सहारनपुर : पाँच साल के समलैंगिक संबंध का भावनात्मक अंत — समाज, परिवार और कानून के बीच संघर्ष की वास्तविक तस्वीर
रिपोर्ट : विजय तिवारी
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में सोमवार को सामने आया एक संवेदनशील मामला व्यक्तिगत पसंद, भावनात्मक स्वतंत्रता और सामाजिक मान्यताओं के बीच तीव्र टकराव का उदाहरण बन गया।
मंडी थाना परिसर में करीब छह घंटे चली लंबी बातचीत, समझाइश और परामर्श के बाद दो युवतियों ने अपने पाँच वर्षों पुराने रिश्ते को समाप्त करने का निर्णय लिया।
यह फैसला आसान नहीं था—निर्णय घोषित होते ही दोनों एक-दूसरे से लिपटकर फूट-फूटकर रो पड़ीं और भविष्य में दोस्ती बनाए रखने का वादा करते हुए अलग हो गईं। वहां मौजूद लोगों की आँखें भी नम हो उठीं।
कैसे सामने आया मामला — घटनाक्रम का विस्तृत क्रम
1. शाहजहांपुर निवासी (हिंदू युवती) 6 दिसंबर को अचानक सहारनपुर पहुँची और मंडी क्षेत्र में रहने वाली तीन बच्चों की माँ (मुस्लिम महिला) के घर चली गई।
2. घर के भीतर विवाद बढ़ा और दोनों ने परिवार के सामने पति-पत्नी की तरह साथ रहने की इच्छा व्यक्त की।
3. हिंदू युवती की माँ और भाई भी सहारनपुर पहुँच गए, जहाँ कहासुनी गरम होने पर पुलिस ने हस्तक्षेप किया और दोनों परिवारों को थाने ले जाया गया।
4. पुलिस की मौजूदगी में दो परिवारों के बीच पंचायत जैसी बैठक हुई, जिसमें लगभग छह घंटे तक बातें, आरोप और समझाइश चलती रही।
5. अंततः दोनों ने परिवार के दबाव और परिस्थितियों के चलते अलग होने को तैयार हुईं, और पुलिस ने उन्हें उनके परिजनों के सुपुर्द कर दिया।
रिश्ते की शुरुआत — ऑनलाइन दोस्ती से भावनात्मक जुड़ाव तक
मुस्लिम महिला खाताखेड़ी में रहती हैं और शादीशुदा हैं। उन्होंने बताया कि—
विवाह को नौ वर्ष हो चुके हैं, परन्तु पति के साथ रिश्ते में लगातार मनमुटाव और मानसिक तनाव बना रहा।
घरेलू कलह, मारपीट और उपेक्षा के कारण कई बार मायके में रहना पड़ा।
पाँच वर्ष पहले ऑनलाइन जॉब प्लेटफॉर्म के माध्यम से हिंदू युवती से बातचीत शुरू हुई, जो धीरे-धीरे गहरे भावनात्मक रिश्ते में बदल गई।
“हिंदू युवती ने मुझे और मेरे बच्चों को दिल से अपनाया। हमने मार्च में लगभग 17 दिन साथ बिताए, जैसे एक सामान्य दांपत्य जीवन।”
दूसरी ओर, हिंदू युवती ने पुलिस के सामने कहा—
“मैं मुस्लिम महिला के साथ पति की तरह रहना चाहती थी, लेकिन मेरा परिवार इसके खिलाफ है।”
घर लौटने पर मारपीट और मानसिक प्रताड़ना का सामना करने का आरोप लगाया।
दावा किया कि परिवार ने जबरन मानसिक अस्पताल में भर्ती कराया, जहाँ से छुट्टी मिलते ही वह 6 दिसंबर को सीधे सहारनपुर चली आई।
हिंदू युवती की माँ ने गंभीर आरोप लगाए—
मुस्लिम महिला पर ब्रेनवॉश और किडनैपिंग जैसा व्यवहार करने का आरोप।
दावा कि उनकी बेटी किसी साजिश के तहत नियंत्रित की जा रही है और मुस्लिम महिला किसी गिरोह से जुड़ी है।
मुस्लिम महिला ने इन दावों को पूरी तरह असत्य और बिना आधार के बताया।
पुलिस का पक्ष
एसपी सिटी व्योम बिंदल ने बताया—
“दोनों परिवार आपसी सहमति पर पहुँच चुके हैं। किसी भी पक्ष की ओर से कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई, इसलिए दोनों को उनके परिवारों के सुपुर्द कर दिया गया।”
कानूनी दृष्टिकोण — समलैंगिक संबंध अपराध नहीं
भारत में समलैंगिकता पर कानूनी मान्यता को लेकर महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है।
6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय में आईपीसी की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जो सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध मानता था।
अदालत ने कहा—
व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।
यौन रुझान किसी की निजी पहचान का हिस्सा है, जिसका सम्मान आवश्यक है।
लेकिन अभी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली, जिसके कारण सामाजिक स्वीकार्यता की चुनौती बनी हुई है।
विशेषज्ञों की राय -
मनोवैज्ञानिक कहते हैं—
समलैंगिकता कोई बीमारी या विकार नहीं, बल्कि जन्मजात यौन अभिविन्यास है।
पारिवारिक विरोध मानसिक तनाव, अवसाद और आत्मघाती विचारों तक ले जा सकता है।
एक वरिष्ठ काउंसलर की टिप्पणी—
“भावनात्मक समर्थन किसी भी रिश्ते की नींव है। परिवार का विरोध व्यक्ति को भीतर से तोड़ देता है। समाज को समझना होगा कि प्यार कोई अपराध नहीं, बल्कि स्वाभाविक भावना है।”
सामाजिक विश्लेषण -
समाजशास्त्रियों का कहना है—
भारतीय समाज में पारंपरिक विवाह व्यवस्था और धार्मिक-सांस्कृतिक ढाँचा अब भी अत्यंत मजबूत है।
समान लिंग संबंधों को आज भी संदेह और विरोध का सामना करना पड़ता है।
युवा पीढ़ी स्वतंत्र निर्णय लेने की ओर आगे बढ़ रही है, पर सामाजिक मानसिकता अभी बदलाव स्वीकारने के लिए तैयार नहीं।
“ऐसे मामले परिवर्तन की शुरुआत का संकेत हैं, लेकिन इसे समय, संवाद और संवेदनशीलता की जरूरत है।”
सहारनपुर की यह घटना दो व्यक्तियों की निजी भावनाओं तक सीमित नहीं—
यह कानूनी अधिकार, सामाजिक सोच, पारिवारिक दबाव और भावनात्मक स्वतंत्रता के बीच संघर्ष का जीवंत उदाहरण है।
कानून बराबरी देता है, पर समाज स्वीकारने में पीछे है।
दोनों युवतियाँ अलग-अलग घर लौट चुकी हैं, पर एक-दूसरे के प्रति संवेदनाओं को बनाए रखने की इच्छा व्यक्त कर चुकी हैं।
यह कहानी बताती है कि—
“कभी-कभी रिश्ते टूटते नहीं, परिस्थितियों से अलग कर दिए जाते हैं।”