वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में अब तक तय नहीं हो पाया है कि समाजवादी पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव कौन लड़ेगा? शालिनी यादव या बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव? शालिनी के पति अरुण यादव ने न्यूज18 हिंदी से बातचीत में कहा कि चूंकि नए हालात में तेज बहादुर की उम्मीदवारी पर तलवार लटकती नजर आ रही है. उन्हें जिला निर्वाचन अधिकारी ने नोटिस जारी कर 1 मई को सुबह 11 बजे तक जवाब देने का समय दिया है. जवाब नहीं देने की स्थिति में उनका पर्चा खारिज भी हो सकता है, इसलिए बुधवार को जिला प्रशासन के फैसले के बाद ही तय होगा कि सपा का प्रत्याशी कौन होगा? पार्टी के सिंबल पर शालिनी यादव ने भी पर्चा भरा है और तेज बहादुर ने भी.
दरअसल, तेज बहादुर यादव ने पहले निर्दलीय पर्चा दाखिल किया और सोमवार को अचानक सपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया, इसलिए उन्होंने सपा से भी नामांकन कर दिया. जबकि सपा की ओर से पहले घोषित प्रत्याशी शालिनी यादव ने भी सपा से ही नामांकन कर दिया था. जब मंगलवार को जिला प्रशासन ने तेज बहादुर की ओर से दाखिल सपा वाले नामांकन पत्र की जांच की तो पता चला कि तेज ने जो निर्दलीय पर्चा दाखिल किया है उसमें और सपा की ओर से दाखिल पर्चे में एक भिन्नता है. अर्धसैनिक बल से बर्खास्तगी को लेकर दो दोनों में अलग-अलग दावे किए गए हैं. उधर, अरुण यादव का दावा है उनकी पत्नी शालिनी का नामांकन जांच में सही पाया गया है.
अरुण यादव ने बताया कि शालिनी सपा प्रमुख अखिलेश यादव और मुख्यालय के लगातार संपर्क में हैं. उन्होंने नामांकन वापस नहीं लिया है. सबकुछ बुधवार को तय हो जाएगा. अगर तेज बहादुर का पर्चा रद्द होगा तो शालिनी पहले की तरह ही प्रत्याशी रहेंगी. वरना पार्टी प्रमुख अखिलेश को फैसला करना होगा. वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत का कहना है कि सपा की पहली प्राथमिकता में तेज बहादुर यादव हो गए हैं लेकिन दूसरी प्राथमिकता शालिनी यादव बनी हुई हैं. इसलिए मुझे लगता है कि गलत जानकारी देने की वजह से तेज बहादुर का पर्चा रद्द होगा और सपा को मजबूरन शालिनी को मैदान में उतारना पड़ेगा. इस पूरे प्रकरण में सपा की स्थिति ही खराब हुई है. नए हालात में अखिलेश यादव के पास कोई और चारा नहीं दिख रहा.
कौन हैं शालिनी यादव?
शालिनी फैशन डिजाइनर हैं. वो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में ग्रेजुएट हैं. उन्होंने वाराणसी के मेयर पद का चुनाव लड़ा था और उन्हें सवा लाख वोट मिले थे. ये बात अलग है कि वो हार गई थीं. शालिनी पूर्वांचल में कांग्रेस के बड़े नेता रहे श्यामलाल यादव की पुत्रबधू हैं. श्यामलाल यादव बनारस के सांसद, राज्यसभा के उप सभापति और केंद्रीय कृषि मंत्री भी रहे थे. वो 1957 से 1962 और 1967 से 1968 तक यूपी विधानसभा के सदस्य रहे. इतने बड़े राजनीतिक परिवार से होने की वजह से जनता में उनकी अपनी पकड़ है. वो 22 अप्रैल को ही कांग्रेस से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी में शामिल हुई थीं.