करवट ले रही है मुस्लिम सियासत, अलीगढ़ व मेरठ जैसे मुस्लिम बाहुल्य महानगरों में बसपा की जीत को महत्वपूर्ण माना जा रहा

Update: 2017-12-27 06:26 GMT
लखनऊ - नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों से प्रदेश में मुसलमानों के बदलते सियासी रुझान का अहसास हुआ। बसपा की ओर झुकाव ज्यादा दिखना और असुदुद्दीन ओवैसी की पार्टी (आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के उभार को मुस्लिम सियासत में का संकेत माना जा रहा है।
बसपा का दलित मुस्लिम समीकरण लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भले ही प्रभावी नहीं दिखा हो परंतु इस गठजोड़ के चलते बसपा ने 16 में से दो नगर निगमों के महापौर पदों पर कब्जा किया और सपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई। अलीगढ़ व मेरठ जैसे मुस्लिम बाहुल्य महानगरों में बसपा की जीत को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बदलाव की यह आहट इसलिए भी अहम है क्योंकि पश्चिमी उप्र में भाजपा मिलने वाली बढ़त गत लोकसभा व विधान सभा चुनाव में निर्णायक रही थी। मुस्लिम राजनीति के जानकार डा. नदीम अख्तर का कहना है कि दलित और मुस्लिम वोटरों का संख्या गणित बेहद मजबूत है। भाजपा को रोकने के लिए यादव-मुस्लिम गठजोड़ से अधिक असरदार दलित मुस्लिम समीकरण होता है।
कांग्रेस को भी आस बंधी: निकाय चुनाव में मुस्लिमों ने कांग्रेस की अनदेखी भी नहीं की वरन कई स्थानों पर बसपा उम्मीदवार कमजोर दिखा वहां कांग्रेस को भी तरजीह दी। गाजियाबाद, मुरादाबाद, वाराणसी व कानपुर, मथुरा जैसे स्थानों पर कांग्रेस का मुख्य मुकाबले में आने को भी से जोड़ा जा रहा है। पूर्व विधायक हाजी सिराज मेंहदी का दावा है कि वर्ष 2019 के लोस चुनाव में मुस्लिमों का झुकाव कांग्रेस की ओर अधिक होगा।
औवेसी की पार्टी का बढ़ता दखल: फीरोजाबाद नगर निगम चुनाव के नतीजों को देखें तो मुस्लिमों के बदलते राजनीतिक नजरिए को आसानी से भांपा जा सकता है। सपा द्वारा गठित कराए इस नगर निगम में महापौर के पद पर असुदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की उम्मीदवार मशरूर फातिमा ने सपा-बसपा को पछाड़ दूसरा स्थान प्राप्त किया। आवैसी विभिन्न नगर निगमों में 12 पार्षद जिताने में सफल रहें और एक नगर पंचायत अध्यक्ष भी जीता। यूपी में ओवैसी का दखल बढ़ना और पीस पार्टी जैसे दलों का हाशिए पर आना चौंकाने वाला रहा है।

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