बसपा प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद और योगेश वर्मा में शह-मात की जंग

Update: 2019-11-14 02:41 GMT

मेरठ, । सियासत में अक्सर दल से निकाले जाने के बाद नुकसान नेता के वजूद को होता है। इसके उलट, अगर पलटवार में उसके साथ दल के लोग भी खुद निकल लें तो यह पार्टी के वजूद को लंबे समय तक प्रभावित करता है। राजनीति में अपनी ताकत दिखाने के लिए बड़े नेता ऐसा करते रहे हैं और कुछ ऐसा ही बसपा के पूर्व विधायक योगेश वर्मा भी कर रहे हैं। उन्होंने दूसरे दल में शामिल होने के बजाय यह जताने में कूटनीति दिखाई कि वह संगठन को चुनौती दे सकते हैं। उन्होंने ऐसा किया भी और संगठन के पदाधिकारी देखते रह गए। चुने गए जनप्रतिनिधियों पर संगठन की कमजोर पकड़ का यह ताजा उदाहरण है कि 12 पार्षद एक झटके में उनके साथ खड़े हो गए और संगठन स्वयं को यह तसल्ली दे रहा है कि बाकी पार्षद पार्टी के साथ हैं।

पार्षदों का इस तरह से इस्तीफा देना बसपा प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली के वजूद को भी चुनौती है। क्योंकि यह सब उस जिले में हुआ, जहां के वह निवासी हैं। पार्टी भले ही यह मानकर चल रही है कि 12 पार्षदों व कुछ अन्य पूर्व पदाधिकारियों का बसपा से इस्तीफा देने से जनाधार को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन किसी शहर से जनप्रतिनिधियों का इतनी बड़ी संख्या में पार्टी से इस्तीफा दिला देने को कमतर नहीं आंका जा सकता। दरअसल, योगेश वर्मा ने अपने और अपनी महापौर पत्नी के निष्कासन के बाद किसी अन्य दल में जाने का अवसर तलाशने के बजाय इस कूटनीति में जुटे कि वह बसपा को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं।

बसपा जिस मुस्लिम-अनुसूचित जाति के समीकरण को तैयार करके चुनाव जीतती रही है, उसी समीकरण को योगेश वर्मा अपने पक्ष में करने में जुटे हैं। यही कारण है कि इस्तीफा देने वालों में ज्यादा संख्या मुस्लिमों की है। इतना ही नहीं, बसपा के पूर्व जिला प्रभारी यूसुफ ने सैफी समाज की ओर से मायावती को एक पत्र भी भेजा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के इस निर्णय से शहर के सैफी समाज रोष में है।

योगेश वर्मा अभी किसी पार्टी में जाने के बजाय भावनात्मक रूप से यह जताने में जुटे हैं कि उनके साथ कितना गलत हुआ। इसका संदेश वह लगातार पहुंचा रहे हैं। हालांकि अभी धारा- 144 लगी है और अलर्ट भी है, इसलिए भी वह कोई बड़ी बैठक नहीं कर पा रहे हैं।

मध्य प्रदेश के प्रदेश प्रभारी व एमएलसी अतर सिंह राव को पार्टी ने डैमेज कंट्रोल के लिए मेरठ भेजा है। उन्हें अब मेरठ मंडल का विशेष प्रभार भी दे दिया गया है। मंगलवार को महापौर के पक्ष में 12 पार्षदों के इस्तीफा दे देने के बाद उहोंने आनन-फानन में बैठक करके 20 पार्षदों को पार्टी में होने की घोषणा की। इन कोशिशों के बाद भी बुधवार को एक पार्षद समेत नौ लोगों ने इस्तीफा दे दिया।

योगेश इससे पहले वर्ष 2012 में विधायक रहने के दौरान एक विवाद की वजह से बसपा से निष्कासित हुए थे। इसके बाद वह पीस पार्टी के टिकट पर हस्तिनापुर से ही विस चुनाव लड़े, जिसमें उन्हंे करीब 42 हजार वोट मिले थे। इसका फर्क यह पड़ा कि वह खुद तो हारे, लेकिन बसपा भी हार गई थी। दीगर यह भी है कि वर्ष 2017 में फिर से उनकी वापसी हुई थी और फिर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।

अभी तो शुरुआत है, बड़ा परिवर्तन बाकी : योगेश

योगेश वर्मा ने कहा कि बसपा नेतृत्व ने जिस तरह से उन्हें निकाला है, इससे मेरठ ही नहीं, बल्कि पूरे पश्चिमी उप्र के संगठन में रोष है। अभी तो शुरुआत है, अभी बड़ा परिवर्तन होने वाला है।

पार्षदों के चले जाने से पार्टी को फर्क नहीं पड़ता : मुनकाद

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली ने कहा कि पार्टी संगठन से कोई अन्य नामचीन नेता नहीं गया है। पार्षदों को महापौर की समिति में रहना होता है, इसलिए कुछ लोग चले गए हैं। इसका फर्क बसपा पर नहीं पड़ेगा। पार्टी मजबूत है और सर्वसमाज के लोग बसपा के साथ हैं।

तीसरे दिन इन्होंने छोड़ा पार्टी का साथ

बुधवार को वार्ड-88 से बसपा पार्षद साबरा तैय्यब, वार्ड-44 से पूर्व पार्षद लोकेश चंद समेत पार्टी के पूर्व जिला कोषाध्यक्ष अनिल कश्यप, हस्तिनापुर सेक्टर अध्यक्ष अनिल प्रधान, दूधली खादर गांव के पूर्व प्रधान ओमपाल, प्रमोद कुमार, शिवा, रामचंद्र, राजकुमार, हस्तिनापुर के सिरजौपुर गांव प्रधान ब्रह्मसिंह नागर, कन्हैया लाल ने इस्तीफा सौंप दिया। 

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