हिंदीभाषी महासंघ वडोदरा द्वारा आयोजित महा रामलीला पाँचवाँ दिन : भक्ति, मर्यादा, नीति और धर्म-युद्ध का सशक्त मंचन

Update: 2025-12-23 06:13 GMT


रिपोर्ट : विजय तिवारी

वडोदरा।

हिंदीभाषी महासंघ वडोदरा के तत्वावधान में आयोजित महा रामलीला के पाँचवें दिन रामकथा के ऐसे महत्वपूर्ण प्रसंगों का मंचन हुआ, जिनमें निष्काम भक्ति, भ्रातृ-प्रेम, नारी-सम्मान, नीति-बोध और अधर्म के विनाश का संदेश स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आया। संवादों की शुद्धता, संयमित भाषा-शैली और प्रभावी मंच-सज्जा ने कथा को गहन प्रभाव प्रदान किया।

राम–केवट प्रसंग : भक्ति, चातुर्य और निष्काम सेवा

दिन का शुभारंभ राम–केवट प्रसंग से हुआ। वनगमन के समय गंगा तट पर केवट द्वारा राम का स्वागत अत्यंत श्रद्धा के साथ किया गया। केवट चतुराई से राम के चरण-स्पर्श कर स्वयं को धन्य मानता है और विनयपूर्वक कहता है कि उसने सुना है—राम के चरण-स्पर्श से शिला भी नारी बन गई थी। उसकी नाव ही उसकी आजीविका है; यदि वह भी नारी बन गई, तो जीवन-यापन कैसे होगा।

इसी भाव के साथ वह आग्रह करता है कि चरण-प्रक्षालन किए बिना वह राम को नाव में नहीं बैठाएगा। केवट द्वारा गंगाजल से राम के चरण पखारना और चरणामृत को मस्तक पर धारण करना निष्काम सेवा का अनुपम उदाहरण बनकर सामने आया। नदी पार होने के बाद पारिश्रमिक लेने से इंकार करते हुए केवट का यह कथन कि राम के चरण धोने का सौभाग्य ही उसका सबसे बड़ा धन है—दर्शकों के हृदय को गहराई से स्पर्श करता है।

भरत–मिलाप : वचन, त्याग और भ्रातृ-प्रेम की पराकाष्ठा

इसके पश्चात भरत–मिलाप का अत्यंत करुणामय दृश्य प्रस्तुत किया गया। भरत, भगवान राम के चरणों में गिरकर आशीर्वाद लेते हैं और बार-बार अयोध्या लौटने का निवेदन करते हैं। राम शांत और दृढ़ स्वर में उत्तर देते हैं कि उन्होंने पितृ-वचन और आज्ञा का पालन स्वीकार किया है और उससे विचलित होना रघुकुल की परंपरा के विपरीत है।

राम द्वारा कहा गया—

“रघुकुल रीति सदा चली आई,

प्राण जाई पर वचन न जाई।”

विदाई के समय भरत, राम के खड़ाऊ को आशीर्वाद और शासन-सूत्र के रूप में अपने मस्तक पर धारण करते हैं और यह संकल्प लेते हैं कि चौदह वर्षों के वनवास काल तक अयोध्या के सिंहासन पर राम के खड़ाऊ ही विराजमान रहेंगे। वे स्वयं को राजा नहीं, बल्कि राम का दास और सेवक मानकर राज्य संचालन का संकल्प व्यक्त करते हैं। यह दृश्य त्याग और मर्यादा का शिखर बनकर उभरा।

सुपर्णखा प्रसंग : अधर्म का उन्माद और मर्यादा का संरक्षण

इसके बाद सुपर्णखा द्वारा राम और लक्ष्मण के समक्ष विवाह प्रस्ताव रखने तथा माता सीता पर आक्रमण का प्रयास मंचित किया गया। यह प्रसंग वासना और अहंकार से उत्पन्न अधर्म को दर्शाता है। मर्यादा-भंग के इस प्रयास पर लक्ष्मण द्वारा नाक–कान काटने का दृश्य धर्म-संरक्षण और न्यायपूर्ण दंड का सशक्त संदेश देता है।

सीता का अग्नि-प्रसंग (प्रतिबिंब कथा) : नीति, त्याग और संरक्षण

इस महत्वपूर्ण प्रसंग में दर्शाया गया कि वास्तविक माता सीता स्वयं अग्नि में प्रवेश करती हैं, जबकि वन में सीता का प्रतिबिंब (छाया-सीता) रहती है। राम यह स्पष्ट करते हैं कि जब तक दानवों का संहार पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक वास्तविक सीता अग्निदेव के संरक्षण में सुरक्षित रहेंगी। यह दृश्य नीति, दूरदर्शिता और कर्तव्यबोध को अत्यंत संयत और शुद्ध संवादों के माध्यम से प्रस्तुत करता है।

खर–दूषण वध : अधर्म के अंत की निर्णायक शुरुआत

पाँचवें दिन का समापन खर–दूषण वध से हुआ। युद्ध-दृश्यों में सशक्त अभिनय, तालबद्ध मंच-संचालन और प्रभावी प्रकाश-सज्जा ने अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना का संदेश स्पष्ट किया। यह प्रसंग आगे आने वाले संघर्षों की भूमिका भी तैयार करता है।

समग्र प्रभाव

महा रामलीला के पाँचवें दिन का मंचन कथा-विस्तार की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। शास्त्रसम्मत संवाद, संतुलित भाषा-शैली और भावनात्मक प्रस्तुति ने दर्शकों को रामायण के मूल आदर्श-भक्ति, वचनबद्धता, त्याग और न्याय से, गहराई से जोड़ा। आयोजन ने सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ समाज को नैतिक मूल्यों का सशक्त संदेश दिया।

Similar News