देश में पहली जुलाई से लागू हुई एकीकृत कर प्रणाली गुड्स एन्ड सर्विस टैक्स की जद में गरीबों की सवारी साइकिल भी आ गई है। प्रदेश में पहले साइकिल कर मुक्त थी, मगर अब इस पर 12 फीसद टैक्स देना होगा। जीएसटी लागू होने के बाद नई साइकिल 300 रुपए से लेकर दो हजार रुपए तक महंगी हो गई है। वहीं इसकी मरम्मत कराने में भी गरीबों के माथे पर पसीना ला देगा।
साइकिल पर लगा भारी भरकम टैक्स सभी दावों को झुठला रहा है। देश में निम्न और मध्यम वर्ग के लगभग हर घर में साइकिल का उपयोग होता है। जिनमें छात्र और श्रमिक आदि इसका ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। पूर्ववर्ती सरकार ने सूबे में साइकिल को कर मुक्त कर दिया था। तब तीन हजार से लेकर 20 हजार रुपये तक की साइकिल बाजार में उपलब्ध थी। अधिकतर लोग तीन हजार से पांच हजार रुपये तक की साइकिल खरीदते हैं। दुकानदारों के अनुसार सबसे अधिक पांच हजार रुपये तक की कीमत वाली साइकिल ही बिकती है।
जीएसटी के दायरे में ताला, घंटी व स्टील बाक्स भी
जीएसटी लागू होने के बाद साइकिल एवं उसके पार्ट्स पर 12 प्रतिशत टैक्स निर्धारित किया है। इसके अलावा टायर, ट्यूब पर पांच प्रतिशत और ताला, घंटी व स्टील बाक्स खरीदने पर 18 प्रतिशत टैक्स देना होगा। इन कर दरों के लागू होने के बाद से साइकिल तीन सौ से लेकर दो हजार रुपए तक महंगी हो गई है। मरम्मत की दुकान करने वाले एखलाक व खलीक का कहना है कि अब टायर-ट्यूब पर पांच प्रतिशत और ताला, घंटी और स्टील बाक्स खरीदने पर 18 प्रतिशत टैक्स लगने से मरम्मत कराना महंगा हो जाएगा। इसका असर दुकानदारी पर पड़ेगा। कांग्रेस जिलाध्यक्ष सैयद मेराजुद्दीन किछौछवी का कहना है कि प्रदेश एवं केन्द्र की सरकार गरीबों की जेब पर डाका डाल रही है। सरकार की नीतियां गरीबी हटाने के बजाय गरीबों को मिटाने वाली हैं।
जीएसटी की गणित से उलझन बढ़ी
जनपद मुख्यालय पर साइकिल का कारोबार करने वाले व्यापारी अब्दुल सलाम व मो. इब्राहिम का कहना है कि जीएसटी की जटिलाताओं के चलते कई दुकानदारों को कारोबार बदलना पड़ेगा। साइकिल के व्यापारी मदनमोहन अग्रवाल व शहजादे ने कहा कि लगभग 70 प्रतिशत साइकिल की दुकान करने वाले कम पढ़े लिखे हैं। उन्हें जीएसटी की गणित समझ में नहीं आएगी। उसके बाद पंजीयन समेत अन्य कागजी कार्यवाही उन्हें व्यवसाय बदलने को मजबूर कर देगी।