वक्ती जरूरतों ने सपा-बसपा को तो करीब ला ही दिया है, खुद समाजवादी पार्टी के भीतर पर अब लंबे वक्त से चली आ रही रार खत्म होने को दिखती है। सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रही सपा सीटें बांटने से पहले अपना घर चुस्त दुरुस्त कर लेना चाहती है। बसपा भी चाहती है कि गठबंधन की जीत में सपा की अंतर्कलह बाधा न बने।
रार के चलते सपा पहले ही खासा सियासी नुकसान उठा चुकी है।अब बदले हुए हालात में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जिससे पार्टी में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल व राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का रुख पहले के विपरीत कुछ नर्म होता दिखता है।
याद कीजिए, जब पंचायत चुनाव में शिवपाल के समर्थकों के बागी तेवर से सपा को अपने गढ़ में पराजय का मुंह देखना पड़ा था। इसके विपरीत गोरखपुर व फूलपुर उपचुनाव में पार्टी में खेमेबाजी खत्म होती दिखी। बसपा के सपोर्ट से सपा को मिली इस जीत पर शिवपाल ने ट्वीट किया कि समाजवादी पार्टी की ऐतिहासिक विजय पर समाजवादी पार्टी के कुशल नेतृत्व, कर्मठ कार्यकर्ताओं एवं विजयी प्रत्याशियों को बहुत-बहुत बधाई । कड़ी मेहनत व सामाजिक न्याय की साझी जमीन पर लिखी गई यह खूबसूरत कहानी मील का पत्थर साबित हो, ऐसी मंगल कामना।
राज्यसभा चुनाव में शिवपाल यादव ने पार्टी लाइन पर ही वोट दिया जबकि इससे पहले राष्ट्रपति के चुनाव में उ व उनके कुछ समर्थक विधायकों ने पार्टी से विपरीत लाइन लेते हुए एनडीए प्रत्याशी रामनाथ को¨वद को वोट दिया था। उन्होंने सपा-बसपा गठबंधन का भी स्वागत किया है, जबकि वह कांग्रेस के साथ सपा के गठबंधन के खिलाफ रहे थे। पार्टी उन्हें लोकसभा चुनाव भी लड़ा सकती है। वह इटावा की जसवंतनगर विधानसभा चुनाव जीतते रहे हैं।
मुलायम सिंह इस बार आजमगढ़ की बजाए मैनपुरी से लड़ने का ऐलान किया है जबकि सपा मुखिया अखिलेश कन्नौज से चुनाव लड़ने का संकेत कुछ समय पहले दिया था। विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद कई ऐसे मौके आये जब शिवपाल ने मोर्चा बनाने के संकेत दिए लेकिन उन्होंने मुलायम के कहने पर कदम बढ़ाने से पहले ही वापस खींच लिए। इस बीच उनके कई समर्थक एमएलसी भाजपा में चले गए।
शिवपाल के जन्मदिवस पर अखिलेश ने उन्हें मीडिया के जरिये बधाई दी थी। अब जब राज्यसभा चुनाव से पहले विधायकों के लिए पार्टी में चाचा के साथ अखिलेश बदले बदले से दिखे। चाचा ने ट्विट किया कि ऊर्जा, उम्मीद और अनुभव से भरे समाजवादी धारा के साथियों के साथ रात्रि भोज! चूंकि सपा में अमर सिंह व नरेश अग्रवाल नहीं हैं, इस कारण पार्टी के भीतर माहौल बदला है।