पत्थरबाजों-आतंकियों ने रोजी छीनी, यात्रा चलेगी तो हमारे घर चलेंगे: कश्मीरी बोले
बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का उत्साह आतंक पर भारी है। 10 जुलाई को अनंतनाग में यात्री बस पर हुए हमले के ठीक दूसरे दिन यात्रियों की संख्या में कमी आई, पर तीसरे ही दिन 12 हजार लोग पहुंचे। औसतन 8 हजार लोग रोजाना दर्शन कर रहे हैं। पिछले साल पूरी यात्रा में करीब 2 लाख 20 हजार लोग पहुंचे थे। इस बार यात्रा 7 अगस्त तक है। अब तक 2 लाख 10 हजार 729 लोग दर्शन कर चुके हैं। श्रद्धालु जितने उत्साहित हैं, उतना ही उत्साह यहां के लोकल लोगों में भी है। हालांकि कश्मीरियों का कहना है कि पत्थरबाजों और आतंकियों ने हमारी रोजी छीन ली है, यात्रा चलेगी, तभी हमारे घर चलेंगे। उनका कहना है कि आतंकी हमले के बावजूद यात्री बढ़े हैं, पर वे कश्मीर नहीं घूम रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर सरकार की भी टूरिज्म से कमाई 80% तक घट गई है। लोकल लोग कुली-गाइड का काम करते हैं, दुकानें भी लगाते हैं...
- इंदौर से आए विपिन का कहना है कि हमारा मकसद आतंकियों को साफ संदेश देना है कि हम उनसे डरने वाले नहीं हैं, पर पत्थरबाजी और जगह-जगह सिक्योरिटी चेक के चलते घाटी घूमने नहीं जा पा रहे हैं।
रोजाना दो या तीन टूरिस्ट ही मिल रहे हैं
- डल झील पर शिकारा चलाने वाले 53 साल के मोहम्मद कहते हैं कि यात्रा जब बिना सुरक्षा घेरे के चलती थी, तब लौटते वक्त बड़ी तादाद में यात्री यहां आया करते थे। कई बार तो शिकारा ही नहीं मिलता था। टूरिस्ट को भी शिकारों की सैर करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब तो एक साल से टूरिस्ट आ ही नहीं रहे हैं। अभी रोजाना दो या तीन टूरिस्ट ही मिल पा रहे हैं और वो भी आधे रेट पर। पहले एक सवारी से हम लोग 600 रुपए तक कमा लेते थे। अब 150 रुपए ही मिल रहे हैं। इसके लिए वो आतंकियों और पत्थरबाजों कोसते हैं। कहते हैं कि यात्रा चलेगी तो हमारे घर चलेंगे। टूरिस्ट और अमरनाथ यात्री ही तो हमारे लिए सबकुछ हैं।
आतंकियों के कारण हुआ बड़ा नुकसान
- कुछ ऐसा ही हाल अमरनाथ यात्रा के दौरान भी है। पहले दो-तीन दिन तक यात्रा में तय रेट से भी ज्यादा पैसे लेकर घोड़ा चलाने वाले अब एक हजार रुपए में ही आना-जाना कर रहे हैं। जबकि श्राइन बोर्ड का रेट साढ़े तीन हजार रुपए है। करीब 15 साल से घोड़ा चला रहे अब्दुल कहते हैं कि पत्थरबाजों और आतंकियों के कारण बड़ा नुकसान हो रहा है। इन दो महीने की कमाई से हमारा साल भर खर्चा चलता है। सोनमर्ग के सरपंच नजीर अहमद शेख का कहना है कि ऐसे हमले नेताओं की साजिश हैं। कश्मीरियों की छवि ही बिगाड़ी जा रही है। वह बताते हैं कि इस बार सभी लोग ज्यादा से ज्यादा सहयोग कर रहे हैं ताकि जो छवि जम्मू-कश्मीर से बाहर कश्मीरियों की बन रही है, वह टूटे।
अमरनाथ यात्रियों का क्या कहना है?
- ग्वालियर की रहने वाली 63 साल की प्रज्ञा गंगाजली पति के साथ बाबा बर्फानी के दर्शन करके लौट रही थींं। बारिश से हुए कीचड़ और पास से निकल रहे घोड़े के चलते चोट खा बैठीं। इस तरह की परेशानियों से बाकी यात्रियों को भी दो चार होना पड़ रहा है। वह बताती हैं, "यहां के रास्ते जोखिम भरे हैं। श्रीनगर से सोनमर्ग तक का रास्ता बढ़िया है। पर उसके आगे कच्ची सड़कें हैं। गगनगिरी कश्मीर के इस हिस्से का आखिरी गांव है, जहां 12 महीने आबादी रहती है। इससे जरा सा आगे बढ़ते ही अमरनाथ तक जाने का जो रास्ता है, उस पर सड़क कभी बनी ही नहीं, जबकि रंगा मोड़ वाली ये टूटी सड़क नेशनल हाइवे-1ए का हिस्सा है। बिखरी बजरी पर अगर कोई भी जरा भी तेज गाड़ी चलाए तो सीधे सिंधु नदी में जा गिरे। वापसी का लेह होकर आने वाला रास्ता अच्छा है।"
हल्की सी बारिश में ही हो जाता है भारी कीचड़
- बिहार से यात्रा के लिए पहुंचे एक दल में शामिल प्रेम नाथ केसरी ने बताया कि हल्की सी बारिश में ही भारी कीचड़ हो जाता है। पकड़ने के लिए रेलिंग भी नहीं है। उनके ग्रुप में आई दुर्गावती देवी को हार्ट अटैक आ गया। मौके पर अच्छा इलाज मिलने से जान बच गई। पर वो इस बात से नाराज हैं कि रास्ते में पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं है। वो बताते हैं कि उनके एक साथी दिवाकर तो आधे रास्ते से ही लौट आए क्योंकि अपने सामने उन्होंने तीन लाशों को नीचे लाते देख लिया था। यहां मौत की बड़ी वजह ऑक्सीजन की कमी रहती है। घोड़े से गिर कर भी कई लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं। इस बार 22 मौतें हो चुकी हैं। हालांकि पिछले सालों के मुकाबले ये आंकड़ा काफी कम है।
लंगर लगाने वाले ट्रस्ट कई जगहों से आते हैं
- अमरनाथ यात्रा से पहले ही लंगर लगाने वाले ट्रस्ट पहुंच जाते हैं। ये लोग उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब से आते हैं। श्री अमरनाथ यात्रा वेलफेयर एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट विकास शर्मा बताते हैं कि इस बार लंगर लगाने वाले लोगों पर पथराव भी हुआ। इस वजह से सेवादार भी यहां रुकना नहीं चाहते। सामान को लंगर स्थल तक लाने में ही डर लगा रहता है। पहलगाम की ओर वाले रास्ते में लंगर की जगह भी काफी कम दी जाती है।
30 हजार टैक्सी, पर आधे रेट पर भी नहीं मिल रहे मुसाफिर
- टूरिस्ट टैक्सी ऑपरेटर्स के संगठन के चेयरपर्सन गुलाम नबी कहते हैं कि यात्री हमारे मेहमान हैं। उन पर हमला कायराना हरकत है। यहां 30 हजार टैक्सी हैं। ये दो महीने सबसे अहम होते हैं क्योंकि यात्री सिर्फ पवित्र गुफा ही नहीं जाते। इनमें से बहुत से लोग वैष्णो देवी, लद्दाख, पटनी टॉप, गुलमर्ग और अन्य टूरिस्ट स्पॉट पर भी जाते हैं, लेकिन 90% टैक्सी को मुसाफिर नहीं मिल रहे हैं। इस साल अब तक 10% ही बिजनेस हुआ है। आधे रेट पर टूरिस्ट मिल रहे हैं। पहले एक मुसाफिर से 2 से ढाई हजार रुपए मिल जाते थे। अब एक हजार रुपए ही मिल रहे हैं।
यात्रा को पूरा करने में लगते हैं 3 से 5 दिन
- पहलगाम से गुफा की दूरी 46 किमी है। ये पैदल मार्ग है। इसमें 3 से 5 दिन का वक्त लगता है। दूसरा रास्ता सोनमर्ग के बालटाल से भी है, जिससे अमरनाथ गुफा की दूरी महज 16 किलोमीटर है। लेकिन मुश्किल चढ़ाई होने के ये रास्ता बेहद कठिन माना जाता है।
2016 में राज्य को 16 हजार करोड़ रु. का नुकसान, 80% तक कम हुई कमाई
- जम्मू कश्मीर सरकार के सर्वे के मुताबिक 2016 में 2015 के मुकाबले 55% कम टूरिस्ट आए। इससे राज्य को 16 हजार करोड़ का नुकसान हुआ।
- 2015 में 13 लाख लोग कश्मीर आए थे। जबकि 2016 में कश्मीर में टूरिस्ट की संख्या 55% कम हो गई।
- खुद का रोजगार करने वाले लोगों को 276 करोड़ का और दूसरे धंधे में लगे लोगों को 190 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
- एक अनुमान के मुताबिक घाटी के करीब 1.5 से 2 लाख लोग टूरिज्म से जुड़े हुए हैं।
- 33 एकड़ में फैले ट्यूलिप गार्डन में टूरिस्ट कम पहुंच रहे हैं। इस बार हजार लोग ही पहुंचे।
- कश्मीर में हर साल औसतन 7 लाख टूरिस्ट आ रहे थे। राज्य की जीडीपी में 10% हिस्सा टूरिज्म से ही आता था।