हाथी की सवारी छोड़कर मैदान में उतरे स्वामी प्रसाद मौर्य और आरके चौधरी किसी के साथ जाएंगे या फिर खुद का फ्रंट बनाएंगे, इन सवालों का जवाब तो भविष्य में मिलेगा। पर, मौर्य ने 1 जुलाई को यहां अपने समर्थकों की बैठक में जिस तरह 22 सितंबर को रैली करने की घोषणा की है।
उधर, चौधरी ने भी 11 जुलाई को समर्थकों की बैठक में आगे की रणनीति का फैसला करने का एलान किया है। इससे साफ हो जाता है कि दोनों ही किसी जल्दीबाजी में नहीं हैं। इन्होंने भविष्य की भूमिका की पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर रखी है और उस पर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है।
दोनों इस समय भले अलग-अलग हों, लेकिन इनका इरादा एक जैसा ही दिखाई दे रहा है-पहले अपनी ताकत दिखाओ। फिर दूसरों को दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए मजबूर करो।
ऐसा लग रहा है कि मौर्य व चौधरी अपनी ताकत से सिर्फ बसपा का ही नहीं, बल्कि दूसरों का भी खेल बिगाड़ने की तैयारी में हैं। कहीं न कहीं इनकी कोशिश नीतीश कुमार की यूपी में जमीन तलाशने के प्रयास में बैरिकेडिंग खड़ी करने की भी है।
मौर्य व चौधरी के पीछे है साझा ताकत
उधर, चौधरी ने भी 11 जुलाई को समर्थकों की बैठक में आगे की रणनीति का फैसला करने का एलान किया है। इससे साफ हो जाता है कि दोनों ही किसी जल्दीबाजी में नहीं हैं। इन्होंने भविष्य की भूमिका की पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर रखी है और उस पर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है।
दोनों इस समय भले अलग-अलग हों, लेकिन इनका इरादा एक जैसा ही दिखाई दे रहा है-पहले अपनी ताकत दिखाओ। फिर दूसरों को दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए मजबूर करो।
ऐसा लग रहा है कि मौर्य व चौधरी अपनी ताकत से सिर्फ बसपा का ही नहीं, बल्कि दूसरों का भी खेल बिगाड़ने की तैयारी में हैं। कहीं न कहीं इनकी कोशिश नीतीश कुमार की यूपी में जमीन तलाशने के प्रयास में बैरिकेडिंग खड़ी करने की भी है।
मौर्य व चौधरी के पीछे है साझा ताकत
राजनीतिक समीक्षकों का यह निष्कर्ष कि किसी भी दल के जमे-जमाए नेता अगर पार्टी छोड़ते हैं तो उसके पीछे सोची-समझी रणनीति होती है। साथ ही कोई न कोई ऐसी ताकत भी होती है जो उन्हें स्थापित करती है। इनकी शक्ति का प्रचार कराती है, मौर्य व चौधरी के मामले में अक्षरश: सत्य होती दिख रही है।
इनके पीछे कोई ऐसी साझा ताकत है जो इनके जरिये सूबे के सियासी समीकरणों में उलटफेर कराना चाहती है। जिसका इरादा बसपा व सपा के वोटों के गणित को ही नहीं गड़बड़ करना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में नीतीश की ताकत के विस्तार के इरादों पर अंकुश लगाना भी है।
इनके पीछे कोई ऐसी साझा ताकत है जो इनके जरिये सूबे के सियासी समीकरणों में उलटफेर कराना चाहती है। जिसका इरादा बसपा व सपा के वोटों के गणित को ही नहीं गड़बड़ करना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में नीतीश की ताकत के विस्तार के इरादों पर अंकुश लगाना भी है।