लोक प्रशासन में डीएम आते-जाते रहेंगे लेकिन राजशेखर नहीं होंगे। पारदर्शी कार्यशैली के लिए मशहूर राजशेखर लालफीताशाही के लिए बदनाम ब्यूरोक्रेसी के दौर में जनता के अफसर माने जाते हैं। लोग उनकी गाड़ी रोक कर कहीं भी उनसे बात कर सकते थे।
हर मौक पर सबसे पहले पहुंचना उनका शगल है। कभी -कभी तो मातहतों से भी पहले पहुंचते थे। बच्चों के जेहन में तो डीएम का मतलब ही राजशेखर हो गया था। अफसरों के इधर से उधर किए जाने की बातें तो रुटीन होती हैं लेकिन राजशेखर ने जैसी लोकप्रियता हासिल की वो कई अफसरों के लिए ईर्ष्या का सबब हो सकता है।
राजशेखर 10 फरवरी 2014 को इलाहाबाद से ट्रांसफर होकर लखनऊ आए। तब से उनका फोकस जनता की दिक्कतें दूर करने पर रहा। महज सात दिन में उन्होंने जनसुविधा केंद्र शुरू किया। इसके बाद गंदगी से लेकर खाने के घटिया सामान बेचे जाने, केबिल आपरेटरों से जनता की दिक्कतों, लेखपालों की मनमानी और सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे हटवाने में उल्लेखनीय काम किया।
तहसील दिवस शिकायतें दर्ज कराने की रस्म अदायगी हुआ करते थे लेकिन राजशेखर ने उनका तेजी से निपटारा कराया। न केवल गरीब पीड़ितों का भरोसा जीता वरन जिला स्तरीय अधिकारियों को भी काम काज में पारदर्शिता दिखाने की नसीहत दी।
राजशेखर 10 फरवरी 2014 को इलाहाबाद से ट्रांसफर होकर लखनऊ आए। तब से उनका फोकस जनता की दिक्कतें दूर करने पर रहा। महज सात दिन में उन्होंने जनसुविधा केंद्र शुरू किया। इसके बाद गंदगी से लेकर खाने के घटिया सामान बेचे जाने, केबिल आपरेटरों से जनता की दिक्कतों, लेखपालों की मनमानी और सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे हटवाने में उल्लेखनीय काम किया।
तहसील दिवस शिकायतें दर्ज कराने की रस्म अदायगी हुआ करते थे लेकिन राजशेखर ने उनका तेजी से निपटारा कराया। न केवल गरीब पीड़ितों का भरोसा जीता वरन जिला स्तरीय अधिकारियों को भी काम काज में पारदर्शिता दिखाने की नसीहत दी।