राहुल गांधी का प्रहार — ‘खुला विश्वासघात’: जातिगत जनगणना पर संसद में मिले जवाब से मची राजनीतिक हलचल, सरकार की मंशा पर उठे सवाल
रिपोर्ट — विजय तिवारी
नई दिल्ली :
देश में जातिगत जनगणना को लेकर राजनीतिक जंग तेज़ हो गई है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि “यह जनता के साथ खुला विश्वासघात है”। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार जानबूझकर जनगणना में देरी कर रही है और जातिगत आंकड़ों को सार्वजनिक करने से बच रही है, जबकि पूरे देश में सामाजिक न्याय और हिस्सेदारी की मांग तेज़ हो रही है।
राहुल गांधी ने संसद में केंद्रीय गृह मंत्रालय से जनगणना की समयसीमा और जातिगत वर्गीकरण पर स्पष्ट उत्तर मांगा था। सरकार ने जवाब दिया कि देश-व्यापी जनगणना का लक्ष्य अगले वर्ष अप्रैल 2026 से शुरू करने का है, और यह प्रक्रिया पूरी तरह डिजिटल प्रारूप में दो चरणों में आयोजित होगी। हालांकि, सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि जातिगत आंकड़े कब और किस रूप में सार्वजनिक किए जाएंगे, जिसे लेकर विपक्ष ने तगड़ा हमला बोल दिया।
राहुल गांधी का आरोप — ‘हक छिपाया जा रहा है, आंकड़ों से डरती है सरकार’
संसद में और बाद में मीडिया से बातचीत में राहुल गांधी ने कहा :
“देश पूछ रहा है — असली तस्वीर उजागर करने से सरकार क्यों डर रही है?”
“सामाजिक न्याय की नींव डेटा है, और सरकार उसी डेटा से भाग रही है।”
“90 प्रतिशत भारतीयों को उनकी हिस्सेदारी जानने से रोकना लोकतंत्र के साथ विश्वासघात है।”
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि देश की नीति-निर्माण, शिक्षा-रोजगार, आरक्षण, और संसाधन वितरण का आधार वास्तविक आंकड़े होने चाहिए, न कि अनुमान।
उन्होंने साफ कहा — “जब तक जातिगत सत्य सामने नहीं आएगा, समानता और न्याय सिर्फ भाषण रहेंगे।”
सरकार का पक्ष — ‘तकनीक आधारित चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया’
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जनगणना प्रक्रिया को लेकर कहा :
पहली बार जनगणना डिजिटल मोबाइल ऐप, ऑनलाइन सेल्फ-एन्यूमेरेशन और GIS आधारित मानचित्रण प्रणाली से की जाएगी।
हाउस लिस्टिंग और होम डेटा संग्रह अप्रैल से सितंबर 2026 के बीच नियंत्रित चरण में किया जाएगा।
जनसंख्या और जातिगत गणना फरवरी 2027 में की जाएगी।
सरकार का कहना है कि कोविड-19 के कारण पहले जनगणना स्थगित हुई, और अब तकनीकी तैयारी, प्रशिक्षण और ढांचे को मजबूत करना प्राथमिकता है।
लेकिन — जातिगत आंकड़ों को सार्वजनिक करने के सवाल पर सरकार ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया, जिस पर विवाद और गहरा गया।
राष्ट्रीय राजनीतिक प्रभाव — क्यों बढ़ा तनाव
विश्लेषकों के मुताबिक :
जातिगत जनगणना देश की राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना को मूल रूप से प्रभावित कर सकती है।
इससे वास्तविक सामाजिक-आर्थिक असमानता का पता चलेगा, जो सरकारों की नीतियों और बजट प्राथमिकताओं को बदल सकता है।
विपक्ष इसे “अधिकार और भागीदारी की लड़ाई” बता रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इसे तकनीकी-प्रक्रियात्मक विषय मान रहा है।
कई राज्यों ने पहले ही अपनी-अपनी जाति आधारित गणना कराई है, जिससे राष्ट्रीय जनगणना का दबाव और बढ़ गया है।
क्यों विवाद इतना बड़ा?
विवाद का केंद्र मुख्य प्रश्न
समय सीमा क्या देरी राजनीतिक है या तकनीकी?
डेटा सार्वजनिक कब और कैसे जारी होगा?
वर्गीकरण जाति-उपजाति का आकलन कौन और कैसे करेगा?
राजनीतिक असर क्या यह सत्ता संतुलन बदल देगा?
सामाजिक न्याय क्या वास्तविक हिस्सेदारी सामने आएगी?
बड़ी तस्वीर — जनगणना या राष्ट्रीय परीक्षा?
जातिगत जनगणना केवल आंकड़ों का अभ्यास नहीं — देश का सामाजिक आईना है।
यदि यह पारदर्शी, समयबद्ध और सही ढंग से हुई तो यह:
आरक्षण नीति की वास्तविक समीक्षा
कल्याण योजनाओं का वैज्ञानिक आधार
संसाधन वितरण में न्याय
राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार का द्वार खोल सकती है।
लेकिन अगर यह देरी, अस्पष्टता और राजनीतिक उद्देश्य में उलझी — तो यह देश की सामाजिक दशा और लोकतांत्रिक विश्वास का सबसे बड़ा नुकसान होगा।
राहुल गांधी ने साफ किया — “यह लड़ाई सिर्फ आंकड़ों की नहीं, लोकतंत्र के सम्मान और अधिकार की है।”
सरकार पर अब यह ज़िम्मेदारी है कि वह स्पष्ट करे —
क्या जनगणना सच्चाई को उजागर करेगी?
या
तारीखों, घोषणाओं और राजनीतिक गणित में उलझी रहेगी?
देश की नज़रें अब 2026-27 की जनगणना और सरकार के अगले कदम पर टिक गई हैं।