(विभिन्न कहानियों से) "वो बेहद मामूली आदमी था । इतना मामूली कि बॉस जब चाहे उसे रगेद देता ...

Update: 2017-09-02 12:09 GMT
१-"अनुभवी गेंदालाल जानते हैं कि सरकार का काम है फैंकना ... लपक पाना न पाना जनता की कुशलता और किस्मत...! इसके अतिरिक्त देशकाल , परिस्थिति जैसे तत्व भी इस 'फैंकने-लपकने' की क्रिया में बाधाकारी बन सकते/रहे हैं..। साथ ही साथ विज्ञान के अध्ययन-अध्यापन के अभ्यास के कारण गेंदालाल का ये भी मानना है कि क्रिया=प्रतिक्रिया के सिद्धांत के मुताबिक सरकार के द्वारा जोर लगाकर फेंकी गयी चीज लपकने के दौरान तेज चोट देकर हाथ से छिटककर दूर जा गिरती है ।"

२-"हुजूर इस आदमी के घर से क्विंटल भर प्याज बरामद हुयी है.. और हमने इसका मुंह सूंघा है जिसमे प्याज की बास आती है..।" दाढ़ी वाले आदमी ने जलती आँखों से जीतन को घूरा "क्यों अन्नदाता..! तू अबकी बारिश में भी बच गया..? फांसी न लगायी तूने..?? देश का भविष्य अँधेरे में है और तू पियाज की जमाखोरी करता है..??? कड़ा दंड मिलेगा तुझे..!" 

३-"अग्रवाल जी की आयु काफी थी , किन्तु अपनीपूरी जिंदगी में इस तरह की हॉट सीट पर बैठने का उनको कोई तजुर्बा नहीं हुआ था । उन्होंने थूक निगलकर शीशे के पार दिख रही पुलिस चौकी की तरफ नजर डाली... पुलिस चौकी सौ मीटर दूर थी और भरी हुई पिस्तौल मात्र सौ सेंटीमीटर ! रसिक लाल ने जल्दी से काउंटर में मुंडी गाड़कर बहीखाता उलटना शुरू कर दिया ।"

४-"हालाँकि ये सारे औजार रखना एक डॉक्टर के लिये उतना ही जरुरी था जितना किसी खालसा का पांचों ककार धारण करना , तथापि डाक्साब जानते थे कि इस मशीनी जाँच पड़ताल का वास्तविक दुनिया में कोई मूल्य नही है ... वो दवा ईश्वरीय प्रेरणा से दिया करते थे । अपनी पांचों उँगलियों को उन्होंने अलग अलग रोग का प्रतिनिधि मान रखा था , ऑंखें बन्द करके अपने बाएं हाथ से दाहिने हाथ की एक ऊँगली पकड़ते और उसी रोग की दवा दे देते तथा आगे मरीज का निरोग होना ईश्वरीय अनुकम्पा पर छोड़कर अपनी फीस ले लेते ।"

५- "तीसरे राउंड में ठीक पहले मैंने हनुमान जी को आंख बंद करके याद किया । चेतना में दिखा कि दारा सिंह अपने हाथों में पर्वत उठाये संकल्प के साथ अरुण गोविल का ध्यान करते उड़े जा रहे हैं । मैंने एकसाथ दारा सिंह और अरुण गोविल को प्रणाम किया , सवा रूपये के प्रसाद का ऑफर रखा और जांघ पर हाथ ठोंकते लौंडे को कहा "चल आ जो पट्ठे!" लौंडा उसी तरह सर झुकाये भैंसे की तरह आने लगा..... मैं भी झुक गया ताकि पेट में न घुस पाये । मेरे और उसके कंधे दो बैलों की तरह एक दूसरे से उलझ गये । लौंडा कड़क लोहे की रॉड की तरह था तो मैं वजन में उससे कहीं ज्यादा भारी । आमने-सामने रगेदने में मैं भारी पड़ने लगा तो उसने कंधा झट से छुड़ा लिया । वो झटके से मेरे बगल में आया तो मैंने उसको कमर से थाम लिया .... अबकी लौंडे के पांव उखड़ गये , मैंने तुरन्त लग्गी बझायी और धड़ाम से पटक दिया ।"

६- "वो बेहद मामूली आदमी था । इतना मामूली कि बॉस जब चाहे उसे रगेद दिया करता था , सड़क पर कोई गाड़ी वाला उसे आंख दिखा दिया करता था , परिचित जब चाहे उसके कंधे पर एक भरपूर धौल जमा दिया करते थे और फिर बेशर्मी से दांत चियारकर नाराज न होने की उसे आंखों ही आंखों में घुड़की दे देते थे । वो इतना डरा हुआ था कि कभी-कभार आईने में खुद को ही देखकर डर जाया करता था । उसे आईने में एक इतनी कमजोर परछाईं दिखती थी जिसे वो डर जाने की हद तक घृणा करता था ।"

७- "वो दुःस्वप्न से धीरे-धीरे उबर रहा है । अपनी प्रेमिकाओं के बारे में क्रमबद्ध रूप से सोचने की कोशिश कर रहा है । उसकी सोच में प्रेम व्यवस्थित ढंग से आने लगा । देह नही है इसमें , न कोई वासनामय छिछलापन। हालांकि पिछले हफ्ते एक नवयुवती दोपहर के समय दरवाजे को खटखटा रही थी .. उसे किराये के मकान के लिये दरियाफ्त करनी थी । वो दरवाजे पर आया तो पता नही एकांत के उन क्षणों का दोष था या युवती के छलकते मादक शरीर का.. उसे विचित्र तरह का उन्माद भरा तनाव महसूस हुआ था । जल्दी से उस युवती को निबटाकर अंदर आया तो फिर बिस्तर पर लेटकर हाथों से ही उसने तनाव के घोड़े खोल दिये थे ।"

(विभिन्न कहानियों से)


अतुल शुक्ल
गोरखपुर

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