मैसेजिंग ऐप्स पर केंद्र सरकार का बड़ा कदम - सिम अनिवार्य, अब बिना एक्टिव सिम बंद होंगे व्हाट्सएप, टेलीग्राम और स्नैपचैट

Update: 2025-12-02 08:55 GMT

 

रिपोर्ट : विजय तिवारी

नई दिल्ली।

केंद्र सरकार ने साइबर सुरक्षा ढाँचे को प्रभावी बनाने और डिजिटल अपराधों पर कड़ी रोक लगाने के उद्देश्य से मैसेजिंग ऐप्स के लिए नए नियम लागू कर दिए हैं।

अब व्हाट्सएप, टेलीग्राम, स्नैपचैट , सिग्नल सहित सभी लोकप्रिय मैसेजिंग प्लेटफॉर्म सिम-बाइंडिंग व्यवस्था पर चलेंगे। इसका अर्थ है कि जिस सिम कार्ड से कोई मैसेजिंग ऐप पंजीकृत है, वह सिम फोन में सक्रिय स्थिति में होना आवश्यक होगा। सिम हटते ही या निष्क्रिय होने पर ऐप अपने-आप बंद हो जाएगा और सेवा उपलब्ध नहीं रहेगी।

सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह निर्णय फर्जी अकाउंट्स, ऑनलाइन ठगी, डिजिटल ब्लैकमेल, साइबर धोखाधड़ी, अनाम पहचान और सोशल मीडिया आधारित आपराधिक गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है। पिछले कुछ वर्षों में साइबर अपराधों में तेज वृद्धि देखी गई है, जिनमें आरोपी वर्चुअल नंबरों, निष्क्रिय सिम और फर्जी पहचान का उपयोग कर अपनी वास्तविक पहचान छिपाते रहे हैं। नई प्रणाली से डिजिटल संवाद में पारदर्शिता और जवाबदेही स्थापित करने की कोशिश की गई है।

नए नियमों की मुख्य प्रमुख बातें -

मैसेजिंग ऐप्स को सक्रिय और सत्यापित सिम कार्ड से स्थायी रूप से लिंक रहना अनिवार्य

सिम बदलते ही ऐप ऑटो-लॉगआउट हो जाएगा और सेवा स्वतः बंद

WhatsApp Web और Telegram Web जैसे वेब संस्करण प्रत्येक 6 घंटे बाद स्वतः लॉगआउट

सभी सेवा प्रदाताओं को 90 दिन के भीतर सिस्टम अपडेट और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।

निर्देशों का उल्लंघन होने पर सेवा निलंबन सहित कड़ी कार्रवाई की चेतावनी

सरकार का उद्देश्य -

सरकार इस नियम को राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक सुरक्षा और डिजिटल अनुशासन के लिए अत्यंत आवश्यक कह रही है।

सिम-बाइंडिंग प्रणाली से : फर्जी नंबरों और पहचान छिपाकर अपराध करने की प्रवृत्ति पर रोक

साइबर ठगों, फर्जी निवेश योजनाओं और ऑनलाइन ठगी गिरोहों को चिन्हित करना आसान

सामाजिक तनाव फैलाने वाली डिजिटल गतिविधियों और दुष्प्रचार नेटवर्क पर नियंत्रण

संचार में प्रमाणिकता, जवाबदेही और ट्रैसेबिलिटी को मजबूती

उपभोक्ताओं के सामने संभावित चुनौतियाँ -

नए नियमों के साथ सुविधा में कमी भी महसूस की जा सकती है :

मल्टी-डिवाइस उपयोगकर्ताओं के लिए बार-बार QR लॉगिन की प्रक्रिया समय-साध्य

यात्रा, रोमिंग या सिम परिवर्तन करने वालों को असुविधा

Wi-Fi आधारित टैबलेट और लैपटॉप उपयोगकर्ताओं के लिए सीमाएँ

डिजिटल स्वतंत्रता और गोपनीयता से जुड़े विशेषज्ञों की निगरानी-जोखिम संबंधी आशंकाएँ

उद्योग और विशेषज्ञ समुदाय की प्रतिक्रिया -

टेलीकॉम कंपनियों ने इस कदम का समर्थन किया है और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में मजबूत निर्णय बताया है। दूसरी ओर तकनीकी विशेषज्ञों और डिजिटल अधिकार समूहों का मानना है कि केवल सिम-बाइंडिंग को अंतिम समाधान मानना उचित नहीं, क्योंकि फर्जी सिम या पहचान छिपाने की नई विधियाँ भी संभव हैं।

विशेषज्ञों का सुझाव है कि सुरक्षा और उपयोगकर्ता-स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में और नीतिगत सुधार आवश्यक होंगे।

आगे की दिशा -

यह नियम भारत की डिजिटल संरचना में एक बड़ा परिवर्तन चिन्हित करता है। मैसेजिंग सेवाएँ, ऑनलाइन व्यवसाय, बैंकिंग सहायता, ग्राहक-सेवा प्रणाली और ई-कॉमर्स क्षेत्र — सभी को तकनीकी बदलावों के अनुरूप अपनी व्यवस्था पुनर्गठित करनी होगी।

सरकार और ऐप कंपनियों का अगला लक्ष्य होगा कि सुरक्षा और सुविधा दोनों को संतुलित रूप से समाहित किया जाए, ताकि उपयोगकर्ता अनुभव बाधित न हो और साइबर सुरक्षा भी सुदृढ़ बनी रहे।

सिम-बाइंडिंग व्यवस्था लागू होने से डिजिटल अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण का मार्ग प्रशस्त होगा और संचार प्रणाली में पारदर्शिता स्थापित होगी। हालांकि, इससे उपयोगकर्ता-व्यवहार और तकनीकी ढांचे में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन अनिवार्य होंगे। आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि यह निर्णय सुरक्षा को मजबूत आधार देता है या सुविधा और निजी स्वतंत्रता पर प्रभाव डालता है।

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