वासुदेव यादव
अयोध्या। भगवान श्रीराम की पावन नगरी अयोध्या भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यही वह धरा है जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म हुआ — जिनका जीवन धर्म, सत्य और आदर्श का प्रतीक माना जाता है। अयोध्या में निर्मित भव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आज न केवल करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि यह युगों से चली आ रही भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना का प्रतीक बन चुका है।
जब कोई भक्त रामलला के दर्शन के लिए मंदिर प्रांगण में प्रवेश करता है, तो उसके हृदय में एक अद्भुत शांति और भक्ति का भाव उमड़ पड़ता है। गर्भगृह में विराजमान बाल स्वरूप रामलला के दर्शन से ऐसा लगता है मानो समय ठहर गया हो, और प्रभु स्वयं अपने भक्तों के मन की पीड़ा सुन रहे हों। आरती के समय मंदिर में गूंजती शंखध्वनि और घंटानाद से पूरा वातावरण दिव्यता से भर उठता है।
दीपोत्सव 2025 ने तो इस दिव्यता को और भी बढ़ा दिया। अयोध्या की गलियों, घाटों और मंदिरों में दीपों की अनगिनत पंक्तियाँ ऐसे झिलमिलाईं मानो आकाश के सितारे पृथ्वी पर उतर आए हों। सरयू तट पर जलते दीपकों का नजारा अद्भुत और अलौकिक प्रतीत होता है। देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं ने “जय श्रीराम” के उद्घोष से पूरी नगरी को गुंजायमान कर दिया।
राम मंदिर केवल एक भव्य निर्माण नहीं, बल्कि यह भारतीय जनमानस की आस्था, संघर्ष और विजय का प्रतीक है। यह बताता है कि सच्ची भक्ति और दृढ़ विश्वास से कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है।
आज अयोध्या न केवल एक शहर है, बल्कि एक जीवंत भाव है — जो हर हृदय में राम नाम के साथ धड़कता है।