भौगोलिक क्षेत्रफल के अनुसार चीन दुनिया का तीसरा बड़ा देश है और जनसंख्या के आधार पर दुनिया का पहला तथा दुनिया का ऐसा देश, जिसकी सीमाएं सबसे अधिक देशों को छूती है । इसका कुल एरिया 97 लाख 6 हजार 961 वर्ग किमी है। चीन दुनिया के 14 देशों से घिरा हुआ है । इसकी कुल सीमा 22 हजार 117 किमी है। इसमें से कोई भी ऐसा देश नहीं है, जिसके साथ चीन का सीमा विवाद न चल रहा है । अपनी दोगली नीति के अनुसार यह सिर्फ दूसरे देशों की जमीन हड़प कर केवल अपनी सीमाएं ही नहीं बढ़ा रहा है, अपितु उसने अन्य 6 देशों को अपने देश का हिस्सा बता उन पर जबरन कब्जा भी कर लिया है । ये देश हैं - पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, इनर मंगोलिया या दक्षिणी मंगोलिया, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और मकाउ ।
चीन ने शिंजियांग प्रांत का हिस्सा बता कर पूर्वी तुर्किस्तान पर 1949 मंइ जबरन कब्जा कर लिया था । इसकी कुल आबादी के 45% उइगर मुस्लिम और 40% हान चीनी हैं। कब्जा के बाद उसने इसे स्वायत्त क्षेत्र घोषित कर रखा है। 23 मई 1950 को चीन ने सैनिक कार्रवाई करते हुए तिब्बत पर कब्जा कर लिया। यहां की आबादी में 78% बौद्ध और शेष चीनी हैं। तबसे तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भारत में शरण लिए हुए हैं । इससे भारत से चीन चिढ़ा हुआ है। और 1962 के युद्ध का यह भी कारण बताता है । दूसरे विश्व युद्ध के बाद चीन ने इनर मंगोलिया पर कब्जा कर लिया और 1947 में इसे स्वायत्त घोषित किया। क्षेत्रफल की दृष्टि से इनर मंगोलिया, चीन का तीसरा सबसे बड़ा सब-डिविजन है। ताइवान पर चीन जबरन ने जबरन कब्जा कर लिया है। लेकिन ताइवान इसे स्वीकार नहीं करता । लेकिन चीन बराबर दावा करता है कि ताइवान उसी का हिस्सा है । 1949 में छिड़े गृहयुद्ध का वह फायदा उठाता है ।
हांगकांग पहले चीन का ही हिस्सा था । 1842 के युद्ध में ब्रिटिश ने इसे चीन से छीन लिया था और 1997 में उसे चीन को लौटा दिया । इस दौरान 'वन कंट्री, टू सिस्टम' के तहत सम्झौता हुआ। जिसके अनुसार 50 वर्ष तक हांगकांग आजाद है । इसी कारण यहाँ के लोगों को विशेषाधिकार मिले हुए हैं । मकाउ पर पहले पुर्तगालियों का कब्जा था। लेकिन दिसंबर 1999 में पुर्तगालियों ने इसे चीन को वापस कर दिया। इस दौरान मकाउ के साथ भी एक सम्झौता हुआ। जिसके अनुसार चीन ने 50 साल तक राजनैतिक आजादी दे रखी है।
चीन की नीति विसतरवादी है। वह येन केन प्रकारेण दूसरे देश की जमीन हड़पना चाहता है। भारत भी इससे बचा हुआ नहीं है। उसने लद्दाख का करीब 38 हजार स्क्वायर किमी जमीन पर कब्जा कर लिया है और अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार स्क्वायर किमी के हिस्से पर अपनी दावेदारी पेश करता रहता है। इसके अलावा पाकिस्तान से इसने पीओके की 5 हजार 180 स्क्वायर ले लिया है । कुल मिलाकर चीन ने भारत के 43 हजार 180 स्क्वायर किमी पर जबरन कब्जा जमा रखा है । यही नहीं, चीन ने हिन्द महासागर में हमारी हजारो किलोमीटर जलभूमि पर भी कब्जा कर लिया है ।
अपनी इसी विस्तारवादी नीति के तहत चीन अब पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी पर भी कब्जा करना चाहता है। और अभी तक हुई तमाम बैठकों में वह गलवान को अपने देश का हिस्सा ही बता रहा है जबकि वस्तु स्थिति यह है कि यह भारत की जमीन है। लेकिन उसके मुंह पहले से ही खून लगा हुआ है। पहले ही उसने हजारों वर्ग फीट भूमि पर जबरन कब्जा कर रखा है । बातचीत में हुए समझौते के अनुसार वहाँ से चीन की सेना को पीछे हटना था। वह हटे की नहीं, यही देखने के लिए जब भारतीय सेना की टुकड़ी देखने गई । तो पहले से ही तैयार बैठे चीन के सैनिकों ने भारतीय सैनिकों को चारो ओर से घेर लिया और कटीले लाठी डंडों से प्रहार करना शुरू कर दिया । भारतीय सैनिकों की कुल संख्या उस समय लगभग 250 थी और चीनी सनिकों की संख्या एक हजार से अधिक । इस प्रकार करीब पाँच – पाँच चीनी सैनिकों ने हमारे एक – एक सैनिकों को घेर कर उनको मारने लगे। शून्य से कम तापमान होने के बावजूद हमारे सैनिकों ने बड़ी ही बहदुरी के साथ उनका मुक़ाबला किया। इसी हमले में हमारे देश के 20 सैनिक शहीद हुए । और करीब 10 सैनिकों को बंदी बना कर ले जाने में कामयाब हो गए । चीन के सैनिकों के साथ हमारे देश के सैनिक अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहे और देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी । प्राप्त सूचना के अनुसार दो सैन्य अधिकारियों के साथ कुल 10 सैनिकों को अभी थोड़ी देर पहले चीन ने वापस किया है ।
चीन की इसी विस्तारवादी और जमीन हड़पने की नियत को भाँप कर भारत सरकार ने अपनी सीमा के अंदर सड़क और चौकियों का निर्माण करना शुरू किया, जो चीन को नागवार गुजरा । उसने निर्माण कार्य को रोकने के लिए पहले हुई संधि का हवाला दिया । जबकि उस नीति का चीन पहले ही उलङ्घ्न कर चुका है। उसने सीमा के समीप कई चौकियाँ और बनकर बना लिए हैं। जो सैटेलाइट में साफ-सार दिखाई देता है । तमाम गीदड़ भभकियाँ और पैतरेबाजी करने के बाद भी जब भारत ने सीमा पर अपने निर्माण कार्य को नहीं रोका, तो चीन खिसिया गया और उसने एक बार फिर धोखेबाज़ी की मिसाल कायम करते हुए भारत के सैनिकों को बड़ी संख्या में हताहत करने की योजना बनाई । उसे नहीं पता था कि भारतीय सैनिक इतनी बहदुरी से सामना करेंगे और भारत का एक – एक सैनिक चीन के पाँच-पाँच सैनिकों पर भारी पड़ेगा ।
चीन के इस विश्वासघात के बाद भारत सरकार के होश उड़ गए । पूरी जानकारी मिलने के बाद 36 घंटे के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता को संबोधित करते हुए 20 शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इन सैनिकों की शहादत बेकार नहीं जाएगी । वैसे तो भारत शांति चाहता है, लेकिन अपनी संप्रभुता और अखंडता के साथ कोई सम्झौता नहीं करेगा। और अगर जरूरत पड़ी, तो अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए युद्ध भी करेगा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इसी आशय को समाहित करने वाले भाषण को सुन कर पूरी देश की जनता भी जोश से भर गई और उसने चीनी सामानों के बहिष्कार के लिये आंदोलन करने लगी । स्वेच्छा से लोग चीनी सामानों की होली जलाने लगे। चीन जहां एक ओर साम्राज्यवादी देश है, वहीं दूसरी ओर वह एक अव्वल दर्जे का व्यापरी देश भी है। कोई ऐसा देश नहीं है, जिसके बाजार उसके सामानों से न पटे हुए हों । अपना बाजार नष्ट होता जान चीन को थोड़ा झटका जरूर लगा। लेकिन अपनी हेकड़ी बरकरार रखने के लिए वह अपने इस झटके को वह प्रदर्शित नहीं कर सका। इसके साथ ही भारत की नीति का सभी ने समर्थन किया। जिसकी वजह से चीन चिढ़ गया और उसने अपने अधिकृत बयान में कहा कि भारत यह सब अमेरिका के इशारे पर कर रहा है । शुरू अमेरिका ने सीमा विवाद को हल करने के लिए मध्यस्तता की बात कही थी। जिसे भारत और चीन दोनों देशों ने इंकार कर दिया था ।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के तीनों सेना अध्यक्षों को सीमा पर हालात के अनुसार निर्णय लेने और कदम उठाने के लिए अधिकृत कर दिया है। आज वे देश के सभी राजनीतिक दलों के साथ इस आसन्न संकट पर विचार-विमर्श करने वाले हैं । जहां तक समर्थन की बात है, थोड़ी बहुत आलोचना के बाद सभी राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चीन के मसले पर निर्णय लेने के लिए पूरी तरह अधिकृत कर दिया है। जो लोग आलोचना कर रहे हैं और जो समर्थन कर रहे हैं। अंतत: सभी इस बात पर सहमत है कि वे इस आसन्न संकट के समय देश के प्रधानमंत्री के साथ खड़े हैं और प्रधानमंत्री जो निर्णय लेना चाहें, लें और अपने देश के जवानों की शहादत और सीमाओ की रक्षा के लिए जो निर्णय उचित हो, वे लें । आज शाम 5 बजे होने वाली मीटिंग में इसी पर मुहर लग जाएगी । इसके बाद देश के प्रधानमंत्री क्या निर्णय लेते हैं, वह देखने की बात होगी । जहां तक भारत चीन सीमाओं का मसला है, भारत ने अपनी सीमावर्ती सड़कों का निर्माण लगातार जारी रखा है। वह उसे किसी भी कीमत पर बंद नहीं करना चाहती है । इस सड़क के निर्माण हो जाने के बाद सेना के जवानों और कुमुक लाने में आसानी होगी ।
चीन भी चुप नहीं बैठा है। वह भारत पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान और नेपाल को लगातार उकसा रहा है। इसकी उसने धमकी भी दी है। लेकिन पाकिस्तान और नेपाल दोनों देश इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि अगर उन्होने भारत के साथ युद्ध करने या युद्ध में चीन की ओर से शामिल होने की हिमाकत की, तो उनका तो वजूद मिट जाएंगा । लेकिन चीन की शह मिलने के बाद जहां नेपाल संसद में अपनी सीमाओं को बढ़ाने के लिए उसका कूट रचित नक्शा बना रहा है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान भी जम्मू कश्मीर में लगातार आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है । जिसका भारतीय सेना मुकम्मल जवाब दे रही है। चीन को सामरिक दृष्टि से मात देने के लिए सेना ने रूस से कई मिग और जेट विमान खरीदने की भी संस्तुति कर दी है ।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस घड़ी में पूरी अवाम और सभी राजनीतिक दलों को विश्वास में लेकर चीन के ऊपर चौतरफा दबाव बनाना चाहिए । उससे आयात बंद कर एक ओर आर्थिक नुकसान पहुंचाना चाहिए । सीमा पर सेना तैनात कर उसके सामने चुनौती पेश करना चाहिए और कूटिनीतिक स्तर पर सम्पूर्ण विश्व का समर्थन हासिल कर उसे अलग-थलग करना चाहिए ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट