समाजवादी पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले फूंक-फूंककर कदम उठा रही है। कोशिश है कि चुनाव के दौरान सांप्रदायिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण न हो। इसके लिए पार्टी सॉफ्ट लाइन पर चलने की कोशिश कर रही है।
शीर्ष सपा नेता चुनौतीपूर्ण, भड़काऊ और प्रतिक्रियावादी बयानों से बच रहे हैं। विरोधियों, खास तौर से भाजपा के हमलों का जवाब भी गरिमापूर्ण ढंग से देने की तैयारी है। कैराना मामले की जांच के लिए संतों की कमेटी बनाने समेत सपा के हाल के कुछ फैसले उसकी बदली रणनीति के संकेत हैं।
मुजफ्फरनगर दंगों से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव तक सपा ने आक्रामक रणनीति अपनाई थी। बड़ी रैलियों में आजम खां सपा का प्रमुख चेहरा होते थे। मुलायम सिंह उनका संबोधन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बाद कराते थे। जाहिर है, मुसलमानों को लुभाने के लिए आजम खां का चेहरा सामने किया गया।
लोकसभा चुनावों में बड़े स्तर पर वोटों का सांप्रदायिक आधारपर ध्रुवीकरण हुआ। अधिकतर सीटों पर मुस्लिम वोटों में बिखराव भी रहा। नतीजतन भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई। उस चुनाव ने साबित किया कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति में सर्वाधिक लाभ भाजपा को होता था।
मुजफ्फरनगर दंगों से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव तक सपा ने आक्रामक रणनीति अपनाई थी। बड़ी रैलियों में आजम खां सपा का प्रमुख चेहरा होते थे। मुलायम सिंह उनका संबोधन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बाद कराते थे। जाहिर है, मुसलमानों को लुभाने के लिए आजम खां का चेहरा सामने किया गया।
लोकसभा चुनावों में बड़े स्तर पर वोटों का सांप्रदायिक आधारपर ध्रुवीकरण हुआ। अधिकतर सीटों पर मुस्लिम वोटों में बिखराव भी रहा। नतीजतन भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई। उस चुनाव ने साबित किया कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति में सर्वाधिक लाभ भाजपा को होता था।