जनसंख्या और सामरिक दृष्टि से एशिया महाद्वीप के दो बड़े देश चीन और भारत की सीमाएं आपस मिलती हैं। सम्पन्न, सशक्त और बड़ा देश होने के कारण चीन से जिन चौदह देशों की सीमाओं मिलती हैं, बलात सीमाओं का अतिक्रमण करता रहता है। 1962 से लेकर आज तक उसकी कुदृष्टि भारत की सीमावर्ती जमीन पर लगी हुई थी। 1962 में भारत के खिलाफ एकतरफा युद्ध छेड़ कर उसने हजारों वर्गफुट जमीन पर बलात कब्जा कर लिया, कब्जा करने के बाद एकतरफा युद्ध विराम भी घोषित कर दिया । 1947 में आजाद होने के कारण 1962 तक भारत की सामरिक शक्ति इतनी प्रबल नहीं हो पाई थी कि वह चीन जैसे दोगले देश को वह जवाब दे पाता । लेकिन इसके बाद भारत ने भी हर क्षेत्र में चौमुखी विकास किया। और सामरिक दृष्टि से आज वह चीन जैसे देश को भी कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। चीन की एक विशेषता है कि वह कहता कुछ है, और करता कुछ है। दिखावे के लिए दोनों देशों की सीमाओं पर शांति स्थापित करने के लिए वह निरंतर वार्ताएं भी करता है, सीमा पर लगाई गई अतिरिक्त सेनाओं को हटाने की भी बात करता है, लेकिन अपनी सेनाएँ हटाने के बजाय अपनी सेनाएँ बढ़ाता रहता है। सीमाओं पर अस्थाई चौकियों का निर्माण भी करता रहता है । ऐसा पिछले दिनों गलवान घाटी में हुआ। दोनों देशों की उच्च अधिकारियों की बैठकों में तय हुआ कि चीन भारत की सीमा से दो किलोमीटर पीछे अपनी सेनाएँ कर लेगा। यही देखने के लिए जब भारतीय सेना की एक टुकड़ी गलवान घाटी गई, तो चीन सरकार के निर्देश के अनुसार वहाँ के सैनिकों ने पत्थर, लाठी, और कटीले तार लिपटे डंडों से भारतीय सेना की टुकड़ी पर हमला बोल दिया । हालांकि भारतीय सेना के जवानों ने बड़ी ही बहादुरी के साथ उनका सामना किया। लेकिन इस हमले में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए ।
इसके बाद पूरे देश में चीन के खिलाफ एक माहौल तैयार हो गया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय मीटिंग बुलाई गई। जिसमें सभी दलों ने प्रधानमंत्री को भारत चीन सीमा पर कोई भी कदम उठाने के लिए अधिकृत किया । हालांकि इस मीटिंग में अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने के लिए भी सभी राजनीतिक दलों के लोगों ने कुछ प्रश्न भी उठाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े धैर्य के साथ उन्हें सुना और जो सुझाव देशहित में प्रतीत हुए, उसको अपनाया भी ।
विश्व में दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन सिर्फ सामरिक दृष्टि से ही सशक्त नहीं है। बल्कि व्यापार की दृष्टिकोण से भी उसकी स्थिति काफी मजबूत है। अपनी मैन पावर और संपन्नता का लाभ उठा कर वह एक ही सामान करोड़ों की संख्या में बनाता है, इस कारण उसकी लागत कम आती है। और उसे बहुत कम मार्जिन पर दूसरे देशों को बेचता है। दूसरे देशों में वही सामान अगर एक हजार रुपये में मिलता है, तो चीन वही सामान मात्र तीन सौ रुपये में यहाँ पाहुचाने के बाद देता है। इस प्रकार थोक विक्रेता उसे पाँच सौ में भी बेचता है, तब भी वह भारतीय बाजार की अपेक्षा पचास प्रतिशत सस्ता पड़ता है। अपनी इसी व्यापारिक नीति के तहत उसने दुनिया के सभी देशों में चीनी सामान से पाट रखा है । इतना ही नहीं, उसने दूसरे देशों की कमाई करने वाली कंपनियों और प्रतिष्ठानों के शेयर भी खरीद रखे हैं । इस तरह से हर देश से अरबों रूपए का वह व्यापार करता है । इलेक्ट्रानिक्स सामान तो तीन चौथाई से अधिक निर्भरता चीनी सामान पर ही है ।
गलवान घाटी में जब 20 सैनिकों की शहादत का समाचार देश की जनता को मिला, तो चीन और चीनी सामान के प्रति एक आक्रोश भारतीय जनता में देखा गया। भारतीय जनता ने चीनी सामान के बहिष्कार का निर्णय लिया । चीनी सामानों के बहिष्कार को लेकर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए गए। चीनी सामानों की होली जलाई गई। चीनी सामान का उपयोग नहीं करेंगे, इसका संकल्प लिया गया । भारत सरकार की ओर से भी बहिष्कार के लिए कुछ ठोस कदम उठाए गए । और कुछ दिनों तक बड़े ज़ोर-शोर से चीनी सामानों का बहिष्कार किया गया। दिल्ली का चाँदनी और नेहरू प्लेस मार्केट मे आज भी 90 प्रतिशत माल चीन का ही है। मग, बाल्टी, झालर, पाटा से लेकर कोई ऐसा सामान नहीं है, जिससे भारतीय बाजार पटा न हो । इधर एक तरफ बहिष्कार चल रहा है, सीमाओं पर तनाव की स्थिति है, इसके बावजूद सैकड़ों टैंकर रोज सामान चाँदनी और नेहरू मार्केट पहुँच रहे हैं। इस कदर की निर्भरता है। व्यापारी भी चीनी सामान बेचने की हिमायत कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, कि जितना सस्ता सामान चीन बना कर देता है, उसी दाम पर भारत उपलब्ध करा दे, तो वह उसका व्यापार करने लगेंगे ।
इसी बीच चीन ने अपने बुद्धिजीवियों को भी सक्रिय किया। जो इस बात की परिचर्चा करने लगे कि चीनी सामान का बहिष्कार संभव ही नहीं है। उसके पीछे जो वह दलील देते हैं, वह उसका सस्ता होना है। ऐसे बुद्धिजीवी कुछ ऐसे अकाट्य तर्क गढ़ते हैं, दलीले देते हैं, जिसे सुनने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि वाकई यह संभव नहीं है। यहीं पर महात्मा गांधी की याद आती है। इस प्रकार के बहिष्कार को आंदोलन का रूप देने का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है। व्यापार के लिए आई ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से जब अंग्रेजों ने हमारी फूट का फायदा उठाते हुए भारत को गुलाम बना लिया । वे हमारे देश से ही कच्चा माल ले जाते थे, और इंग्लैंड में उसे बना कर ऊंचे दामों पर भारत में बेचते थे। भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के नायक महात्मा गांधी ने देश को आजाद कराने के लिए दो मोर्चे पर लड़ाई के लिए भारतीयों को तैयार किया । एक ओर उन्होने विदेशी सामानों का बहिष्कार किया और विरोध प्रदर्शन करते हुए जगह – जगह उनकी होली जलवाई, वहीं दूसरी ओर स्वदेशी के प्रति जनता को जागरूक किया । एक लंबे अरसे तक उनके द्वारा चलाए गए इस आंदोलन की वजह से भारत के लोगों ने न सिर्फ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया, अपितु स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने लगे। जो काते सो पहने, जो पहने सो काते स्लोगन इतना प्रचलित हुआ कि भारत के अधिकांश लोगों के हाथ मे तकली दिखाई देने लगी, घरों में चरखा दिखाई पड़ने लगा। और लोग खाली समय में बड़े पैमाने पर सूट कताई का काम करने लगे। जैसा आज प्रतीत हो रहा है कि चीन के सामान के बगैर तो हमारी बाजार व्यवस्था ही ठप्प हो जाएगी, हम इतने सस्ते सामान तो बना ही नहीं सकते हैं, व्यापारी उसी दाम में माल की आपूर्ति की मांग कर सरकार के सामने मुश्किलें पैदा कर रहा है । फिर आजादी के आंदोलन के समय तो इससे अधिक दुष्कर स्थिति रही होगी । लेकिन भारत से विदेशी सामान का बहिष्कार हुआ । अङ्ग्रेज़ी हुकूमत के अधीन होने के बाद भी विदेशी सामान के बहिष्कार में सफल हुए । और स्वदेशी अपना कर एक विश्व के सामने के मिसाल कायम की ।
महात्मा गांधी एक उच्च कोटि के मनो-सामाजिक वैज्ञानिक भी थे। इस कारण उन्होने विदेशी सामानों के खिलाफ अनवरत आंदोलन चलाया। लोगों को तैयार किया। सिर्फ विदेशी सामानों की होली ही नहीं जलवाई, बल्कि उसकी आपूर्ति के इंतजाम भी किए । आज भी हमें वही करने की आवश्यकता है । अगर हम वाकई चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहते हैं, तो हमें महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से सीख लेना पड़ेगा। चीनी सामान के बहिष्कार के लिए भारत के एक – एक नागरिक को तैयार करना पड़ेगा। साथ ही उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वदेशी वस्तुओं का निर्माण करना पड़ेगा, उसकी आपूर्ति करना पड़ेगा। तब जाकर यह आंदोलन सफल होगा ।
ऐसा नहीं कि जब सैनिक शहीद हुए तो उसके विरोधस्वरूप हमने आंदोलन चला दिया। और फिर थोड़े दिन बाद शिथिल हो गए और चीनी वस्तुओं से ही समझौता करना पड़ा। चीन के साथ भारत जैसा छ्ल करता आया है, उसका उसे सबक सिखाने के लिए उसके सामान का उपयोग करना बंद करना पड़ेगा। नहीं तो हमारे देश में व्यापार करके धनार्जन करेगा और भारत से ही कमाएं धन से हथियार बना कर हमारे ही विरुद्ध प्रयोग करेगा। हमारी सीमाओं का अतिक्रमण करके हमारी जमीन पर बलात कब्जा करता जाएगा । अपने हिसाब से सीमा रेखा का निर्धारण करता जाएगा ।
ऐसे समय में जब भारत सरकार और हमारी सेनाएँ चीन को सबक सीखने के लिए अपने जान की बाज लगा सीमाओं पर डटी हुई हैं। चीन के हर कुत्सित प्रयास को विफल करने के लिए तत्पर हैं। ऐसे में देश के हर एक नागरिक का कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने देश की सेनाओं और सरकार के साथ खड़ा होने के लिए चीनी सामानों का बहिष्कार करे। लंबे समय तक बहिष्कार करे । जैसे – जैसे स्वदेशी वस्तुओं का निर्माण होता जाए, उसका उपयोग करना शुरू करे। तभी बहिष्कार सफल होगा और चीन को करोड़ो रूपए का नुकसान होगा। इसके बाद वह फिर हमारे देश की सीमाओं पर ऐसी हिमाकत कभी नहीं करेगा ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट