लोकसभा उपचुनाव में मिली जीत क्या राज्यसभा चुनाव में अपना असर दिखाएगी ? यह सवाल अब सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। साथ ही क्या अखिलेश यादव अपनी पार्टी के अंतर्द्वंद्व से निकल कर जीत का अहसान चुकाते हुए मायावती को राज्यसभा चुनाव में जीत का गिफ्ट दिला सकेंगे।
भाजपा की करारी हार व सपा बसपा गठजोड़ की शानदार जीत ने विधायकों को भी एक संदेश दिया है। अब जो विधायक अपने वोट की प्राथमिकता को लेकर दुविधा में हैं और मन नहीं बना पाएं हैं, वह इन नतीजों के पीछ छिपे निहितार्थ को समझ रहे हैं। अखिलेश व मायावती की मुलाकात के बाद अब और बेहतर तरीके से दोनों दल क्रास वोटिंग रोकने की रणनीति बनाएंगे।
अब सियासी तस्वीर बदली है। भाजपा ने राज्यसभा सीटों के लिए 11 प्रत्याशी उतार कर बसपा के प्रत्याशी भीम राव अम्बेडकर का रास्ता रोकने की रणनीति तैयार की है। माना जा रहा है कि सपा के अब एक दो विधायक ही भाजपा के पक्ष में क्रासवोटिंग कर सकते हैं। कुछ विधायक जो नतीजे आने से पहले आगे कदम बढ़ाने का मन बना चुके थे वह भी ठिठक गए हैं।
करारी शिकस्त से भाजपा की साख को भी खासा बट्टा लगा है। भाजपा खेमे को अब विपक्षी खेमे में सेंधमारी करने में ज्यादा मुश्किलें आएंगी। उत्साह से भरे सपा व बसपा अब ज्यादा अच्छे ढंग से अपने अपने खेमे को एकजुट रख सकेंगे।
चौंकाने वाले नतीजों के लिए चर्चित रहा है गोरखपुर
यूपी के मुख्यमंत्री रहे टीएन सिंह सीएम बने रहने के लिए उन्होंने गोरखपुर की मनीराम सीट से उपचुनाव लड़े। लेकिन इंदिरा कांग्रेस के प्रत्याशी रामकृष्ण द्विवेदी ने उन्हें करारी मात दे दी। उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी।
-इसके बाद बरसों बाद गोरखपुर मेयर का चुनाव हुआ। उस वक्त बतौर निर्दलीय खड़ी हुईं किन्नर आशा देवी को जनता ने मेयर के लिए भारी मतों से जिता दिया।
-अब गोरखपुर की जनता ने बरसों बाद गोरखपुर की सांसदी भाजपा को न देकर सपा को जिस तरह सौंप दी, वह अब चौंकाने वाली ही मानी जा रही है।
गोरखपुर : तीन दशक बाद टूटा तिलिस्म
-1989 से 2018 तक गोरखपुर सीट पर गोरक्षा पीठ के महंत रहे थे विद्यमान
- 1989 में महंत अवेद्यनाथ हिंदू महासभा की टिकट पर लोकसभा पहुंचे थे
फूलपुर: केसरिया रंग नहीं गहराया
2014 में पहली बार केशव प्रसाद मौर्य ने फूलपूर सीट से तीन लाख के प्रचंड अंतर से जीत दर्ज की थी
2017 में फूलपुर लोकसभा सीट की पांच सीटों में से चार भाजपा के पास और एक अपना दल के पास
2018 के लोकसभा उपचुनाव में पार्टी बढ़त को बरकरार नहीं रख पाई और भारी अंतर से हारी