानीय पुलिस चौकी में खड़ा करवा दिया गया।

इस कार्रवाई में बस में सवार 19 यात्रियों को 12 घंटे से अधिक समय तक बंधक जैसी स्थिति में रहना पड़ा। यात्री गर्मी और असुविधा से परेशान रहे, जिसके बाद बस चालक ने वैकल्पिक व्यवस्था कर किसी तरह यात्रियों को उनके गंतव्य की ओर रवाना किया।हालांकि, असली खेल यहीं से शुरू हुआ। जब बस चालक संभागीय परिवहन कार्यालय पहुंचा तो उसे बस छोड़ने के लिए ₹7 लाख की डील पेश की गई, जो धीरे-धीरे घटती गई और अंततः ₹2 लाख पर आकर थमी। इस बीच चालक से फाइल बनवाने और नकद पैसे लाने को कहा गया।वर्तमान में बस और उसका चालक अब भी चौकी परिसर में बंधक बने हुए हैं। चालक ने मीडिया के माध्यम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से न्याय की अपील की है और मामले में शामिल भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

हालांकि पूरे प्रकरण पर चंदौली संभागीय परिवहन अधिकारी डा सर्वेश गौतम ने सफाई पेश करते हुए कहा कि चेकिंग के दौरान परमिट और इमरजेंसी गेट ना होने के कारण चालान काटकर बस को चौकी परिसर में खड़ा किया गया है। आरआई के द्वारा फिटनेस रिपोर्ट देने के बाद शुल्क की पूर्ति करने के बाद ही आगे की कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। सेटलमेंट डिमांड की बात को उन्होंने सिरे से नकारते हुए मामले से पल्ला झाड़ लिया। फिलहाल पूरे प्रकरण में आरोप के मद्देनजर यह बात सहज सामने आ जाती है कि जो विभाग अपने भ्रष्टाचार की इंतहा के कारण हमेशा सुर्खियों में रही वो अब कथित रूप से पाक साफ कैसे हो गई। आखिरकार प्रशासन की चुप्पी पर यह सवाल उठना लाज़िमी है कि जब सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात करती है, तो क्या ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?

अब देखना यह है कि क्या शासन-प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर दोषियों पर कार्रवाई करता है या फिर यह मामला भी अन्य घटनाओं की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।




 


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