सनातन संस्कारों की जीवंत पाठशाला बना "नारायण विद्यालय", श्रीरामचरितमानस के भव्य मंचन ने मोहा मन

Update: 2025-12-28 12:55 GMT

रिपोर्ट : विजय तिवारी

भरूच (गुजरात)।

तेज़ी से बदलते सामाजिक परिवेश और प्रतिस्पर्धा-प्रधान शिक्षा व्यवस्था के बीच नारायण विद्यालय ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि सशक्त शिक्षा वही है, जो ज्ञान के साथ संस्कार भी दे। आधुनिक पाठ्यक्रमों के समानांतर भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों के संरक्षण का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विद्यालय ने एक बार फिर सिद्ध किया कि शिक्षा केवल पुस्तकों और अंकों का समुच्चय नहीं, बल्कि चरित्र-निर्माण, जीवन-दृष्टि और सामाजिक उत्तरदायित्व का संस्कार है।

विद्यालय के वार्षिक सांस्कृतिक आयोजन के अंतर्गत 27 दिसंबर 2025 को प्रस्तुत श्रीरामचरितमानस का संक्षिप्त किंतु अत्यंत प्रभावशाली मंचन दर्शकों के लिए केवल एक प्रस्तुति नहीं, बल्कि भक्ति, भाव और बोध से भरी आध्यात्मिक अनुभूति बन गया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि परम पूज्य त्रिलोचना देवी साध्वी जी तथा कलाभूमि कास्टिंग कंपनी के संस्थापक - संतोषकुमार त्रिपाठी जी की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन को विशेष ऊँचाई प्रदान की। दोनों अतिथियों का स्वागत विद्यालय के चेयरमैन हेमंत भाई प्रजापति द्वारा पारंपरिक सम्मान, पुष्पगुच्छ और आत्मीय अभिनंदन के साथ किया गया। अपने संबोधन में अतिथियों ने कहा कि आज के समय में ऐसे सांस्कृतिक मंचन बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं और उन्हें जीवन-मूल्यों का बोध कराते हैं—जो किसी भी समाज की सबसे बड़ी पूँजी है।

शिक्षा के क्षेत्र में गौरव की पहचान

विद्यालय के डायरेक्टर भगु भाई प्रजापति को शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट, नवाचारी और मूल्यनिष्ठ प्रयासों के लिए देश-विदेश में अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। यह उपलब्धियाँ विद्यालय की उस सोच को रेखांकित करती हैं, जिसमें शिक्षा को सेवा, अनुशासन और संस्कार के साथ जोड़ा गया है। उनके मार्गदर्शन में विद्यालय गुणवत्ता, नवाचार और नैतिकता की त्रिवेणी को निरंतर सुदृढ़ कर रहा है।

सामूहिक प्रयास से सजी सांस्कृतिक साधना

विद्यालय के चेयरमैन हेमंत भाई प्रजापति, प्रधान अध्यापिका विद्या बेन राणा, अरविंद भाई, भगु भाई सहित समस्त शिक्षक-शिक्षिकाओं और विद्यार्थियों के समन्वित प्रयास से यह मंचन एक सजीव सांस्कृतिक साधना में परिवर्तित हो गया।

एलकेजी से लेकर 11वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों ने जिस अनुशासन, भाव-भंगिमा, वेश-भूषा और संवाद-शैली के साथ प्रस्तुति दी, उसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मंच पर घटित होते दृश्यों को देखकर कई क्षणों पर ऐसा प्रतीत हुआ मानो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने परिवार सहित साक्षात् अवतरित हो गए हों—और मर्यादा, करुणा व कर्तव्य का संदेश दे रहे हों।

आधुनिकता के साथ संस्कारों का संतुलन

जहाँ अनेक विद्यालय वार्षिकोत्सव के नाम पर फिल्मी गीतों और डीजे संस्कृति को प्रमुखता देते हैं, वहीं नारायण विद्यालय ने 27 वर्षों से अपनी सांस्कृतिक पहचान को अक्षुण्ण रखते हुए सनातन संस्कृति को ही केंद्र में रखा है। विद्यालय प्रबंधन का मत है कि आधुनिक शिक्षा समय की आवश्यकता है, परंतु सनातन धर्म का ज्ञान जीवन को सही दिशा देने वाला स्थायी आधार है—और यही संतुलन विद्यार्थियों को संस्कारी, संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक बनाता है।

श्रीराम से जीवन-पाठ

श्रीराम के जीवन से मर्यादा, आदर, क्षमा, राजधर्म, सत्य, करुणा, ज्ञान, मित्रता, आज्ञापालन, वचन-पालन और देशप्रेम जैसे अनमोल आदर्श प्राप्त होते हैं। इन मूल्यों का बाल्यावस्था में संस्कार-रोपण ही स्वस्थ, समरस और सुदृढ़ समाज की नींव रखता है। माता-पिता के साथ गुरुओं का यह नैतिक दायित्व है कि वे आने वाली पीढ़ी को धर्म और सनातन की सच्ची शिक्षा दें—और नारायण विद्यालय के शिक्षक इस दायित्व को पूर्ण निष्ठा, अनुशासन और समर्पण के साथ निभा रहे हैं।

1999 से संस्कार-यात्रा

नारायण विद्यालय की स्थापना 14 फरवरी 1999 को हुई थी। इसका संचालन नारायण नेत्र ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। विद्यालय का उद्देश्य विद्यार्थियों को ऐसा सकारात्मक और प्रेरक वातावरण देना है, जहाँ वे सटीकता, आत्मविश्वास, नैतिकता और परिश्रम के साथ अपनी क्षमताओं को पहचानें और लक्ष्य की ओर दृढ़ता से अग्रसर हों।

देश के लिए प्रेरक मॉडल

तीव्र प्रतिस्पर्धा के इस युग में बच्चों के भीतर सनातन संस्कृति का बीजारोपण कर नारायण विद्यालय समाज और राष्ट्र को सही दशा और सही दिशा देने का कार्य कर रहा है। यदि देश के अन्य विद्यालय भी इस मॉडल को अपनाएँ, तो भावी पीढ़ी न केवल दक्ष, बल्कि संस्कारवान और राष्ट्रनिष्ठ बनेगी।

कार्यक्रम के समापन पर

विद्यालय के संचालक मंडल, प्रधानाचार्या, समस्त शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के प्रयासों का हृदय से अभिनंदन किया गया। उपस्थित समाजजनों ने एक स्वर में कहा कि नारायण विद्यालय का यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि संस्कारों की अमूल्य विरासत है, जो आने वाली पीढ़ियों को दिशा और दृष्टि प्रदान करती रहेगी।

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