कोई गेरेंटेड तौर पर लिख के देनेवाला है कि अब कब्बो नीतीशजी अउर लालूजी का मिलान नहीं होगा? कोई ई भी गेरेंटेड लिख के देनेवाला है कि नीतीश जी एक बेर इशारा करेंगे तो लालूजी सब शिकवा—शिकायत भूला के फिर तड़पड़ा के साथे नहीं हो जायेंगे. जो कम से कम बिहारी राजनीति को जानता होगा, उ इसकी गेरेंटी नहीं दे सकता. राजनीति देस—काल—परिस्थितियों पर निर्भर करता हे, अवसर और संभावनाओं का खेल होता है. हर समय किसी भी राजनीतिक दल और किसी भी नेता के पास अपने को जस्टिफाई और जनता को सैटिस्फाई करने के लिए पाकिट में दस तर्क होते हैं. ई बात इसलिए लिखे अभी कि लगातार देख रहे हैं कि दिल्लीवाले भइया एकदम से नीतीश पर अपना पूरा दांव लगा दिये थे, 16 बरिस भाजपा के साथ रहेवाला नीतीश कुमार में पूरा के पूरा सामाजिक न्याय का भविष्य देख रहे थे और जैसे ही उ लालूजी से अलग हुए, एकदम पर्सनलाइज होके गांव के औरतिया लड़ाई जइसा झकझूमर कर रहे हैं रोज. न जाने का—का लिख रहे हैं नीतीशजी के बारे में. उनके प्रभाव में आ के कुछ चुनिंदा बिहारी राजनीति के प्रति सचेत रहनेवाले साथी भी उसी लाइन पर बोल रहे हैं. प्रहार भाजपा पर करना था तो भाजपा को एकदम से बिहार में वाकओवर दे के एक लगातार नीतीश पर रोजाना प्रहार कर रहे हैं. इससे और क्या होगा, यह तो नहीं पता लेकिन इतना तय है कि बिहार में भाजपा के लिए जमीन और मजबूत होगी, हो रही है.
निराला बिदेशिया